तीसरी बार केन्द्र में मोदी सरकार गठित होने के बाद राष्ट्रीय राजनीति बहुत दिलचस्प मोड़ पर आ गई है। श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री पद की शपथ लिये जाने के बाद उनकी मन्त्रिपरिषद के सदस्यों ने भी शपथ ग्रहण की। यह मन्त्रिमंडल भाजपा के बहुमत की सरकार का न होकर एनडीए के बहुमत की सरकार का है अतः इसमें भाजपा के विभिन्न सहयोगी दलों की शिरकत भी है। श्री मोदी ने अपने नये मन्त्रिमंडल में नये-पुराने मन्त्रियों का समावेश करके साफ कर दिया है कि वह अनुभव के साथ- साथ सरकार में नई व युवा ऊर्जा को भी भरना चाहते हैं। कुछ पुराने मन्त्रियों की छुट्टी भी कर दी गई है परन्तु उनके स्थान पर जो नये मन्त्री लिये गये हैं वे अपेक्षाकृत अधिक सामर्थ्यवान दिखाई पड़ते हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश की पीलीभीत सीट से शानदार जीत दर्ज करने वाले भाजपा के युवा नेता श्री जितिन प्रसाद को मन्त्रिमंडल में स्थान दिया गया है। श्री प्रसाद उत्तर प्रदेश के योगी मन्त्रिमंडल में कैबिनेट स्तर के मन्त्री रहे हैं और उन्हें जिस विभाग में भी रखा गया उसी में उन्होंने नया रिकार्ड कायम किया। हालांकि वह पुराने कांग्रेसी नेता स्व. जितेन्द्र प्रसाद के सुपुत्र हैं मगर एक भाजपा कार्यकर्ता के रूप में उनका अभी तक का कार्यकाल उपलब्धियों भरा माना जाता है। इसी प्रकार रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह व परिवहन मन्त्री श्री नितिन गडकरी को भी पुनः मन्त्री बनाया गया है।
श्री राजनाथ सिंह तो मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में गृहमन्त्री भी रहे हैं जबकि पिछली सरकार में वह रक्षा मन्त्री थे।
वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं और उनके अध्यक्ष रहते ही पहली बार 2014 में श्री नरेन्द्र मोदी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर प्रधानमन्त्री पद प्राप्त किया था। उनके अनुभव से मोदी मन्त्रिमंडल के नये सदस्यों को बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। इसी प्रकार श्री गडकरी भी भाजपा अध्यक्ष रह चुके हैं तथा पिछली सरकार में भूतल परिवहन मन्त्री भी थे। अपने पद पर रहते हुए श्री गडकरी ने सड़क निर्माण के क्षेत्र में क्रान्तिकारी काम किया। उन्हें मोदी सरकार का काम करने वाला मन्त्री कहा जाता था परन्तु यह गठबन्धन की सरकार है और इसमें जनता दल(यू) समेत तेलगूदेशम व अन्य छोटे सहयोगी दलों के सदस्यों को भी शामिल किया गया है। जिन पुराने मन्त्रियों को हटाया गया है उनमें स्मृति ईरानी, अविनाश ठाकुर समेत कई नाम हैं। जाहिर है कि नये मन्त्रिमंडल में श्री मोदी को इनकी उपयोगिता नहीं लगी होगी जिसकी वजह से इन्हें सरकार से बाहर कर दिया गया। मगर सबसे हैरत में डालने वाली बात यह है कि लोकसभा चुनाव हारने वाले पंजाब के रनवीत सिंह बिट्टू व तमिलनाडु के एल. मरुगन को भी मन्त्रिमंडल में शामिल किया गया है। इन दोनों नेताओं को अगले छह महीने के भीतर संसद का सदस्य बनना होगा। यह रास्ता राज्यसभा ही बचता है। अतः ये दोनों नेता निश्चित अवधि के भीतर राज्यसभा सदस्य बनाये जायेंगे।
पंजाब व तमिलनाडु दोनों ही राज्यों से भाजपा का एक भी सांसद नहीं जीता है। इसके बावजूद हारे हुए नेताओं को मन्त्री पद दिये जाने का अर्थ है कि भाजपा इन राज्यों में अपना विस्तार चाहती है। केरल से भाजपा के एक मात्र विजयी प्रत्याशी सुरेश गोपी को भी मन्त्रिमंडल में शामिल किया गया है। दक्षिण भारत में भाजपा बहुत कमजोर मानी जाती है अतः तमिलनाडु से हारे हुए प्रत्याशी को मन्त्री बनाकर श्री मोदी ने सन्देश देने का प्रयास किया है कि इस राज्य के लोगों की आवाज अनसुनी नहीं रहेगी। यही स्थित पंजाब की भी है। उत्तर प्रदेश में इस बार भाजपा को पिछली 62 सीटों के मुकाबले लगभग आधी सीटों पर सन्तोष करना पड़ा है। पिछली बार इस राज्य से केन्द्रीय मन्त्रिमंडल में 14 मन्त्री थे। इस बार यह संख्या भी बहुत कम रही है। मध्य प्रदेश के शेर शिवराज कहे जाने वाले श्री शिवराज सिंह चौहान को भी इस बार मन्त्रिमंडल में शामिल किया जा रहा है। वह भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ नेता माने जाते हैं। उनके राज्य मध्य प्रदेश में भाजपा ने विरोधी इंडिया गठबन्धन को एक भी सीट नहीं जीतने दी और सभी 29 सीटों पर भाजपा का ध्वज लहरा दिया।
शिवराज सिंह 18 वर्ष तक मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री भी रहे हैं । उनके कार्यकाल में भाजपा सिर्फ एक बार 2018 में चुनाव बहुत कम अन्तर से हारी थी। अतः उनकी नये मन्त्रिमंडल में शिरकत मोदी सरकार को अनुभव का एक और खजाना पेश करेगी। क्षेत्रीय दृष्टि से देखें तो नया मन्त्रिमंडल सन्तुलित दिखाई पड़ता है और भारतीय समाज के जातिगत गणित के हिसाब से भी यह सन्तुलित दिखता है मगर इसमें अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व कितना होगा, यह देखने वाली बात होगी। जहां तक महिला प्रतिनिधित्व का सवाल है तो फिलहाल यह भी सन्तुलित लगता है। देश की कई नामचिन महिला राजनीतिज्ञों को इसमें जगह दी गई है।