प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका की चार दिवसीय ‘राजकीय’ यात्रा शुरू हो गई है जिसमें दोनों देशों के बीच के आपसी सम्बन्धों के बीच नई ‘इबारत’ लिखे जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है। वैसे तो श्री मोदी 2014 में सत्तारूढ़ होने के बाद से अब तक छह बार अमेरिका जा चुके हैं मगर इस बार पहली राजकीय यात्रा पर गये हैं जिसका किन्हीं भी दो देशों के बीच के सम्बन्धों में विशेष महत्व होता है। अपनी इस यात्रा के दौरान वह अमेरिकी संसद के दोनों सदनों ‘हाऊस आफ रिप्रेजेंटेटिव’ व ‘सीनेट’ के सदस्यों की संयुक्त सभा को भी संबोधित करेंगे। मोदी को दूसरी बार अमेरिका संयुक्त बैठक को सम्बोधित करने का मौका दे रहा है, इसका सन्देश भी पूरी दुनिया में दोनों देशों की प्रगाढ़ता के बारे में जा रहा है। भारत के किसी भी दूसरे नेता को ऐसा अवसर नहीं मिल सका है। भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में तब ऐतिहासिक ऊंचाई आयी थी जब 2008 में दोनों देशों के बीच परमाणु समझौता हुआ था। यह समझौता अमेरिका ने अपने देश के कानून में संशोधन करके किया था, इसी से इसकी महत्ता का अन्दाजा लगाया जा सकता है। इस समझौते के बाद से ही दोनों देशों के बीच नये आर्थिक, टैक्नोलोजी व सामरिक सहयोग सम्बन्धों की बुनियाद पड़ी थी। इसके बाद से दोनों देशों के पारस्परिक सम्बन्धों में जो मिठास का वातावरण बना है उसे श्री मोदी नई ऊंचाई पर पहुंचाते दिखाई पड़ रहे हैं।
यह तथ्य इसलिए महत्व रखता है क्योंकि आजादी के बाद से अमेरिका के सम्बन्ध भारत के साथ विभिन्न ग्रन्थियों भरे रहे हैं और भारत-पाकिस्तान को लेकर इसका रुख पाक के समर्थन में रहता आया था परन्तु 1991 में भारत की अर्थव्यवस्था का उदारीकरण होने और बाद में इसके बाजार मूलक बनने में जैसे-जैसे तेजी आयी वैसे-वैसे ही अमेरिका भी भारत के प्रति दोस्ताना रवैया दिखाने लगा। भारत उस समय विदेशी कम्पनियों के लिए बहुत बड़ा आकर्षक बाजार था अतः अमेरिकी कम्पनियों का इसके प्रति आकर्षण बहुत स्वाभाविक था लेकिन तब से लेकर अब तक दोनों देशों के सम्बन्धों में इस कदर मोड़ आ चुके हैं कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण एशिया में भारत को अमेरिका अपना परम सहयोगी बनाना चाहता है और चीन के बढ़ते प्रभाव को सन्तुलित करने के लिए अमेरिका व्यग्र दिखाई पड़ता है। भारत आज भी पूरी दुनिया में सामरिक हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है क्योंकि इसकी सेना के तीनों अंगों के सुसज्जीकरण व आधुनिकीकरण का कार्य अभी तक अधूरा है।
सोवियत संघ द्वारा की जाने वाली आयुध सामग्री व सैनिक उपकरणों पर निर्भर रहने का दौर भी भारत में अब पूरा हो चुका है क्योंकि 1990 में ही इसके बिखर जाने के बाद इसकी सामरिक सामग्री उत्पादन की क्षमता सीमित हो गई है और अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों ने इस क्षेत्र में बाजी मार ली है जिसकी वजह से भारत को भी इनकी सैनिक सामग्री पर निर्भर होना पड़ रहा है। इसके समानान्तर भारत की रक्षा खरीद नीति में भी मनमोहन सरकार के दौरान ही ऐसे परिवर्तन कर दिये गये थे कि उच्च टेक्नोलोजी के रक्षा उपकरण खरीदते समय विदेशी कम्पनी पर यह शर्त लागू रहेगी कि वह भारत में ही पूंजी निवेश कर उनके उपयोग में आने वाले कलपुर्जों के उत्पादन की व्यवस्था किसी भारतीय उद्यमी के साथ संयुक्त क्षेत्र में स्थापित करेगी और टैक्नोलोजी का हस्तांतरण भी करेगी।
भारत को रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का जो अभियान चल रहा है उसके लिए यह शर्त जीवन रेखा के समान है। अतः श्री मोदी के इस दौरे के दौरान अमेरिका के साथ जो सबसे बड़ा रक्षा उत्पादन सौदा होने जा रहा है वह लड़ाकू विमानों व अन्य रणक्षेत्रीय सामग्री के उत्पादन में प्रयोग होने वाले जेट इंजिनों की भारत में ही उत्पादन शृंखला स्थापित करने के बारे में होगा। इस बारे में भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लि. के साथ जेट इंजिनों का उत्पादन करने वाली अमेरिकी कम्पनी जनरल इलैक्ट्रिक के साथ समझौता होगा जिसके तहत भारतीय कम्पनी को इनके उत्पादन की 80 प्रतिशत प्रौद्योगिकी हस्तान्तरित की जायेगी और शेष 20 प्रतिशत के हस्तांतरण पर भी कोई शर्त नहीं रहेगी। ऐसा ही समझौता इलैक्ट्रोनिक उद्योग में काम आने वाले सेमिकंडक्टरों के भारत में उत्पादन के बारे में भी हो सकता है। हालांकि इनके उत्पादन की व्यवस्था अमेरिका भारत में तो करने जा ही रहा है। साथ ही अमेरिका से भारत आधुनिक ड्रोन भी खरीदेगा।
भारत में पूंजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए श्री मोदी अपनी इस यात्रा में कई अमेरिकी कम्पनियों के प्रमुखों से भी भेंट करेंगे। 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस होता है। अतः श्री मोदी इस दिन राष्ट्रसंघ के न्यूयार्क स्थित मुख्यालय पहुंच कर वहां आयोजित योग शिविर में भी भाग लेंगे, जिसमें विश्व के कई अन्य देशों के नेता भी शामिल होंगे। राजकीय यात्रा के आचार- व्यवहार के अनुसार राष्ट्रपति जो बाइडेन उन्हें अपने अाधिकारिक आवास व्हाइट हाऊस में अपनी पत्नी के साथ रात्रिभोज भी देंगे और उपराष्ट्रपति श्रीमती कमला हैरिस व विदेश मन्त्री ब्लिंकन उन्हें दोपहर के भोज का मेहमान भी बनायेंगे। उनकी श्री बाइडेन से सीधे आमने-सामने विभिन्न आपसी व अन्तर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय मामलों पर बातचीत भी होगी। अतः भारत के प्रधानमन्त्री की इस अमेरिका यात्रा से जिस तरह की अपेक्षाओं का वातावरण बन रहा है उनके सार्थक होने की इबारत भी अमेरिका को ही लिखनी पड़ेगी क्योंकि दक्षिण एशिया में भारत की अपनी ताकत और कूव्वत है।