पता ही नहीं चलता कि समय कैसे गुजर जाता है। अगर लोकतंत्र की बात की जाए तो देखने वाली बात यही है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष में वार-पलटवार का खेल उस दिन से चल रहा है जिस दिन से एनडीए ने सत्ता श्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का पद सौंपकर संभाली है। उधर कांग्रेस ने सब कुछ गंवाकर अपना वजूद बचाने की दिशा में और लोगों के जेहन में विश्वास बनाने के लिए सब कुछ झोंक दिया है।
सरकार जिन-जिन उपलिब्धयों को लायी कांग्रेस ने उन्हें सबसे बड़ी असफलताएं करार देकर हमले किए। खाली बीता साल ही क्यों अगर मूल्यांकन करना है तो मोदी सरकार के रणनीतिकारों को 5 साल का हिसाब-किताब जनता के दिलो-दिमाग में अपने पक्ष में बैठाने के बाद 2019 के चुनाव में उतरना होगा। वहीं कांग्रेस की ओर से जितने बड़े स्तर पर फैसले हुए और जिस जमीन पर हुए उस उठा-पटक में कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटकर सोनिया गांधी ने कमान राहुल गांधी को सौंपी। कांग्रेस यह जताएगी कि लोग सोचें कि वह अब उनके विश्वास पर खरा उतरेगी, यही सोचकर वह 2019 के चुनाव पर डबल वार करेगी कि उसके फैसले गलत हैं। दोनों ही ओर से एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी आमने-सामने होंगे।
बात नोटबंदी, जीएसटी, कालाधन या भ्रष्टाचार खात्मा या फिर विकास को लेकर डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया की नहीं है, सरकार इन्हें अपनी उपलब्धियां बता सकती है, तो वहीं राहुल गांधी नोटबंदी, जीएसटी को लेकर सरकार की सबसे बड़ी असफलता, जिसकी गाज आम आदमी, व्यापारी और किसानों पर पड़ी है को प्रमाणित करने का काम कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी के बीच जंग मची हुई है कि कौन किस पर बड़ा हमला कर सकता है? राजनीति में हमले करना जायज है लेकिन अगर ये व्यक्तिगत तौर पर केंद्रित हो जाएं तो इसे सहानुभूति में बदलने के लिए पार्टियां एक हो जाने का काम करती हैं।
जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस पर हमले किए वह ठीक हैं लेकिन जिस प्रकार से एक अकेले सोनिया-राहुल परिवार को निशाने पर लिया या फिर मां-बेटा कहकर अनेक चुनावी सभाओं में उनके बारे में आरोप लगाए तो सोशल मीडिया का मानना है कि आपका अंदाज अहंकारी कहलाएगा। राजनीति में केवल वोट तंत्र में इसका लाभ सहजता से हासिल नहीं किया जा सकता।
सोशल मीडिया मोदी के इस अंदाज पर अपने विचार एक-दूसरे से शेयर कर रहा है। यह सच है कि प्रधानमंत्री मोदी एक ईमानदार नेता हैं और उनके नाम पर कुछ भी आरोप नहीं हैं लेकिन यह भी तो सही है कि आपका व्यवहार अगर आप व्यक्तिगत रूप से किसी पर केंद्रित होने लगोगे तथा जमीन पर आपके आरोप सही साबित नहीं होंगे तो लोग दूर हो सकते हैं। सोशल साइट्स पर लोग एक-दूसरे से शेयरिंग करते हुए यही कह रहे हैं कि खुद पीएम को इससे बचना होगा।
वहीं, राहुल गांधी जिन्हें कल तक इसी भाजपा के दर्जनों नेताओं द्वारा पप्पू-पप्पू कहा जाता रहा है, आज उनके बारे में अब खुद एनडीए के बड़े पार्टनर शिवसेना दिग्गज कहने लगे हैं कि कांग्रेस पर मोदी को अपने हमलों की धार बदलनी होगी, क्योंकि राहुल गांधी तो तीन राज्यों में चुनावों में कांग्रेस को सत्ता वापसी पर ले आए हैं। आप उन्हें पप्पू नहीं कह सकते। राहुल गांधी ने अपने आक्रमण पूरी तरह से मोदी पर केंद्रित कर रखे हैं। विपक्ष जब हमले करता है तो सत्तापक्ष में बैठी पार्टी को बचाव करना होता है। यह बात भाजपा रणनीतिकारों को समझ लेनी चाहिए, यह सलाह हमारी नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर राजनीतिक पंडित भाजपा को नियमित रूप से दे रहे हैं।
बात राफेल की हो, महंगाई या जीएसटी या नोटबंदी की हो कांग्रेस इसमें एक नया छौंक लगाकर इसे किसानों के मुद्दे से जोड़ रही है, जिसके दम पर कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता भाजपा से छीन ली। इतना ही नहीं तीनों राज्यों में किसानों के कर्जे माफ कर दिए गए। इसके अलावा तीन तलाक तथा राम मंदिर जैसे मुद्दे पर भाजपा क्या रणनीति अपनाती है इसका जवाब वक्त देगा।
यद्यपि तीन तलाक लोकसभा में पास हो चुका है और राज्यसभा में बहस लंबी चलेगी। सबसे बड़ी बात राम मंदिर को लेकर है। इसके लिए कानून बनाने की बात आरएसएस कहे या भाजपा के बड़े नेता लेकिन जनता के बीच में यह मुद्दा गर्म हो चुका है और भाजपा अगर मंदिर नहीं बनाती तो इसे इसकी कीमत देनी पड़ेगी, यह बात भाजपा के घटक दल और बड़े-बड़े नेता ही बोल रहे हैं। लिहाजा कहीं न कहीं यह मुद्दा भाजपा के चुनावी हिसाब-किताब को प्रभावित जरूर करेगा। यह बात भी सोशल मीडिया पर खूब शेयर की जा रही है।
कारण कुछ भी हो लोग सोशल साइट्स पर कह रहे हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पीएम मोदी 2019 के चुनावों के विशेष आकर्षण होंगे तथा बड़ी बात यह है कि राहुल गांधी एक अच्छे नेता के रूप में उभर रहे हैं और दूसरी तरफ उनके सामने मोदी होंगे, जिनकी छवि एकदम साफ है। भले ही कांग्रेस ने अपने सांसदों की संख्या बढ़ा ली है और भाजपा को महागठबंधन के जाल में कुछ सीटें गंवानी पड़ी हैं लेकिन अगर भाजपा को जनता के बीच विश्वास जगाना है तो उसे अपनी उपलब्धियों के साथ-साथ लोगों के दिलो-दिमाग में इसका लाभ उन तक पहुंचाने की बातें भी रखनी होंगी। मंदिर जैसे मामले में फंसने के गंभीर परिणाम होंगे, ये बातें भी सोशल मीडिया पर उठ रही हैं, तो भाजपा को इससे सबक लेना होगा। विपक्ष अगर महागठबंधन की तरफ बढ़ रहा है तो भाजपा को अपने नाराज हो रहे पार्टनरों को संभालना होगा और सीटों के मामले में समझौते पर ध्यान यह देना होगा कि क्या वे सकारात्मक परिणाम भी दे पाएंगे या नहीं।
इस दृष्टिकोण से 2019 का चुनाव विपक्ष भाजपा से तीन राज्य छीनने की बात कहकर कैश करा सकता है, तो वहीं मोदी की बेदाग छवि एनडीए का सबसे बड़ा पहलू होगा। इस दृष्टिकोण से 2019 का चुनाव बेहद कांटे का और रोमांचक रहेगा।