राष्ट्रपति के भयभीत होने के मायने...! - Punjab Kesari
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राष्ट्रपति के भयभीत होने के मायने…!

कोलकाता के एक अस्पताल में एक डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के जघन्य मामले ने इस समय देश को आंदोलित कर रखा है। बलात्कार और अन्य यौन अपराधों को लेकर भारत की राष्ट्रपति इतनी आहत हो जाएं कि उन्हें कहना पड़े कि वे निराश और भयभीत हैं तो जाहिर तौर पर यह अत्यंत भयानक स्थिति है। यह राष्ट्रीय चिंता का विषय है, देश के हर व्यक्ति को सोचने के लिए बाध्य होने की जरूरत है कि आखिर हमारे देश में इतनी भयानक स्थिति कैसे पैदा हो गई और इसका निदान क्या है? राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर दिन बलात्कार के औसतन 87 अपराध दर्ज होते हैं। यौन उत्पीड़न के अन्य मामलों की तो मैं बात ही नहीं कर रहा हूं और बलात्कार के भी ये जो आंकड़े हैं वो उन अपराधों के हैं जो दर्ज हुए हैं।

भारत में हजारों-हजार मामले इज्जत की दुहाई देकर घरों में ही दम तोड़ देते हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि बलात्कार और अन्य यौन अपराध करने वाले बाहर के कम और करीब के लोग ज्यादा होते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि ऐसा क्यों होता है? करीबी लोग ही इतने भक्षक क्यों होने लगे हैं? पिछले वर्षों की तुलना में बलात्कार में 13 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा क्यों हुआ है? अभी-अभी मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के यौन शोषण की रिपोर्ट आई है। इसके बाद फिल्म स्टार एवं विधायक एम. मुकेश, फिल्म स्टार जयसूर्या तथा मनियनपिला राजू के खिलाफ यौन अपराध का मामला दर्ज किया गया है, मशहूर फिल्म अभिनेत्री राधिका सरथकुमार ने भी कहा है कि वैनिटी वैन में छिपे कैमरों से अभिनेत्रियों के वीडियो बनाए जाते थे।

निर्भया कांड के बाद पूरा देश हिल गया था और यह मांग उठने लगी थी कि कानून को इतना कठोर बनाया जाए कि कोई व्यक्ति इस तरह का अपराध करने के पहले कानून से भयभीत हो जाए। पूरी रात संसद चली थी लेकिन क्या हुआ? निर्भया कांड जैसी घटनाएं तो अभी भी हो ही रही हैं, जो कानून बना है, वह भी कितना प्रभावी है? निर्भया कांड के बाद उपजा गुस्सा अब कहीं दिखाई ही नहीं देता, कुछ मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने बलात्कारियों को सजा भी दे दी लेकिन क्या सभी मामलों में ऐसा हो पा रहा है? यह तो बात हुई कानून की लेकिन क्या केवल कानून से ही समस्या का निदान हो सकता है?

मुझे लगता है कि बलात्कार और यौन उत्पीड़न की वारदातों का बड़ा कारण पोर्नोग्राफी का बेतहाशा फैलाव है। इसने हमारे मोबाइल को अपना ठिकाना बना लिया है और लोग बुरी तरह इसके लती होते जा रहे हैं, न केवल युवा वर्ग बल्कि हर उम्र के लोगों को ब्लू फिल्मों की लत लग गई है। आपको याद ही होगा कि पिछले साल त्रिपुरा विधानसभा में एक विधायक जादब लाल नाथ सदन की कार्यवाही के बीच ब्लू फिल्म देख रहे थे। किसी ने पीछे से वीडियो बना लिया तो मामला दुनिया के सामने आ गया। उससे भी पहले कर्नाटक विधानसभा की याद आपको दिलाता हूं जब तत्कालीन मंत्री लक्ष्मण सावदी और सीसी पाटिल विधानसभा के भीतर ब्लू फिल्म देख रहे थे, इनकी याद मैं आपको इसलिए

दिला रहा हूं ताकि आप समझ सकें कि पोर्नोग्राफी ने किस तरह से पूरे समाज को अपनी गिरफ्त में ले लिया है।
कोई भी व्यक्ति जब इस तरह की नग्न फिल्में देखता है तो उस पर उन्माद सवार हो जाता है, वासना का पागलपन उसे अमानुष बना देता है। फिर वह नहीं देखता कि वह किसी नादान सी बच्ची के साथ बलात्कार कर रहा है या फिर सत्तर साल की किसी वृद्धा की अस्मत लूट रहा है, बलात्कारी के लिए शायद उम्र कोई मायने नहीं रखती। कई बार पोर्नोग्राफी के उन्माद ने पति-पत्नी के रिश्ते को भी तार-तार किया है। अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ का एक मामला आया जिसमें पत्नी ने अदालत में कहा कि उसका पति पोर्न फिल्में देखता है और फिर निजी जिंदगी में उसके साथ वही दोहराना चाहता है। पत्नी इतनी परेशान हो गई कि उसने तलाक की अर्जी लगा दी। न्यायालय ने उस पति को सजा सुनाई लेकिन सवाल है कि ऐसे कितने मामले न्यायालय तक पहुंच पाते हैं?

सी घटनाओं के बारे में पढ़ता हूं तो दिमाग शून्य होने लगता है, आखिर हमारे देश में यह सब क्या चल रहा है? मैं देश दुनिया घूमता हूं। कुछ अविकसित अफ्रीकी देशों को छोड़ दें तो यूरोप से लेकर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक कहीं भी महिलाओं के खिलाफ इस तरह की खौफनाक स्थिति नहीं है। पोर्नोग्राफी का जन्म हालांकि पश्चिमी देशों में हुआ, वहां यह एक इंडस्ट्री है लेकिन उसके प्रति वहां के लोगों का नजरिया अलग है, हमारी संस्कृति बिल्कुल अलग है। हमारे देश को पोर्नोग्राफी ने बुरी तरह से प्रभावित किया है। हमारे यहां 14-15 साल के बच्चे भी पोर्नोग्राफी और ड्रग्स के शिकार हो रहे हैं और वे जो जघन्य अपराध करते हैं तो उन्हें जुवेनाइल कानून का फायदा मिल जाता है, हमें इस पर भी सोचना होगा। दुर्भाग्य से हमारे यहां अभी इस बात के उदाहरण हैं कि पोर्नोग्राफी की मशहूर अभिनेत्री हमारी फिल्मों की कलाकार बन गई। फिल्मी दुनिया के कुछ बड़े लोग ब्लू फिल्म बनाने लगे वे पकड़ में भी आए।

हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारी बेटियां हर क्षेत्र में कमाल कर रही हैं। प्रशासनिक सेवा में दक्षता से लेकर सेना में शौर्य और अंतरिक्ष तक में अपनी क्षमताएं प्रदर्शित कर रही हैं लेकिन समाज पिछड़ रहा है। जहां समाज महिलाओं की कद्र करता है वहां इस तरह के अपराध नगण्य होते हैं। हमारे देश में नगालैंड, पुद्दुचेरी और लक्षद्वीप इसके उदाहरण हैं। वहां यदि महिलाओं के खिलाफ कोई अपराध कर दे तो सबसे पहले समाज उसे सजा देता है, जाहिर है कि सामाजिक जागृति और कठोरता ही हमें इस भयानक स्थिति से निकाल सकती है, राष्ट्रपति का भय इसी जरूरत को दर्शाता है।

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