एक्ट ईस्ट नीति का अर्थ! - Punjab Kesari
Girl in a jacket

एक्ट ईस्ट नीति का अर्थ!

NULL

69वें गणतंत्र दिवस पर 10 आसियान देशों के शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में देश के सैन्य कौशल तथा सांस्कृतिक विविधता की झलक राजपथ पर देखने को मिली। सेना के जवान आसियान देशों- थाइलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपीन, सिंगापुर, म्यांमार, कम्बोडिया, लाओस आैर ब्रूनेई के झण्डे लेकर परेड में शामिल हुए। आसियान की स्थापना 8 अगस्त 1967 को थाइलैंड की राजधानी बैंकाक में की गई थी। 26 जनवरी 1950 को जब देश का प्रथम गणतंत्र दिवस समारोह मनाया गया था तब इंडोनेशिया के तत्कालीन अध्यक्ष श्री सुकर्णो मुख्य अतिथि थे। प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के समय 1968 में दो शासन प्रमुखों सोवियत संघ के प्रधानमंत्री अलेक्साई कोसिगिन आैर यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो को एक साथ गणतंत्र दिवस पर बुलाया गया था। इस बार के समारोह में एक साथ 10 देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी दुनिया में भारत के बढ़ते सम्बन्धों को प्रदर्शित करती है, साथ ही कूटनीतिक दृष्टि से देखें तो इनकी उपस्थिति काफी अहम हो जाती है। आसियान के मेहमानों के आगमन से स्पष्ट है कि राजनीतिक तबका भारत से कितनी उम्मीदें रखता है। दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र का रणनीतिक वातावरण जिस तेजी से बदल रहा है, उसके दृष्टिगत भारत को उस पर कदम-दर-कदम आगे बढ़ना ही होगा।

नई दिल्ली में 1947 में हुए एशियाई सम्बन्ध सम्मेलन को लेकर गुरुवार को हुए आसियान सम्मेलन तक नजर डालें तो पता चलता है कि भारत को जो काम वर्षों पहले करना चाहिए था, वह नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हो रहा है। 1950 के दशक में भारत ने एशिया का नेतृत्व करने की ठानी थी लेकिन 1960 के दशक में ही भारत ने दक्षिण पूर्वी देशों से मुंह मोड़ लिया था। 1990 के दशक में भारत सरकार को इस क्षेत्र की याद आई और इन देशों के साथ सम्बन्धों में प्रगाढ़ता कायम करने के लिए लुक ईस्ट नीति तैयार की गई। इस नीति के तहत सम्बन्ध तो मजबूत हुए लेकिन भारत ने आर्थिक और राजनीतिक रूप से काफी परहेज किया। भारत की अपनी राजनीतिक और आर्थिक कमजोरियां भी आड़े आती रहीं। लुक ईस्ट नीति महज एक नीति रही, भारत इसे लुक एक्ट नीति में नहीं बदल सका। 1992 में भारत की अर्थव्यवस्था बहुत मुश्किल दौर में थी। ऐसी स्थिति में भारत आर्थिक सम्बन्धों को विस्तार देने की सोच भी नहीं सकता था। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने अपनी सूझबूझ से आर्थिक उदारीकरण और विदेश नीति में व्यावहारिकता से देश को संकट से उबारा था। उनके शासनकाल में ही पूर्वी दिशा के देशों को लेकर बनाई गई नीति के तहत भारत को मजबूत एशियाई अर्थव्यवस्थाओं जैसे जापान, दक्षिण कोरिया आैर आसियान संगठन के साथ जोड़ा गया और पश्चिम देशों में इस्राइल के साथ सम्बन्ध स्थापित किए। तब से लेकर कितना पानी नदियों में बह चुका है, इसका अनुमान लगाना कठिन है लेकिन वर्तमान में दक्षिण एशिया के दृश्य में काफी बदलाव आया है।

चीन भारत को बार-बार धमकाता रहता है। उसके अधिनायकवादी रवैये के कारण उसका समुद्री सीमा सम्बन्धी विवाद जापान, फिलीपीन्स, ताईवान, ब्रूनेई, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम के साथ चल रहा है। दक्षिणी चीन सागर पर चीन बेवजह अपना कब्जा बता रहा है, वह सागर पर आधिपत्य जमाना चाहता है। इंडोनेशिया ने अपनी समुद्री सीमा बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चीन के बेवजह दावों के खिलाफ याचिका डाली थी। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला चीन के खिलाफ आया लेकिन चीन उसे मानने से इन्कार कर रहा है। भारत के पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार में चीनी हस्तक्षेप बढ़ा है और चीन अपने आर्थिक तंत्र की मजबूती के चलते भारत को हर मोर्चे पर घेरने की कोशिश कर रहा है। भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती चीन है। अमेरिका की ट्रंप सरकार आसियान संगठन के साथ हुए बहुपक्षीय समझौतों से हाथ खींच रही है जबकि चीन इन देशों को आधारभूत ढांचा तैयार करने में मदद और कर्ज देने के लिए आगे आ रहा है। भारत को आसियान से सहयोग करते हुए चीन की चुनौतियों का मुकाबला करना होगा। वियतनाम आैर इंडोनेशिया जैसे देश अपनी सीमाओं और सार्वभौमिकता अक्षुण्ण रखने के इच्छुक हैं।

दक्षिण पूर्वी एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दूरंदेशी से काम ले रहे हैं। चीन का बढ़ता प्रभाव सामरिक लिहाज से भारत के लिए चिन्ता की बात है। इसीलिए उन्होंने क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे पर बल दिया है। ज्यादा सामरिक सांझेदारी और समुद्री सहयोग पर बल दिया है ताकि चीन की विस्तारवादी नीतियों पर अंकुश लगाया जा सके। भारत आसियान देशों के साथ रक्षा क्षेत्र में करीबी सहयोग बढ़ाना चाहता है लेकिन ज्यादातर आसियान देश अभी भी चीन को नाराज करने का जोखिम लेने की स्थिति में नहीं हैं। भारत म्यांमार की सेना को रक्षा सहयोग आैर प्रशिक्षण भी दे रहा है। भारत और थाइलैंड के बीच 8 अरब डॉलर का व्यापार होता है। भारत, म्यांमार आैर थाइलैंड को जोड़ने वाले त्रिपक्षीय राजमार्ग पर काम जारी है जो 2019 के अन्त तक शुरू हो जाएगा। परिणाम चाहे जो भी हाें परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिप्लोमेसी का अन्दाज आक्रामक ही रहा है। अमेरिका के लिए भी दक्षिण चीन सागर आैर पूर्वी एशिया केन्द्रित कूटनीति की कई वजह हैं। चीनी प्रभामंडल को निस्तेज करना भी अमेरिकी कूटनीति का एजेंडा रहा है इसलिए उसे नरेन्द्र मोदी की एक्ट ईस्ट नीति अच्छी लग रही है। अब जरूरत है सम्बन्धों को नया आयाम देने की।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three × two =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।