मणिपुर में जल्दी शान्ति हो - Punjab Kesari
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मणिपुर में जल्दी शान्ति हो

लगता है मणिपुर राज्य पूर्वोत्तर राज्यों के कबायली मूल से विकसित अन्तर-जातीय समाज के अन्तर्विरोधों की प्रयोगशाला बन

लगता है मणिपुर राज्य पूर्वोत्तर राज्यों के कबायली मूल से विकसित अन्तर-जातीय समाज के अन्तर्विरोधों की प्रयोगशाला बन गया है जिसमें राजनैतिक प्रयोग इस प्रकार हो रहे हैं कि मणिपुर अपने एक राज्य होने की अस्मिता को दरकिनार कर सामाजिक समुदायों की अपनी पहचान पर फिदा होना चाहता है। 2015 तक इस राज्य के सभी उग्रवादी या अलगाववादी संगठनों ने सशस्त्र मार्ग छोड़ कर केन्द्र सरकार के साथ शान्तिपूर्ण समझौते कर लिये थे। राज्य में अक्सर जो सेनाओं को विशेष अधिकार देकर (आफप्सा) कानून का विरोध किया जाता था वह भी समाप्त हो गया था और पिछले पांच साल से तो यह राज्य पूरी तरह शान्त था और कहीं भी अलगाववादी गतिविधियां देखने में नहीं आ रही थीं परन्तु विगत 3 मई से इस राज्य में हिंसा का जो तांडव शुरू हुआ है वह अभी तक रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है और अभी तक सवा सौ लोगों की जान जा चुकी है और पचास हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं। कुकी और मैतेई जनजातियों के लोग आपस में ही एक- दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं। यह पूरी तरह समझ में न आने वाली बात है कि राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा यह सुझाव देने के बाद कि राज्य की सरकार को मैतेई समुदाय के लोगों को भी जनजाति का दर्जा दिये जाने के बारे में केन्द्र से सिफारिश करनी चाहिए, कुकी समाज का गुस्सा फूट पड़ा और दोनों तरफ से हिंसा का जो नंगा नाच शुरू हुआ वह अभी तक रुक नहीं पा रहा है। गत रविवार की रात्रि को ही चार लोगों की हत्या कर दी गई जिनमें से एक का तो गला तक रेत दिया गया।
राज्य की बीरेन सिंह सरकार मणिपुर के समाज में भीतर- भीतर ही फैल रही आपसी दुर्भावना का संज्ञान लेने में पूरी तरह असफल रही जो राज्य के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी आदिवासियों और मैदानी या राजधानी इम्फाल के आस-पास रहने वाले मैतेई समुदाय के लोगों के बीच फैल रही थी। पहाड़ों पर रह कर अपना जीवन बिताने वाले कुकी समुदाय के लोगों में यह डर व्याप्त हो रहा था कि मैदानी इलाके में रहने वाले लोगों को पहाड़ी क्षत्रों में भेजने का अभियान चलाया जा रहा है और उनके धार्मिक स्थल चर्चों को निशाना बनाय जा रहा है। कुकी समुदाय के अधिसंख्य लोग ईसाई हैं। उनमें यह डर पहले से ही फैल रहा था कि मैदानी इलाकों से पलायन करके लोग पहाड़ों पर बसने आ रहे हैं जिसकी वजह से वे उनकी संस्कृति और आर्थिक स्रोतों को भी अपने निशाने पर ले रहे हैं।
यह सच है कि राज्य के पहाड़ी इलाकों में अफीम की अवैध खेती जाती है और राज्य सरकार ने पिछले दिनों इसे समाप्त करने के लिए व्यापक अभियान चलाया था मगर यह भी सत्य है कि इसके नाम पर पहाड़ों में स्थित चर्चों को भी निशाना बनाया गया। संयोग से मैतेई समुदाय के 90 प्रतिशत से अधिक लोग हिन्दू समुदाय के हैं। अतः इस अभियान ने साम्प्रदायिक रंग भी ले लिया है। मणिपुर में जन-जातियों में साम्प्रदायिक तनाव पहली बार ही देखने को मिला है। इसके साथ यह भी सत्य है कि पड़ोसी देश म्यामांर से कुकी जनजाति के लोग मणिपुर में आ जाते हैं और यहां के कुकी लोगों में घुल-मिल कर जंगल में अपने डेरे बना लेते हैं और बहुत से अफीम की खेती में भी संलिप्त हो जाते हैं परन्तु गत रविवार को कुकी समुदाय के ही दो विद्रोही संगठनों ‘यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट’ व ‘कुकी नेशनल आर्गनाइजेशन’ ने वक्तव्य जारी करके कहा कि वे इम्फाल से दीमापुर (नगालैंड) जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर पिछले दो महीने से लगा अवरोध हटा रहे हैं जिससे आवश्यक वस्तुओं का आवागमन आसानी से हो सके। कुकी लोगों ने इस राजमार्ग को विगत 3 मई को ही हिंसा भड़कने के बाद बन्द कर दिया था मगर जब गृहमन्त्री श्री अमित शाह मई के अन्त में मणिपुर गये थे और उन्होंने शान्ति की अपील की थी तो इस राजमार्ग को खोल दिया गया था मगर विगत 9 जून को जब कुकी-जोमी समुदाय के तीन लोगों की हत्या हुई तो राजमार्ग फिर से बन्द कर दिया गया था। अतः यह भी विडम्बना ही है कि जब इस राजमार्ग को पुनः खोलने के प्रयास हुए तो फिर से चार लोगों की हत्या कर दी गई।
दूसरी तरफ मुख्यमन्त्री बीरेन सिंह ने पहले घोषणा की कि वह राज्य की परिस्थितियों के ​िलए खुद को जिम्मेदार मानते हुए इस्तीफा देने जा रहे हैं मगर जब उनके निवास पर कुछ लोगों ने जमा होकर मांग की कि वह इस्तीफा न दें तो उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। राजनीति की यह कौन सी करवट है? बीरेन सिंह राज्य के लोगों के चुने हुए मुख्यमन्त्री हैं। यदि वह उनके जान-माल की सुरक्षा नहीं कर सकते तो जिम्मेदारी कौन लेगा? लोकतन्त्र में जनता की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार की ही होती है। इसी वजह से पुलिस का बड़े से बड़ा अफसर चुने हुए प्रतिनिधियों को सलामी ठोकता है क्योंकि प्रशासन उनकी निगरानी में संविधान के अनुसार चलता है। मणिपुर में यह स्थिति यदि लम्बे समय तक चलती है तो इसका दुष्प्रभाव अन्य संवेदनशील पूर्वोत्तर राज्यों पर पड़ने का भी खतरा रहेगा। अतः मणिपुर को जल्द से जल्द शान्त किया जाना चाहिए औऱ वहां पुनः भाईचारा स्थापित किया जाना चाहिए। इसके लिए सार्थक राजनैतिक प्रयास किये जाने बहुत जरूरी हैं।

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