खतरनाक मोड़ पर मणिपुर ! - Punjab Kesari
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खतरनाक मोड़ पर मणिपुर !

मणिपुर हिंसा को लेकर गृहमंत्री अमित शाह एक के बाद एक कदम उठा रहे हैं। अब मणिपुर के

मणिपुर हिंसा को लेकर गृहमंत्री अमित शाह एक के बाद एक कदम उठा रहे हैं। अब मणिपुर के राज्यपाल की अध्यक्षता में एक शांति समिति का गठन भी कर दिया गया है। यह समिति सामाजिक सद्भाव और भाईचारे को बढ़ाने का काम करेगी जिससे विभिन्न जातीय संगठनों के बीच सद्भावनापूर्ण बातचीत हो सके। राज्य में सुरक्षा बल लगातार तलाशी अभियान चलाए हुए हैं और लोग अपने हथियार जमा भी करवा रहे हैं और भारी मात्रा में हथियार पकड़े भी जा रहे हैं। इस सबके बावजूद राज्य में हिंसा जारी है। एक घायल बच्ची को लेकर जा रही दो महिलाओं के साथ एक एम्बुलैंस को 2000 लोगों की भीड़ ने आग के हवाले कर दिया और एम्बुलैंस लेकर जा रहे कमांडो पुलिस अधीक्षक को जान बचाकर भागना पड़ा। इससे साफ हो गया है कि मणिपुर खतरनाक राह पर चल पड़ा है। पूर्वोत्तर में उग्रवादी समूहों द्वारा किसी बच्चे और महिला पर जानबूझ कर हमला करने की घटना पहले कभी सामने नहीं आई लेकिन मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच लगातार हो रही हिंसा ने सारी हदें पार कर दी हैं। ऐसा लगता है कि जैसे राज्य मध्याकालीन बर्बर युग में पहुंच चुका है। हिंसा ने पूरी तरह से साम्प्रदायिक रंग ले लिया है।
इस घटना के बाद हुई हिंसा में तीन ग्रामीणों की हत्या कर दी गई। म​ीडिया रिपोर्ट्स बताती है कि मैतेई समुदाय के उग्रवादी जवानों की वर्दी में आए और उन्होंने तलाशी लेने के बहाने ग्रामीणों को बाहर ​बुलाया और उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। राज्य में अब तक 110 लोगों की मौत हो चुकी है और 50 हजार लोग पलायन करके मिजोरम के राहत शिविरों में रह रहे हैं। हिंसा की शुरूआत मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद हुई। इस आदेश में हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था ​कि दस साल पुरानी सिफारिश को लागू करें जिसमें गैर जनजाित मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी। नगा और कुकी समुदाय ने मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने का विरोध किया और सवाल उठा कि उन्नत होने के बावजूद उन्हें एसटी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है। दोनों समुदाय इस आशंका से ग्रस्त हैं कि अगर मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दे दिया गया तो उनकी जमीनें खतरे में पड़ जाएंगी आैर इसलिए वे अपने अस्तित्व के लिए छठी अनुसूची चाहते हैं। वास्तव में मैतेई और कुकी समुदाय में विश्वास का संकट पैदा हो गया है। दोनों ही समुदाय खौफ में हैं। नगा और कुकी समुदाय को पुलिस पर भरोसा नहीं है। मौजूदा हिंसा को देखते हुए मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देना ही एक मात्र कारण नहीं माना जा सकता।
 इस हिंसा के पीछे कई कारण हैं, जिसमें पहाड़ाें में अफीम की खेती, सांस्कृतिक वर्चस्व और आस्था के वर्चस्व की लालसा प्रमुख है। इसके बीज अंग्रेजों के शासन के दौरान ही बो दिए गए थे। देश में अंग्रेजों की सत्ता के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कन्वर्जन का खेल आरंभ हो गया था। कभी सेवा के नाम पर, कभी ताकत के बल पर तो कभी अंधविश्वास के नाम पर। जनजाति समाज के भोलेपन का फायदा उठाते हुए उन्हें कन्वर्ट किया जाता रहा। देश की आजादी के बाद पूर्वोत्तर में सबसे पहले उग्रवाद की जड़ें नगालैंड में पनपनी शुरू हुईं। इसके पीछे सीधे तौर पर पश्चिमी देशों का मजहबी एजेंडा शामिल था। समय बीतने के साथ पूरे पूर्वोत्तर में उग्रवाद ने अपनी जड़ें जमा लीं। सभी समूहों के पीछे नगालैंड में पैदा हुआ उग्रवादी समूह ही था। उग्रवाद की आड़ में कन्वर्जन का खेल बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से चलता रहा।
जब तक देश के अन्य हिस्सों में इसका पता चलता तब तक काफी देर हो चुकी थी। केंद्र में बैठी पूर्ववर्ती सरकार ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। पूर्वोत्तर में सेवा और शिक्षा के नाम पर बड़े पैमाने पर फर्जी एनजीओ के जरिए आर्थिक मदद मुहैया करानी जारी रही, जिसका उपयोग कन्वर्जन और उग्रवाद की पौध को सींचने के लिए किया जाता रहा। पूर्वोत्तर के कई राज्यों से म्यांमार की सीमा लगती है। यहां से न सिर्फ हथियार भारत में पहुंचाये जाते रहे, बल्कि उग्रवादी समूह अपने प्रशिक्षण शिविर भी म्यांमार में स्थापित कर पूर्वोत्तर को दहलाने की अनवरत कोशिश करते रहे हैं। उग्रवाद प्रभावित पूर्वोत्तर के राज्यों में अलग देश के नाम पर घिनौनी गतिविधियां संचालित की जाती रहीं। इन सबके पीछे सिर्फ एक उद्देश्य था, अलग उपासना पद्धति के अनुसार भारत से इस क्षेत्र को अलग करना।
राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने जंगलों में अवैध रूप से हो रही अफीम की खेती के खिलाफ अभियान शुरू किया तो इसकी मार म्यांमार से जुड़े अवैध प्रवासियों पर भी पड़ी। इससे उग्रवादी तत्व बौखला उठे। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की बयानबाजी ने भी मामले काे भड़काया। कुकी समुदाय ने उन 40 लोगों के शव लेने से इंकार कर दिया जिन्हें मुख्यमंत्री ने उग्रवादी बताया था। अब समय आ चुका है कि राज्य सरकार सभी समुदायों में आपसी विश्वास पैदा करे और सभी की आशंकाएं दूर करे। दोनों समुदाय मिल बैठकर समस्या का समाधान निकालें। सभी को लगे कि सरकार उनके हितों के खिलाफ नहीं है। अगर जल्दी शांति की बहाली नहीं हुई तो हिंसा दावानल का रूप ले सकती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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