14 लोगों की मौत के बाद तमिलनाडु की पलानीसामी सरकार जागी और उसने वेदांता के तूतीकोरिन स्टरलाइट कॉपर प्लांट को हमेेशा के लिए बन्द करने के आदेश जारी कर दिए। सरकार का फैसला जनता की जीत कहा जा सकता है लेकिन यह सरकार की एकतरफा कार्यवाही है। सरकार को चाहिए था कि जनरल डायर की तरह लोगों पर सीधे गोलियां चलाने की जवाबदेही तय करती। क्या एक नायब तहसीलदार के कहने पर पुलिस फायरिंग कर देती है, कौन है 14 लोगों की हत्या का जिम्मेदार? सरकार की कार्यवाही जनाक्रोश को शांत करने के लिए ही की गई। जब गोलियां चलाई गईं तब वहां संविधान का शासन बचा कहां था इसलिए मुख्यमंत्री भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते, उन्हें एक पल भी गद्दी पर रहने का अधिकार नहीं है।
प्लांट को बन्द करने के लिए लोगों ने 100 दिन तक प्रदर्शन किया। इस प्लांट से क्षेत्र में भयंकर रासायनिक प्रदूषण फैल रहा था आैर भूमिगत जल भी विषाक्त होने लगा था। इससे क्षेत्र में कैंसर समेत अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ गया था। प्लांट में धातु गलाने के साथ कॉपर का काम होता था। जो प्लांट लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहा हो, जिसने प्रदूषण को रोकने के लिए ठोस उपाय भी नहीं किए हों, उसको बन्द किया जाना ही चाहिए था। स्टरलाइट कम्पनी को बड़ी चिमनी लगाने को कहा गया था, फिर भी प्रदूषण बोर्ड ने छोटी चिमनी पर प्लांट चलाने की अनुमति दे दी। इससे स्टरलाइट का तो खर्चा कम हुआ होगा लेकिन पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुक्सान पहुंचा। समस्या यह नहीं थी कि प्लांट के भीतर क्या चल रहा है, बल्कि समस्या यह थी कि भीतर जो भी हो रहा था उसकी वजह से बाहर काफी भयानक प्रभाव पड़ रहा था। स्टरलाइट प्लांट पर स्वामित्व रखने वाली ब्रिटेन की कम्पनी वेदांता ने पर्यावरण कार्यकर्ताओं पर दुष्प्रचार फैलाने का आरोप लगाया था।
वेदांता प्रमुख अनिल अग्रवाल, जो कबाड़ी से करोड़पति बने हैं, ने अपने ई-मेल में कहा था कि कुछ निहित स्वार्थी लोग उनकी कम्पनी वेदांता आैर भारत को बदनाम करना चाहते हैं। पुलिस फायरिंग में 14 लोगों की मौत के बाद अनिल अग्रवाल का यह वक्तव्य उनकी संवेदनहीनता का ही पिरचय देता है। यह बात गले नहीं उतर रही कि स्टरलाइट का विरोध भारत का विरोध कैसे है? अगर लोग 100 दिन से प्रदर्शन कर रहे थे तो कम्पनी प्रबन्धन ने कोई कदम क्यों नहीं उठाए? वेदांता का इतिहास देखा जाए तो भारत में उसके सभी प्रोजैक्ट विवादों का शिकार रहे हैं। स्टरलाइट छत्तीसगढ़ के कोरबा में एल्युमीनियम कम्पनी चलाती है जिसमें 2009 में हुए एक चिमनी हादसे में 42 मजदूर जिन्दा जल गए थे। वर्ष 2001 में इस सरकारी कम्पनी को वेदांता ने खरीदा था और खरीदे जाने के समय से ही विवाद शुरू हो गया था। वेदांता ने भारत एल्युमीनियम कम्पनी या बाल्को की रिफाइनरी, समलेटर और खदानों को भारत सरकार से करीब 551 करोड़ में खरीदा था लेकिन कहा यह जा रहा था कि सरकारी कम्पनी की कीमत इससे कहीं अधिक थी।
ओडिशा के नियमागिरी पर्वत को ही ले लीजिए। आदिवासी बहुल इलाके में बाक्साइट खनन को लेकर मामला सर्वोच्च अदालत तक गया था, जिसने डोंगरिया कोंध आदिवासियों को इस पर अपना मत ग्राम पंचायतों में रखने को कहा था। आदिवासियों की सभी 12 ग्राम सभाओं ने खनन को एकमत से नकार दिया था। वेदांता ने लांजीगढ़ में 10 लाख टन क्षमता वाली एक रिफाइनरी का निर्माण किया था जिसकी क्षमता नियमागिरी में खनन के बलबूते 6 गुणा बढ़ा दी गई थी हालांकि कम्पनी के पास इसकी कोई सरकारी मंजूरी नहीं थी। सब कुछ अवैध तरीके से किया गया था। सेसा गोवा की बात करें तो शाह कमीशन ने 2012 में अवैध खनन के लिए जिन कम्पनियों को दोषी ठहराया था, उसमें सेसा गोवा भी शामिल थी। सेेसा गोवा वेदांता की लौह अयस्क कम्पनी है। एक अनुमान के मुताबिक अवैध खनन से राजकोष को 35 हजार करोड़ का नुक्सान हुआ।
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पट्टों को रद्द किया आैर तब से सरकार बोली लगवाकर इसके खनन की इजाजत देती है। देश में बड़े-बड़े उद्योगपति हैं, लेकिन उनमें से किसी ने भी इतने व्यवस्थित आैर निन्दनीय तरीके से अपनी मातृभूमि को नंगा नहीं किया जितना वेदांता ने किया है। यह भी सच है कि किसी कम्पनी का इतनी तेजी से विकास नहीं हुआ जितना वेदांता का हुआ। पूर्व वित्तमंत्री आैर गृहमंत्री पी. चिदम्बरम वेदांता के एक निदेशक हुआ करते थे। बाद में जब उन्हें गृहमंत्री बनाया गया तो अरुंधति राय ने कहा था कि वे तो वेदांता के खनन हितों की सुरक्षा के लिए चौकीदार बने हैं। जाम्बिया में भी वेदांता पर आरोप लगा था कि उसने दो वर्ष वहां की सबसे बड़ी तांबा खदान केसीएस खरीदी थी आैर उसके जहरीले कचरे को निपटाने के लिए जानबूझकर खराब पाइप लाइन का निर्माण किया। उसने वहां जाम्बिया सरकार की आधिकारिक अनुमति लिए बिना ही सबसे महत्वपूर्ण तांबे के स्मेल्टर पर काम शुरू कर दिया था।
मजदूरों के शोषण आैर मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप भी कम्पनी पर लगे। सत्ता में बैठे लोग वेदांता पर मेहरबान थे और राज्यों के मुख्यमंत्री उसके लिए हर दरवाजा खोलते गए। यह कार्पोरेट सैक्टर और सियासत की सांठगांठ ही थी जिसने देश को अरबों रुपए का चूना लगाया। दरअसल हम ऐसे युग के गवाह रहे हैं जहां ठेेकेदारों, दलालों और खनन माफियाओं ने सत्ता पर अपना वर्चस्व जमा लिया था। देश में आर्थिक उदारवाद शुरू होने के साथ ही खान माफियाओं का उदय, आदिवासियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ। देश आज तक माओवाद की पीड़ा झेल रहा है। तूतीकोरिन में स्टरलाइट पर ताला लगाना उचित कदम है लेकिन इस ताले के पीछे छिपा हुआ है वेदांता का सच। राज्य सरकारों को इससे सबक लेना चाहिए।