‘लाइटनिंग एट मिडनाइट’ - Punjab Kesari
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‘लाइटनिंग एट मिडनाइट’

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भारत का इतिहास साक्षी है कि जब इस देश के लोग जागते हैं तो आधी रात को मुनादी कर देते हैं कि वे अपने पुरखों की हड्डियों से बनाये गये वज्र से बड़ी से बड़ी शैतानी ताकतों को नेस्तनाबूद करने की हिम्मत रखते हैं। इसलिए इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए कि वीरवार की ठीक आधी रात के समय खबर आयी कि अब से कुछ घंटों के भीतर ही उत्तर प्रदेश के बलात्कारी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की गिरफ्तारी सीबीआई कर लेगी।

इसके समानान्तर ही इंडिया गेट पर उस समय कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी के नेतृत्व में हजारों लोगों का हुजूम कठुआ की आठ वर्षीय बच्ची आसिफा की बलात्कार के बाद हत्या किये जाने और उन्नाव की किशोरी के साथ बलात्कार करने वाले विधायक को राज्य की योगी सरकार द्वारा खुला समर्थन दिये जाने के विरुद्ध शान्तिपूर्ण प्रदर्शन ( कैंडल मार्च) हो रहा था। मगर यह राजनीतिक प्रदर्शन नहीं बल्कि इस देश के आम लोगों का प्रदर्शन था। इसमें सुश्री प्रियंका गांधी भी शामिल हुईं और सामान्य युवक–युवतियां भी शामिल हुए।

सेंगर आधी रात के बाद गिरफ्तार हो गया और टीवी चैनलों के माध्यम से पूरे देश ने देखा कि इंडिया गेट की अमर जवान ज्योति पर किस तरह हजारों लोगों ने हाथों में ली हुई मोमबत्तियों की रोशनी को शहीदों की ज्योति में समाहित कर दिया। मगर जम्मू-कश्मीर के कठुआ के बकरवाल की बेटी आसिफा के साथ किये गये जानवरों से भी बदतर सुलूक को लेकर पूरा हिन्दोस्तान ‘सदमें’ में आकर उसे न्याय देने के लिए आवाज उठा रहा है। भारत की उस ‘गंगा–जमुनी’ तहजीब की विरासत है जो हर हिन्दोस्तानी की रगों में खून बन कर दौड़ती है।

मुझे आश्चर्य है कि महबूबा सरकार में भाजपा के उन दो मन्त्रियों लाल सिंह और चन्द्रप्रकाश गंगा ने ‘आसिफा कांड’ को हिन्दू–मुसलमान साम्प्रदायिक रंग देने में पूरी मदद की और आठ वर्षीय बालिका के साथ जंगली भेडि़यों जैसा व्यवहार करने वाले मुजरिमों का खुलेआम तिरंगा लहराते हुए समर्थन किया। मगर पि​छले 2 दिनों में राष्ट्रीय स्तर पर उपजे महा जनाक्रोश का संज्ञान लेते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीड़िता को न्याय दिलाने का जो वचन दिया उसके बाद दोनों मंत्रियों का इस्तीफा सही दिशा में उठाया गया कदम ही माना जाना चाहिए।

न तो भारत का संविधान और न ही जम्मू-कश्मीर रियासत का संविधान इस बात की इजाजत देता है कि ये दो मन्त्री अपने पदों पर एक क्षण के लिए भी रह सकें, क्योंकि राज्य के उच्च न्यायालय की निगरानी में चल रहे आसिफा कांड की राज्य पुलिस जांच में पाये जाने वाले आरोपी बलात्कारियों की उन्होंने वकालत की, उनकी बर्खास्तगी के लिए बस इतना ही काफी है लेकिन दुष्टता की हद तो देखिये कि कुछ लोग अब भी अपनी साजिशें करने से बाज नहीं आ रहे हैं।

कभी कह रहे हैं कि आसिफा के साथ जालिमाना हरकतों की सीमा तोड़ने वाला काम पाकिस्तान से आये लोगों ने किया था और कभी कह रहे हैं कि यह बकरवालों को दूसरी जातियों से भिड़ाने की चाल है। इन बेहया और जाहिल लोगों को कौन समझाये कि देवस्थान में नशीली दवाएं खिला-खिला कर लगातार कई दिनों तक बलात्कार करके हत्या करने वाले लोगों की हिम्मत को खुद सरकार में बैठे लोग ही बढ़ा रहे थे और इसके आधार पर हिन्दू–मुसलमान राजनीति को पुख्ता करने की साजिशें रच रहे थे।

अपने दड़बों में बैठे ये लोग सोच रहे हैं कि भारतीय सेना के जवानों की शहादत पर भी ये वोटों की गोलबन्दी कर सकते हैं क्योंकि बकरवाल समुदाय सेना का हर युद्ध के समय पर बिना वर्दी में ही महत्वपूर्ण सहायक रहा है। यह सोच इस देश को बांटने की है और हर जघन्य अपराध को हिन्दू – मुसलमान के दायरे में रख कर देखने की है क्योंकि उनकी दाल–रोटी का जरिया केवल यही नजरिया है। मगर आम जनता में आयी जागृति के समक्ष एेसी सोच न पहले कभी टिकी है और न आगे ही टिक सकती है क्योंकि आज का भारत अपराधियों को अपना भाग्यविधाता बनते किसी सूरत में नहीं देख सकता।

हमने उत्तर प्रदेश में देखा है कि किस तरह इस प्रकार की शक्तियों ने इस राज्य की फिजा में तेजाब घोल कर पूरे समाज को हिन्दू-मुसलमान व जातियों में बांट कर अपराधियों के हाथ में शासन चलाने की कलम पकड़ा दी। मगर आज यही उत्तर प्रदेश सिर पकड़ कर सोच रहा है कि भगवान राम की ऊंची–ऊंची प्रतिमाएं स्थापित करके रामराज का सपना दिखाने वाले लोगों के बीच ‘‘कालनेमियों’’ का क्या बोलबाला हो रहा है ?

अतः जम्मू-कश्मीर जैसी खूबसूरत रियासत को हम किसी भी कीमत पर कानून और संविधान को तार–तार करने वालों के भरोसे नहीं छोड़ सकते। क्या कभी आजाद भारत में किसी ने सुना था कि बलात्कार और हत्या जैसे पैशाचिक कृत्य करने वाले लोगों को बचाने के लिए साम्प्रदायिक आधार पर ‘हिन्दू एकता मंच’ का गठन किया गया हो और खुद वकील ही एेसे लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर करने का विरोध कर रहे हों।

भारत की न्यायप्रणाली का पूरी गुंडागर्दी करके विरोध करने वाले एेसे लोगों को किसी भी सरकार के किसी भी मन्त्री का समर्थन किस प्रकार मिल सकता है? साम्प्रदायिक शक्तियों को यह हकीकत कांटे की तरह चुभती रही है कि जब 1947 में बंटवारे के समय पूरा देश साम्प्रदायिक आग में बुरी तरह जल रहा था तो इसी सूबे में एक भी हत्या या घटना नहीं हुई थी और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तब कहा था कि ‘’मुझे जम्मू-कश्मीर से रोशनी की एक किरण दिखाई दी है जो समूचे भारत में प्रकाश बन कर एकता की राह दिखाने की क्षमता रखती है”

मगर क्या साजिशें की जा रही हैं कि उसी जम्मू-कश्मीर को 70 साल बाद एक आठ वर्षीय बच्ची पर जुल्म ढहाने की इन्तेहा करके लोगों को पढ़ाया जा रहा है कि वह मुसलमान थी और उस पर जुल्म ढहाने वाले हिन्दू थे, इसलिए जुल्मियों के साथ आ जाओं। मगर राहुल गांधी ने आधी रात को अचानक अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद के साथ बाहर आकर चुनौती दे डाली है कि एेसे लोगों के लिए चुल्लू भर पानी का इंतजाम कर दो। लोग ही उन्हें उसमें डूबने की दरख्वास्त करने लगेंगे। आधी रात का यह उफान ‘लाइटनिंग एट मिडनाइट’ यानि रोशनी का पैगाम दे रहा है।

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