लगातार कूटनीतिक प्रयासों से भारत और चीन संबंधों में सुधार हुआ है। दोनों देशों में 5 मई, 2020 को उपजी पूर्वी लद्दाख में गतिरोध की स्थिति अब लगभग समाप्त होने को है। गतिरोध वाले दो स्थानों से अपने-अपने सैनिकों को वापिस बुलाए जाने के बाद हुई महत्वपूर्ण वार्ता में भारत-चीन में एलएसी पर शांति कायम करने पर सहमति हुई। अब दोनों पक्ष सीमा विवाद से जुड़ी घटनाओं को रोकने के लिए आगे वार्ता करेंगे। अपने पड़ोसी देश से संबंधों को सहज और शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए हर स्तर पर भारत ने पहल की। एक तरफ 50 हजार जवानों की तैनाती कर चीन को दिखाया कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है तो दूसरी तरफ वार्ता के दौर भी जारी रखे। विपरीत परिस्थितियों में भी भारत ने सकारात्मक रुख अपनाया। सीमा विवाद से क्या चीन ने कोई सबक सीखा है। इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है। क्योंकि चीन एक के बाद एक ऐसी आक्रामकता दिखाने से बाज नहीं आता, जिससे उसकी मंशा पर संदेह उत्पन्न होता है। पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के दौरान ही जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद दोनों देशों के बीच गम्भीर तैनाव पैदा हो गया था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग में 21 अक्तूबर को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान हुई मुलाकात के बाद दोनों देशों ने अपने-अपने सैनिक हटा िलए। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद के दोनों सदनों में भारत-चीन संबंधों पर बयान देते हुए स्पष्ट कहा है कि सीमा पर शांति और रिश्तों के सामान्य होने की पहली शर्त है। किसी भी पक्ष को यथास्थिति एकतरफा बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
यह बात अब स्पष्ट हो चुकी है कि अगर भारत और चीन आपस में हाथ नहीं िमलाते तो एशियाई शताब्दी नहीं आएगी। दोनों का हाथ मिलाना एक-दूसरे के हित में है। तनाव के बावजूद भारत और चीन के व्यापारिक संबंध उच्चतम स्तर पर बने हुए हैं। दुनिया की नजर में जहां तक हार्डवेयर का प्रश्न है चीन ने इस क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। जहां तक साफ्टवेयर की बात है भारत की प्रगति से दुनिया का कोई देश मुकाबला नहीं कर सकता। भारत-चीन संबंधों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ भी मानते हैं कि अगर दोनों देश करीब आ जाएं और मिलकर काम करें तो दुनिया की कोई ताकत इनका मुकाबला नहीं कर सकती। अगर भारत, चीन और रूस का त्रिकोण बन जाए और तीनों देश आपसी सहयोग को आर्थिक से लेकर सामरिक क्षेत्र में मजबूत कर लें तो फिर कोई भी इनका सानी नहीं होगा।
आज जिस प्रकार आर्थिक वैश्वीकरण ने दुनिया का स्वरूप बदल दिया है उसमें इन तीन देशों की भूमिका सबसे ऊपर हो गई है, क्योंकि दुनिया की आधी से अधिक आबादी इन तीन देशों में रहती है और आर्थिक सम्पन्नता के लिए इनके बाजार शेष दुनिया की सम्पन्नता के लिए आवश्यक शर्त बन चुके हैं। मगर अपने आर्थिक हितों के संरक्षण के लिए सामरिक सहयोग की जरूरत को झुठलाया नहीं जा सकता। यही वजह थी कि भारत ने बंगलादेश युद्ध के बाद रूस से सामरिक संधि की थी और भारत का सर्वाधिक कारोबार भी रूस से ही होता था। भारत और चीन में कटुता का कारण 1962 का युद्ध ही है। वैसे गौर से देखा जाए तो दोनों देशों के आर्थिक और सामरिक हित आपस में जुड़े हुए हैं। संबंधों के पुख्ता होने की पहली शर्त यही होती है कि उनकी सीमाएं गोलियों की दनदनाहट की जगह मिलिट्री बैंड की धुनों से गूंजे।
सारी दुनिया जानती है कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास जिस तरह की गतिविधियां चलाता है उसे किसी भी तरह से उचित करार नहीं दिया जा सकता। हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता से तनाव बढ़ा है और इससे कई देश चिंतित हैं। हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन के इरादे नेक नहीं हैं और दक्षिणी चीन सागर में उसकी सैन्य ताकत का प्रदर्शन भारत ही नहीं बल्कि कई देशों की चिंता का कारण है। चीन की दादागिरी का मुकाबला करने के लिए अमेरिका समेत कई देश एकजुट हैं। अरुणाचल को लेकर चीन की गतिविधियों को किस नजरिये से देखना चाहिए यह भी िवचार करने का समय है। बेहतर यही होगा िक चीन सीमा विवाद को उलझाए रखने की बजाय उसे हल करने के लिए ईमानदारी का परिचय दे। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक चीन के इरादों पर संदेह बना रहेगा। यह भी अब स्पष्ट हो चुका है कि भारत अब शक्तिशाली देश बन चुका है भारत हमेशा युद्धप्रेत से ग्रस्त रहा है, वह अब किसी भी ताकत का मुकाबला करने में सक्षम है। पहली बार भारत ने चीन की आंख में आंख डालकर िजस तरह से कड़ा प्रतिरोध जताया है उसकी कल्पना तो चीन ने भी नहीं की होगी। भारत अभी तक अपना अतीत नहीं भूला है। यह बात अलग है कि युग के साथ-साथ युग का धर्म भी बदल जाता है। भारत की सेनाएं सभी चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम हैं। कूटनीति के मर्मज्ञ जानते हैं कि भारत-चीन के संंबंधों में सुधार दुनिया के हित में है और यह दोनों देशों के िहत में भी है।