‘‘हिल उठे जिनसे समुंदर, हिल उठे दिशि और अम्बर
हिल उठे जिससे धरा के, वन सघन कर शब्द हर हर
उस बंवडर के झकोरे किस तरह इंसान रोके
कौन यह तूफान रोके, कौन यह तूफान रोके।’’
प्रचंड महातूफान बिपरजॉय गुजरात के तटीय क्षेत्रों से टकराया। समुंदर की लहरों में उछाल आया। घर ढहे, पेड़ उखड़े, बिजली के खम्भे गिरे। चारों तरफ प्रलय नजर आई लेकिन जान का नुक्सान नहीं हुआ। दुर्भाग्यपूर्ण घटना में भावनगर जिले में बाढ़ में फंसी अपनी बकरियों को बचाने की कोशिश के दौरान पिता-पुत्र की मौत हो गई। पेड़ गिरने और अन्य छिटपुट घटनाओं में कुछ लोग घायल भी हुए, लेकिन भारत ने महातूफान से लड़ाई लड़ी और इस लड़ाई में भारत जीत गया। तूफान तो पहले भी आते थे। भारत में कई तूफान आए और चले गए। जिस तरह से अब तूफान की दिशा गति और टकराव की सही स्थान की सटीक जानकारी मौसम विभाग ने दी है वह शत-प्रतिशत सच साबित हुई। इससे स्पष्ट है कि भारत ने आपदा में प्रबंधन करना सीख लिया है। जिस तरह से एनडीआरएफ के जवानों, सुरक्षा बलों के जवानों और स्थानीय प्रशासन के साथ समुद्री तटों के साथ-साथ मैदानी इलाकों में अपनी जान जोखिम में डालकर हर मोर्चे पर काम किया उसकी सराहना की जानी चाहिए। गुजरात, महाराष्ट्र की सरकारों ने भी काफी सतर्कता बरती और प्रशासन दिन-रात सतर्क रहा।
प्रकृति के दो रूप होते हैं, दयालु और साथ ही आक्रामक। इसके मानव जाति को सबसे अधिक बार लेकिन ऐसे समय दर्शन होते हैं। जब यह आक्रामक हो जाती है तो यह भयावह तबाही लाती है। प्राकृतिक आपदा एक प्रतिकूल घटना है जो पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होती है। एक प्राकृतिक आपदा से सम्पत्ति को नुक्सान और जीवन की हानि हो सकती है। सुनामी, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूकम्प प्राकृतिक आपदाएं हैं।
कोई भी देश आपदाओं से सुरक्षित नहीं है, इसलिए भारत भी अपनी भौगोलिक स्थिति और विविध जलवायु के कारण एक अत्यधिक आपदाओं वाला देश है। केरल में बाढ़, तमिलनाडु और ओडिशा में चक्रवात, उत्तर भारत में भूकम्प जैसी कई आपदाएं हुईं। कोई समय था जब हमारे पास मौसम की सटीक भविष्यवाणी करने की कोई ठोस तकनीक नहीं थी। लोग मौसम विभाग का मजाक उड़ाते थे। समय के साथ-साथ भारत सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों और देश के लोगों पर आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न संस्थाओं, फंडों की स्थापना की। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, नेशनल रिमोट सेंसिंग सैंटर, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, केन्द्रीय जल आयोग जैसे संगठन स्थापित किए। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल तैयार किया।
भारत के आपदा प्रबंधन माडल में ओडिशा की भूमिका काफी अग्रणी रही है। बंगाल की खाड़ी के तट पर बसा भारत का पूर्वी राज्य ओडिशा अक्सर चक्रवात, बाढ़ और कभी-कभी सुनामी की चपेट में आता है। यही वजह है कि ओडिशा को आपदा राज्य कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने ओडिशा की तैयारी की वैश्विक सफलता की कहानी के रूप में मान्यता दी और दूसरे शहरों के लिए भी इसे माडल के तौर पर इस्तेमाल की योजना बनाई। ओडिशा के तट पर बसे दो गांवों, गंजम जिले का वेंकटारायपुर और जगतसिंहपुर जिले के नोलियासाही को यूनेस्को इंटरगवर्नमेंटल ओशियाना ग्राफिक कमीशन से सुनामी के लिए तैयार की मान्यता मिली। इसकी वजह से हिन्द महासागर के क्षेत्र में भारत पहला ऐसा देश बना जिसने सामुदायिक स्तर पर इस तरह की आपदा से निपटने की तैयारी की है। 1999 में ओडिशा ने एक सुपर साइक्लोन का सामना किया था, जिसमें दस हजार लोगों की मौत हो गई थीं। उस वक्त के दुर्भाग्यपूर्ण अनुभव ने राज्य को 480 किलोमीटर लम्बे तट पर बहुउद्देशीय चक्रवाती आश्रयस्थल बनाने के लिए प्रेरित किया जो सामुदायिक रसोई और जीवन बचाने वाले उपकरणों से लैस थे। ओडिशा के आपदा प्रबंधन को अन्य राज्य ने भी अपनाया। सुपर साइक्लोन फनी के दस्तक देने से पहले ही ओडिशा ने 12 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा कर रिकार्ड बना दिया था। कोरोना महामारी के बीच तौकते तूफान आने से पहले ही गुजरात सरकार ने 2 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। इस बार गुजरात सरकार ने बहुत कम समय में एक लाख लोगों को स्थानों पर पहुंचाया। आपदा प्रबंधन की व्यापक व्यवस्था अब हमारे पास है। विज्ञान की मदद से हम काफी प्रगति कर चुके हैं। अब भारत महातूफानों को हराने की क्षमता रखता है।