लद्दाख सीमा : कलाकार चीन - Punjab Kesari
Girl in a jacket

लद्दाख सीमा : कलाकार चीन

पिछले तीन वर्ष पहले इन्हीं दिनों में लद्दाख की सीमा में किये गये चीनी अतिक्रमण के जवाब में

पिछले तीन वर्ष पहले इन्हीं दिनों में लद्दाख की सीमा में किये गये चीनी अतिक्रमण के जवाब में भारत लगातार जिस तरह सब्र का परिचय देते हुए चीन को वार्ता की मेज पर लाकर उसे जवाब देने का प्रयास सैनिक व कूटनीतिक माध्यमों से कर रहा है, उसका असर चीन पर बस इतना हो रहा है कि वह हर वार्ता के बाद भारतीय क्षेत्रों से थोड़ा पीछे हटता है और फिर एंठ दिखाने लगाता है। चीन जून 2020 में लद्दाख के सीमा क्षेत्र में अतिक्रमण करके जो गुस्ताकी की थी उसमें भारत के 20 वीर जवान शहीद हुए थे। हालांकि उनकी शहादत का हिसाब उसी वक्त चुकता कर दिया गया था मगर इससे यह नतीजा तो निकल ही गया था कि चीन की मंशा भारत के सीमा क्षेत्रों पर कब्जा करने की है। चीन ऐसी मंशा तब जाहिर कर रहा है जब 90 के दशक में दोनों देशों के बीच की वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर पूर्ण शान्ति व चैन करने के बारे में कई समझौते हो चुके हैं। चीन लगातार इन समझौतों को ताक पर रखकर अपनी मनमानी इसके बाद भी करता रहा है और बार-बार यह दलील देता रहा है कि कोई स्पष्ट अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा होने की वजह से उसके सैनिक अपनी अवधारणा के अनुसार अतिक्रमण कर बैठते हैं। जबकि हकीकत ऐसी नहीं है। 
1962 के युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच वास्तविक नियन्त्रण रेखा खिंच गई थी। हालांकि तब के प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने इसे चीन की इकतरफा कार्रवाई ही माना था क्योंकि पं. नेहरू मानते थे कि 1914 में भारत-तिब्बत व चीन के बीच ​खिंची मैकमोहन लाइन ही अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा हो सकती है परन्तु चीन ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया और 1914 में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के शिमला में बैठ कर इन तीन देशों की बैठक में जो मैकमोहन लाइन तय की थी उसी बैठक का चीन ने यह कहते हुए बहिष्कार कर दिया था कि तिब्बत कोई स्वतन्त्र देश नहीं है और वह चीन का ही अंग है। पं. नेहरू ने चीन की यह दलील जीते-जी कभी स्वीकार नहीं की और 1959 में चीन द्वारा तिब्बत को कब्जाने के बाद उन्होंने इस देश के नेता दलाई लामा को भारत में अपनी निर्वासित सरकार गठित करने की अनुमति दी।  इसके बाद से 2003 तक भारत का रुख तिब्बत को लेकर यही रहा परन्तु 2003 में केन्द्र की वाजपेयी सरकार ने तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार कर लिया और बदले में चीन ने सिक्किम को भारत का अंग कबूल कर लिया परन्तु इसके तुरन्त बाद चीन ने भारत के अरुणाचल प्रदेश पर अपना अधिकार जताना शुरू कर दिया। 
 तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार करके भारत के हाथ से कूटनीतिक अस्त्र निकल चुका था जो अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ चीन की मंसूबा बन्दी को तार-तार करने की कूव्वत रखता था। अगर गौर से देखें तो इसके बाद 2004 में केन्द्र में गठित मनमोहन सरकार ने वाजपेयी द्वारा छोड़ी गई विरासत में इस प्रकार संशोधन करना चाहा जिससे सांप भी मर जाये और लाठी न टूटे। इस नीति के निर्माता उस समय के मनमोहन सरकार के रक्षा मन्त्री स्व. प्रणव मुखर्जी थे। उन्होंने वाजपेयी सरकार द्वारा दोनों देशों के बीच सीमा विवाद हल के लिए प्रस्तावित उच्च वार्ता तन्त्र गठित करने के मसौदे को आगे बढ़ाया और इसका गठन किया जिसमें भारत की ओर से इसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीन की ओर से समकक्ष मन्त्री को होना था। प्रणव दा ने इस वार्ता तन्त्र में बहुत ही खूबी के साथ यह शर्त भी रखवा दी कि सीमा क्षेत्रों में जिस इलाके में जिस देश का शासन होगा वह क्षेत्र उसी का माना जायेगा। इस वार्ता तन्त्र की अभी तक 18 बैठकें हो चुकी हैं मगर नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है क्योंकि चीन ने इस बीच लद्दाख में नया मोर्चा खोल रखा है। 
भारत इस मोर्चे पर उलझा हुआ है और वह चीन को रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह की अगुवाई में ऐसा सबक सिखाने की राह पर आगे बढ़ना चाहता है कि भारत की आने वाली पीढ़ियां चीन की तरफ से बेफिक्र हो सकें। जब से जून 2020 में लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं की झड़प हुई है तब से लेकर अब तक उच्च सैनिक स्तर की 28 द्विपक्षीय वार्ताएं हो चुकी हैं और श्री सिंह के निर्देशन में भारतीय सेनाओं को इस मोर्चे पर यह सफलता मिली है कि चीन कब्जाये गये इलाके से पीछे हट रहा है। मगर इसके बावजूद चीन भारतीय क्षेत्रों में ही उदासीन भूमि का इलाका बना रहा है जिसे नो मन्स लैंड कहते हैं। श्री सिंह को यह कतई मंजूर नहीं है, इसीलिए उन्होंने पिछले महीने भारत में होने वाले शंघाई सहयोग सम्मेलन के सिलसिले में आये चीनी रक्षा मन्त्री से बेबाक तरीके से कह दिया कि जब तक सीमा पर चीन के रवैये में परिवर्तन नहीं होता तब तक दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सामान्य नहीं हो सकते। राजनाथ सिंह ही ऐसी दो टूक बात चीन के रक्षामन्त्री से कह सकते थे जिससे विदेश मन्त्री एस. जयशंकर को चीन से कूटनीतिक वार्ता करते समय न केवल सुविधा हो बल्कि उनका हाथ भी ऊंचा रहे। मगर चीन की कलाकारी देखिये कि नई दिल्ली में उसने वास्तविक नियन्त्रण रेखा की लद्दाख में स्थिति के बारे में हुई बैठक में फैसला किया कि हल निकालने के लिए सैनिक स्तर की एक और बैठक हो।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।