चीतों की कब्रगाह बनता कूनो - Punjab Kesari
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चीतों की कब्रगाह बनता कूनो

कूनो नैशनल पार्क चीतों की कब्रगाह बन चुका है।

कूनो नैशनल पार्क चीतों की कब्रगाह बन चुका है। नामीबिया से लाए गए एक और चीते सूरज की मौत के साथ ही आठ चीतों की मौत हो चुकी है। इससे पहले तेजस नाम के चीते का शव मिला था। तेजस के आंतरिक अंग गंभीर रूप से घायल पाए गए। अब कूनो में केवल 15 चीते बचे हैं और चीता प्रोजैक्ट से जुड़े अधिकारियों की चिंता भी बढ़ गई है। चीतों की कभी बीमारी से या आपसी हिंसक मुठभेड़ों में मौतें हो चुकी हैं। इससे पूरे प्रोजैक्ट पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। अब चीतों की मौत के कारण तलाशे जा रहे हैं लेकिन अभी तक चीतों की सुरक्षा को लेकर उपाय ही ढूंढे जा रहे हैं। 17 सितम्बर 2022 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्म दिवस पर नामीबिया से लाए गए आठ चीतों काे कूनो नैशनल पार्क में रिलीज किया था और इस साल 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को लाकर कूनो में छोड़ा गया। पहले यह कहा गया था कि नामीबिया और भारत की जलवायु मैं बड़ा फर्क है। नामीबिया में औसत वार्षिक तापमान 20.6 डिग्री सेल्सियस रहता है। जबकि नवंबर से मार्च के महीने में औसत तापमान 24 डिग्री सेल्सियस और जून तथा जुलाई में 16 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। जबकि औसत वार्षिक वर्षा 269.2 मिमी के आसपास होती है। दक्षिण अफ्रीका में औसत वार्षिक तापमान 17.5 डिग्री सेल्सियस है। दिसंबर से जनवरी में औसत मासिक तापमान 22 डिग्री सेल्सियस और जून से जुलाई में 11 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। जबकि वार्षिक वर्षा 469.9 मिमी होती है।
जबकि कूनो नैशनल पार्क की वेबसाइट के मुताबिक मध्य प्रदेश में मार्च से जून के बीच आमतौर पर गर्मी के महीने होते हैं। औसत तापमान 42.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया जाता है। अक्तूबर से मध्य मार्च तक शीत ऋतु आती है। दिसंबर और जनवरी के महीने विशेष रूप से ठंडे होते हैं, जिनका औसत न्यूनतम तापमान क्रमशः 7.27 और 6.3 डिग्री सेल्सियस होता है। अगस्त सबसे नम महीना है। जिसमें औसतन 30.4 सेमी वर्षा होती है।
मौसम को लेकर सवाल उठाने के बाद अब नई थ्योरी सामने आई। विशेषज्ञों ने दावा किया है कि चीतों की मौत का कारण उनके गले में बंधा रेडियो कॉलर हो सकता है। दक्षिण अफ्रीकी चीता विशेषज्ञ ने कहा है कि अत्यधिक उमस के कारण रेडियो कॉलर संक्रमण पैदा कर रहे हैं जिसके चलते सैप्टीसीनिया हो सकता है। यह संभव है कि रेडियो कॉलर के इस्तेमाल में असामान्य व्यवहार और उमस भरा मौसम संक्रमण का कारण बन सकता है। दूसरी ओर चीता परियोजना संचालन समिति से जुड़े लोगों का कहना है कि भारत में पिछले 25 वर्षों से वन्य जीव संरक्षण के लिए कॉलर का इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारे पास अच्छे स्मार्ट कॉलर उपलब्ध हैं लेकिन पहले ऐसी कोई घटना नहीं हुई। रेडियो कॉलर से मौतों का दावा किसी वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नहीं है बल्कि यह अटकलों पर आधारित है। प्रबंधकों कहना है कि चीतों की मौतें प्राकृतिक कारणों से हुई। हालांकि प्रबंधकों में दस चीतों की रेडियो कॉलर हटाने का फैसला किया है। चीतों की मौत के बाद पर्यावरण मंत्रालय भी काफी सक्रिय हो गया है और उसने चीता परियोजना का सहयोग करने के लिए कई कदमों की योजना बनाई है जिसमें बचाव पुनर्वास, क्षमता निर्माण सुविधाओं के साथ चीता अनुसंधान केन्द्र की स्थापना शामिल है।
चीतों की मौतों के कारणों की जांच के लिए अंतर्राष्ट्रीय चीता विशेषज्ञों और दक्षिण अफ्रीका तथा नामीबिया के पशु चिकित्सकों से परामर्श किया जा रहा है। पहले यह दावा किया गया था कि चीतों की मौत हिंसक संघर्ष के कारण हुई है लेकिन रेडियो कॉलर के नीचे दबी चीतों की स्किन में घाव पाए जाने के बाद अब इसे हटाने का फैसला किया गया है। बड़े पैमाने पर शिकार के कारण भारत में सबसे तेज गति से चलने वाले स्तनपायी जीव चीते के अाधिकारिक तौर के विलुप्त होने के 7 दशक बाद कूनो नैशनल पार्क चीतों से गुलजार हुआ था लेकिन एक के बाद एक मौतों ने सवालिया निशान खड़े कर दिए। अब इन मौतों की समीक्षा की जा रही है। अब अतिरिक्त वन क्षेत्रों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान के प्रशासनिक नियंत्रण में लाने की तैयारी कर ली गई है और चीतों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त फ्रंट लाइन स्टाफ की तैनाती भी की जाएगी और एक चीता सुरक्षा बल की स्थापना की जाएगी। मध्यप्रदेश के गांधी सागर वन्य जीवन अभ्यरण्य में चीतों के लिए एक दूसरे रहवास की योजना भी तैयार की जा रही है। चीता परियोजना की सफलता, विफलता का आंकलन करना अभी जल्दबाजी होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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