किम-पुतिन मुलाकात : अर्थ बहुत गहरे - Punjab Kesari
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किम-पुतिन मुलाकात : अर्थ बहुत गहरे

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भले ही उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किम जोंग को वार्ता के लिये मजबूर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भले ही उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किम जोंग को वार्ता के लिये मजबूर कर उन्हें अपना ट्रम्प कार्ड समझने लगे हों लेकिन किम जोंग अब ट्रम्प से अपना कठिन वार्ताकार होने का परिचय दे रहे हैं। यह सही है कि आज की दुनिया का वातावरण आर्थिक भूमंडलीकरण के बावजूद सामरिक ताकत के साये में पनाह लेना चाहता है। उत्तर कोरिया भी सामरिक ताकत बनने के लिये परमाणु कार्यक्रम, मिसाइल कार्यक्रम चला रहा था। यदि ऐसा नहीं होता तो किम जोंग ट्रम्प से बातचीत करने से पहले परमाणु परीक्षण स्थलों को नष्ट करने का प्रदर्शन क्यों करता।

अमेरिका और उसके मित्र देशों ने उत्तर कोरिया पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये हुये हैं जबकि उसके कूटनीतिक संबंध कुछ गिने-चुने देशों से हैं। उत्तर कोरिया दुनिया की बदलती फिजां के बावजूद अपने ही बनाये संसार में जी रहा है मगर ऐसा भी नहीं माना जा सकता कि उत्तर कोरिया के निर्माता कामरेड किम इल सुंग के पोते किम जोंग उन को बाहर की दुनिया की खबर न हो। इसलिये पड़ोसी देश चीन से उन्होंने गहरे सम्बन्ध स्थापित किये हुये हैं। किम जोंग उन बार-बार चीन की यात्रा कर वहां के शीर्ष नेतृत्व से विचार-विमर्श करते हैं और उनसे परामर्श लेते हैं। किम जोंग उन ने अब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की।

इस मुलाकात के बाद कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया गया, न ही कोई साधारण सा बयान ही आया। पुतिन ने किम जोंग का जोरदार स्वागत किया। दोनों नेताओं के दिमाग में क्या है, इसका अनुमान लगाना कठिन है लेकिन इतना तय है कि भविष्य में उत्तर कोरिया-रूस के सम्बन्ध काफी प्रगाढ़ होंगे। इस मुलाकात के अर्थ बहुत गहरे हैं इसलिये अमेरिका बहुत ज्यादा परेशान है। पूरी दुनिया की नजरें दोनों की मुलाकात पर लगी हुई थीं। इससे पहले पुतिन 2002 में व्लादिवोस्तोक में ही किम के पिता और तत्कालीन उत्तर कोरिया प्रमुख किम जोंग इल से मिले थे। किम जोंग उन अपने विदेशी रिश्तों को दोबारा धार देने में लगे हुये हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका के परिणाम स्वरूप जापान के नियंत्रण से छूटे संयुक्त कोरिया के लोग जिस तरह बाद में शीत युद्ध के चक्रव्यूह में फंसे उससे इस देश का दो भागों दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया में बंटवारा हो गया। ये दोनों देश अमेरिका, रूस और जापान के प्रभाव क्षेत्रों में चले गये। उत्तर कोरिया कामरेड किम इल सुंग के नेतृत्व में चीन और रूस की मदद से साम्यवादी समाज शासन व्यवस्था का गढ़ बन गया और दक्षिण कोरिया में अमेरिकी प्रभाव में पंूजीवादी बाजार व्यवस्था का प्रसार होता गया। द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका और रूस एक ही पाले में खड़े थे लेकिन वह भी संयुक्त कोरिया के विभाजन को रोक नहीं पाये और जापान की पराजय के बाद दोनों ही देश अपना-अपना क्षेत्रीय दबदबा कायम रखने में उलझ गये।

आज के कोरियाई देशों में हम जो कुछ भी देख रहे हैं उसकी जड़ें 70 वर्ष पहले के घटनाक्रम से जुड़ी हुई हैं। शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के उत्तर कोरिया से नजदीकी सैन्य और व्यापारिक सम्बन्ध थे। इसके पीछे वैचारिक और राजनीतिक कारण थे। 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस और उत्तर कोरिया के बीच व्यापारिक सम्बन्ध कमजोर हो गये और उत्तर कोरिया ने चीन को अपना मुख्य सहयोगी बना लिया। राष्ट्रपति पुतिन के शासन में रूस आर्थिक रूप से मजबूूत हुआ और 2014 में उत्तर कोरिया का सोवियत संघ काल में लिया गया ज्यादातर कर्ज माफ कर दिया है। अमेरिका की ही तरह चीन और रूस भी उत्तर कोरिया के परमाणु राष्ट्र होने से असहज हैं लेकिन प्रभुत्व की लड़ाई जारी है। अमेरिका से बातचीत विफल होने के बाद किम जोंग यह दिखाना चाहते हैं कि उसके पास भी शक्तिशाली सहयोगी हैं। वह यह भी दिखाना चाहते हैं कि उत्तर कोरिया आर्थिक भविष्य के लिये अमेरिका पर निर्भर नहीं है। उसके पास चीन है, रूस है।

किम जोंग और पुतिन की मुलाकात के बाद उत्तर कोरिया के लिये अमेरिका के अलावा रूस से वार्ता, समझौता करने का विकल्प खुल गया है। उत्तर कोरिया मिसाइल परीक्षण को लेकर उस पर लगाये गये संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों का लगातार उल्लंघन करता आ रहा है। ट्रंप और किम की मुलाकातें शुरू हुईं तो ऐसा लगा था कि रूस को पूरी तरह किनारे कर दिया गया है। रूस चाहता है कि उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया के साथ चार देश अमेरिका, रूस, चीन, जापान वार्ता यानि सिक्स पार्टी टॉक करके मामले को सुलझाये लेकिन ट्रंप ने तेवर तीखे कर लिये थे और उत्तर कोरिया को उड़ा देने की धमकियां देने लगे थे। उत्तर कोरिया एकतरफा तौर पर अपने परमाणु हथियार नष्ट करने को तैयार नहीं। उसका कहना है कि दक्षिण कोरिया और उसका सामरिक सहयोगी अमेरिका भी अपने हथियारों को नष्ट करे।

परमाणु निरस्त्रीकरण समझौता बराबरी का होना चाहिए। 1986 में स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव रखा था कि सभी देशों को अपने-अपने परमाणु हथियार समुद्र में डुबो देने चाहियें तभी दुनिया में बराबरी का वातावरण बन सकता है लेकिन बड़ी शक्तियां अभी भी परमाणु कार्यक्रम जारी रखे हुये हैं। पुतिन से मुलाकात के बाद किम जोंग ने ट्रंप और अमेरिका विरोधी बयान दिये हैं। देखना होगा कि रूस का अगला कदम क्या होगा? फिलहाल रूस ने यह दिखा दिया है कि कोरियाई प्रायद्वीप में वह भी एक अहम किरदार है और उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता।

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