इस इंटरनेट के युग में धर्म, जाति की ही नहीं बल्कि देशों की सीमाएं भी टूट रही हैं। हर साल पचासों हजार अन्तर्राष्ट्रीय शादियां हो रही हैं। इस दौर में भी भारत में ऑनर किलिंग के मामले होना शर्मनाक हैं। निश्चित रूप से इसकी बहुत बड़ी वजह यह है कि समाज में महिलाओं की स्थिति आज भी दोयम दर्जे की है। कभी क्रूर पंचायतें खूनी फरमान सुना देती हैं तो कभी क्रूर अभिभावक झूठी शान के लिए हत्याएं कर देते हैं।
तमिलनाडु और पंजाब आधुनिक विचारों को सबसे पहले अपनाने वाले राज्य इसलिए बने क्योंकि इसमें महिलाओं और पुरुषों के निजी अधिकारों के बीच ज्यादा भेदभाव नहीं किया गया मगर इन राज्यों में भी ऑनर किलिंग की घटनाएं होती रहती हैं। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में तो खाप पंचायतों ने धर्म, जाति और गोत्र के नाम पर कई जोड़ों पर कहर बरपाया है। दरअसल उत्तर भारत के कौरवी (महाभारत कालीन राज्य) इलाके में दिल्ली (इन्द्रप्रस्थ) के बहुत करीब होने की वजह से मुगलकाल के अंतिम दौर के बादशाह औरंगजेब की मजहबी कट्टरता की वजह से यहां के लोग लगातार अपनी महिलाओं को घर के भीतर ही रखने के लिए मजबूर बने रहे, जो चलते-चलते उन्हें अपनी परम्परा और रवायत लगने लगी। यही वजह है कि ग्रामीण लोग अपनी उसी पुरानी दकियानूसी प्रवृत्ति को लागू रखना चाहते हैं मगर इस मानसिकता का आज की सदी की नई पीढ़ी से कोई लेना-देना नहीं है।
नई पीढ़ी के वक्त के साथ चलने के अंदाज से पुरानी पीढ़ी को अपनी परम्परा के टूटने का खतरा पैदा हो जाता है और वह ऑनर किलिंग की हद तक पहुंच जाती है। तमिलनाडु के तिरुपर में 2016 में ऑनर कि लिंग के बहुचर्चित मामले में मद्रास हाईकोर्ट का फैसला आ गया है। कोर्ट ने सबूतों के अभाव में मुख्य आरोपी लड़की के पिता को बरी कर दिया है। लड़की की मां और एक अन्य को बरी कर दिया है और पांच आरोपियों की सजा को फांसी से बदल कर उम्रकैद में तब्दील कर दिया है। लड़की कौशल्या के परिवार वालों ने कुमारलिंगम निवासी शंकर की हत्या इसलिए की क्योंकि वह दलित जाति का था। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने कौशल्या से शादी कर ली, जो उच्च जाति की थी। कालेज में पढ़ते वक्त दोनों में प्रेम हो गया था। दोनों ने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की थी, जिससे कौशल्या के परिवार वाले काफी नाराज थे। इसके बाद 13 मार्च, 2016 को कुछ लोगों ने शंकर को बीच बाजार मौत के घाट उतार दिया था। इस हमले में कौशल्या भी बुरी तरह घायल हुई थी।
यह मामला चर्चित इसलिए भी हुआ क्योंकि न्याय के लिए कौशल्या ने अपने माता-पिता के खिलाफ खुद लड़ाई लड़ी। पति की मौत के बावजूद वह ससुराल में ही रह रही है। कौशल्या मद्रास हाईकोर्ट के फैसले से खुश नहीं है। उसका कहना है कि अपने मां-बाप को सजा दिलाए जाने तक वह चैन से नहीं बैठेगी और हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देगी। प्रायः देखा गया है कि ऑनर किलिंग के मामलों में लड़कियां टूट जाती हैं और इंसाफ पाने की कोई कोशिश नहीं करतीं। वह परिवार के दबाव में आ जाती हैं। यह पहला ऐसा मामला है जिसमें पीड़िता खुद इंसाफ पाने के लिए लड़ रही है। मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद ऑनर किलिंग की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने की मांग तमिलनाडु में उठने लगी है। यह सवाल भी उठने लगा है कि अगर कौशल्या के पति को कौशल्या के मां-बाप ने नहीं मारा तो फिर शंकर को किसने मारा। मां-बाप शंकर हत्याकांड की साजिश में तो शामिल रहे होंगे, उन्हें निर्दोष कैसे करार दिया जा सकता है।
समस्या यह भी है कि समूचा राष्ट्र धार्मिक एवं सम्प्रदायों के आधार पर बंट चुका है तथा नागरिकों का अपने-अपने सम्प्रदायों एवं जातियों के लिए प्रेम बढ़ता जा रहा है। अब देशहित में सोचना होगा और राष्ट्र एवं समाज का बंटवारा रोकने के ऐसे प्रयास करने होंगे ताकि सामाजिक न्याय का कट्टरपंथी एवं विभाजक मॉडल खत्म हो जाए। यह समय महिलाओं को बेड़ियों में जकड़ने का नहीं बल्कि उनकी निजी स्वतंत्रता का सम्मान रखने का है।
सच तो यह है कि आजादी के 73 वर्षों बाद भी यहां का समाज सदियों पुरानी जाति, बिरादरी और धर्म की दकियानूसी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। प्यार करने वालों को किसी तरह की कोई आजादी हासिल नहीं है। अगर कोई इस बेड़ी को तोड़ने की कोशिश करता है तो उसके साथ बर्बर सलूक किया जाता है। ऐसा कोई साल नहीं जाता जब चार-पांच प्रेमी जोड़े मौत के घाट न उतारे जाते हों या उन्हें दूसरी खौफनाक सजाएं न दी जाती हों। ऑनर किलिंग का विरोध तो देशभर में होना ही चाहिए। फिलहाल कौशल्या इंसाफ मांग रही है। इंसाफ के लिए उसे फिर से लम्बी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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