जजों की नियुक्तियों में न्याय और पारदर्शिता - Punjab Kesari
Girl in a jacket

जजों की नियुक्तियों में न्याय और पारदर्शिता

NULL

अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी को न्यायपालिका ने समय-समय पर बखूबी निभाया है, उसकी निष्ठा संदेह से परे है लेकिन अगर कभी उसकी मंशा और पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं तो उसे दूर करने की जिम्मेदारी भी न्यायपालिका की ही होनी चाहिए। 2014 में संसद ने जजों द्वारा जजों की नियुक्ति करने वाली कालेजियम प्रणाली की जगह न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून (एनजेएसी) पारित किया। इसका उद्देश्य यह था कि न्यायपालिका के पारदर्शी पर्दे को और झीना किया जाए। इसलिए सरकार और समाज को भी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल कर न्यायिक नियुक्ति आयोग का प्रावधान किया गया लेकिन इस मुद्दे पर कार्यपालिका और न्यायपालिका में टकराव हो गया था। कार्यपालिका के इस कदम को न्यायपालिका ने अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता पर अतिक्रमण करार देते हुए एनजेएसी अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया था।

जजों द्वारा जजों की नियुक्ति वाली कालेजियम प्रणाली के फिर से लागू होते ही नियुक्तियो में पारदर्शिता का मुद्दा जोर पकड़ चुका था। कार्यपालिका और न्यायपालिका में टकराव के चलते भी जजों की नियुक्तियों में विलम्ब हुआ। १४वीं लोकसभा के अंतिम सत्र में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने अपनी शिकायत बहुत खूबसूरत अंदाज में पेश की थी। उन्होंने कहा था-च्च्मैं अब भी मानता हूं कि भारत तीन चीजों में विशिष्ट है, संसद द्वारा टैलीविजन चैनल चलाना, न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों को नियुक्त करना और सांसदों द्वारा अपना ही वेतन निर्धारित करना।ज्ज् सोमनाथ चटर्जी के कहे शब्दों ने जनप्रतिनिधियों को गंभीरता से सोचने को विवश कर दिया था। फिर उच्च अदालतों में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए, तब यूपीए सरकार ने भी महसूस किया था कि जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की प्रणाली में परिवर्तन किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में कार्यपालिका की भूमिका अधिक निर्णायक होनी चाहिए।

जजों की नियुक्तियों में उसकी भूमिका महज एक डाकिए से अधिक नहीं। भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में एक कालेजियम बना हुआ है, जिसके अनेक जज सदस्य हैं। हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति कालेजियम के सदस्य आपसी सलाह-मश​िवरे से करते हैं और जिन व्यक्तियों को जज नियुक्त करना होता है, उनके नाम सरकार को भेजे जाते हैं। सरकार उनके नाम राष्ट्रपति को भेजती है, जिनके द्वारा आधिकारिक तौर पर जजों की नियुक्ति की घोषणा की जाती है। जब संसद ने न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून पारित किया तो न्यायपालिका ने इसे सत्ता द्वारा नियुक्ति की प्रक्रिया को च्हाईजैकज् करना करार दिया। भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर ने कहा था कि न्यायपालिका स्वतंत्र होनी चाहिए क्योंकि च्निरंकुश शासनज् के दौरान उसकी अपनी एक भूमिका होती है। न्यायपालिका न्यायाधीशों के चयन में कार्यपालिका पर निर्भर नहीं रह सकती।

न्यायपालिका और कार्यपालिका को च्लक्ष्मण रेखाज् के भीतर ही रहना चाहिए। दूसरी ओर काॅलेजियम प्रणाली को लेकर ​न्यायाधीशों के विचारों में भिन्नता भी पाई गई। इसकी खामियों का कहीं न कहीं न्यायपालिका को भी अहसास रहा तभी तो इतिहास में पहली बार इस संस्था ने अपनी ही खामियों को दूर करने के लिए सरकार से सुझाव मांगे थे। देश का हर व्यक्ति जानता है कि सिर्फ स्वतंत्र और सक्षम न्यायिक व्यवस्था ही समाज में भरोसा कायम रख सकती है। स्वतंत्र और सक्षम न्यायपालिका तब होगी जब उसमें पारदर्शिता आएगी। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने कहा था कि कालेजियम सिस्टम पूरी तरह विफल हो गया है। इसलिए सात सदस्यीय राष्ट्रीय न्यायिक आयोग बनना चाहिए। आयोग नियुक्तियों से पहले पूरी तरह जांच-पड़ताल करे तब उनकी नियुक्ति करे। लोगों को यह जानने का अधिकार हो कि किस तरह के लोग बतौर जज नियुक्त किए जा रहे हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति से संबंधित कालेजियम के फैसले को सार्वजानिक करने का फैसला किया है। यह अपने आप में ऐतिहासिक फैसला है। अब सुप्रीम कोर्ट कालेजियम के सदस्य जजों की नियुक्ति के नामित किसी भी उम्मीदवार का चयन या खारिज करने के कारण सार्वजनिक करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट के 2015 के मोदी सरकार के बनाए एनजेएसी को अवैध घोषित करने के बाद जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया लम्बित रही थी। अब जब सुप्रीम कोर्ट काॅलेजियम की सिफारिशों पर सरकार ने नियुक्तियां शुरू की हैं तो कालेजियम ने भी अपनी तरफ से ज्यादा पार​दर्शिता की पेशकश की है। अब कालेजियम का फैसला पूरे तर्कों के साथ सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर दिखाई देगा। काॅलेजियम ने यह कदम उस समय उठाया है जब सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व पदाधिकारियों तक ने जजों की निष्ठा पर सवाल उठाए थे। कालेजियम के भीतर मतभेद सार्वजनिक हो गए थे। अब काॅलेजियम के सदस्य जजों ने यह फैसला लेकर कई कदम आगे बढ़ाने का रास्ता साफ कर दिया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

5 + eighteen =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।