डर के साये में जिनपिंग - Punjab Kesari
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डर के साये में जिनपिंग

दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के नहीं आने की पुष्टि तो पहले

दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के नहीं आने की पुष्टि तो पहले ही हो चुकी थी। पुतिन तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर बातचीत के दौरान अपने न आने पर खेद जता चुके हैं। वे अपनी जगह रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लाबरो को भेज रहे हैं। चीन ने भी आधिकारिक बयान में साफ कर दिया है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत नहीं जा रहे बल्कि उनकी जगह चीन के प्रधानमंत्री ली क्यांग शिखर सम्मेलन में चीन का प्रतिनिधित्व करेंगे। ब्लादिमीर पुतिन के न आने की वजह यूक्रेन-रूस युद्ध और घरेलू परिस्थितियां हैं। चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग का स्वयं न आना भारत के लिए कोई आश्चर्जनक बात नहीं है। 2013 में राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार सम्भालने के बाद जिनपिंग ने 2021 में रोम जी-20 के अलावा हर जी-20 सम्मेलन में व्यक्तिगत और आभासी सम्मेलन में भाग लिया है, जब चीन कोरोना महामारी की चपेट में था। पिछले वर्ष जिनपिंग ने बाली जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लिया था। कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में ​ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर जिनपिंग से बात भी हुई थी।
सवाल यह है कि जिनपिंग भारत क्यों नहीं आ रहे। 1980 के दशक में संबंधों के सामान्य होने के बाद से भारत आैर चीन के रिश्ते निम्न स्तर पर हैं। 28 अगस्त को चीन ने अरुणाचल प्रदेश, आक्साईचिन और दक्षिणी चीन सागर को चीनी क्षेत्र में दिखाया गया,​ जिसका भारत ही नहीं बल्कि मलेशिया और ​ फिलीपींस ने भी कड़ा विरोध किया था। यह स्पष्ट है कि क्षेत्रीय  विवादों के बीच एक नया मानचित्र जारी कर ​विवादों को अधिक जटिल बना दिया है। 2019 में भारत ने जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया और जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बना डाला तब भी चीन ने एक नक्शा जारी कर विवाद खड़ा किया था। चीन ने भारत के साथ संबंधों में विश्वास पैदा करने की कोई कोशिश नहीं की। चीन ने कभी भी अपने पड़ोसियों के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखाई। इस तरह मेल-मिलाप की सम्भावनाएं भी क्षीण होती गई। इस समय चीन की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो रही है और वहां बेरोजगारी बढ़ गई है और एक तरह से मंदी छा चुकी है और आर्थिक गति​ि​वधियां ठप्प हो कर रह गई हैं।
भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच एक बैठक के संभावित अवसर के रूप में भी देखा गया है। बाइडेन ने इस सम्मेलन में अपनी उपस्थिति की पुष्टि की है। अमेरिका इन दिनों चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों को स्थिर करने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, चीन ने शी जिनपिंग की योजनाओं को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन विश्लेषकों ने अनुमान लगाया कि बीजिंग को लगता है कि भारत-चीन तनाव के कारण शी जिनपिंग को जी-20 में विशेष रूप से गर्मजोशी से स्वागत मिलने की संभावना नहीं है। कई यूरोपीय देश यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस को चीन के समर्थन को लेकर सावधान हैं। वहीं दूसरी ओर अमेरिका जापान और दक्षिण कोरिया के साथ चीन विरोधी खेमा बना रहा है। ऐसे में उन्होंने जी-20 से दूरी बनाने का फैसला खुद की इज्जत बचाने के लिए किया होगा।
जिनपिंग की जी-20 सम्मेलन से दूरी इस बात की ओर संकेत करती है कि कोरोना वायरस से लेकर साऊथ चाईना सी और ताइवान समेत कई मसलों पर चीन घिरा हुआ है। चीन अच्छी तरह से जानता है कि दुनिया उसके देश से खुश नहीं है। जिनपिंग कहीं न कहीं कई देशों से होने वाली घेराबंदी से डरे हुए हैं। चीन पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो चुका है। चीन की​ विस्तारवादी नीति के अलावा चीन का घमंड जिनपिंग के फैसले के बताने के लिए काफी है। चीन को इस बात का घमंड है कि वह दुनिया में सबसे शक्तिशाली है। चीन को इस बात से भी परेशानी थी कि जी-20 की बैठकें जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल में क्यों की जा रही हैं। गलवान झड़प के बाद सीमा पर गतिरोध के बीच भारत ने जिस तरह से सीमा पर चीन का कड़ा प्रतिरोध कि​या उसकी चीन काे भी उम्मीद नहीं थी। जी-20 सम्मेलन के जरिये भारत दुनिया में एक नई शक्ति के तौर पर उभर रहा है। दुनिया के देश  भारत का दमखम देख रहे हैं। चीन को भी इस बात का अहसास है कि अब भारत 1962 वाला भारत नहीं है, बल्कि 2023 वाला भारत है। चीन चाह कर भी भारत को एक बहुपक्षीय मंच का नेतृत्व करने से नहीं रोक सकता। यही कारण है कि जिनपिंग ने नई दिल्ली की यात्रा टाल दी है।

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