इजराइल और युद्ध अपराध - Punjab Kesari
Girl in a jacket

इजराइल और युद्ध अपराध

इजराइल और युद्ध के 39वें दिन गाजा में हमास की संसद पर इजराइली सेना ने कब्जा कर लिया है और वहां अपना झंडा भी फहरा दिया है। हमास के पास ऐसी कोई ताकत नहीं है जो इजराइली सेना आईडीएफ को रोक सके। गाजा में चारों तरफ अराजकता का माहौल है। नागरिक हमास के ठिकानों को लूट रहे हैं। हमास के लड़ाके ​दक्षिण की ओर भाग रहे हैं। युद्ध में अब तक 11 हजार से ज्यादा फिलस्तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं। जबकि 1400 के लगभग इजराइली मारे जा चुके हैं। गाजा के नागरिकों का अब हमास की सरकार में कोई विश्वास नहीं रहा है। हमास की संसद यानि फिलस्तीनी विधान परिषद 2007 से हमास के नियंत्रण में था जिसमें अब इजराइली सैनिक बैठे हुए हैं। कुछ दिन पहले इजराइल ने कहा था​ क गाजा को दो हिस्सों उत्तर और दक्षिण में बांट दिया गया है। उत्तर गाजा की सड़कों पर दर्जनों शव पड़े हुए हैं। अस्पतालों को भी इजराइल ने निशाना बनाया है। ऊल-कुदस अस्पताल और ऊल-शिफा अस्पताल में हमलों के चलते मासूम बच्चे मारे गए हैं। अस्पताल कब्रगाह बन चुके हैं। इजराइल का आरोप है कि इन अस्पतालों के नीचे हमास के लड़ाकों का कमान सैंटर है। इजराइल का कहना है कि वह आरपार की लड़ाई लड़ रहा है और वह बंधकों की सुरक्षित रिहाई तक युद्ध जारी रखेगा। ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि हमास इजराइली बंधकों की रिहाई के लिए तैयार हो गया है। इजराइली हमलों में मारे गए 4500 बच्चों को लेकर कोहराम मचा हुआ है।
यह साफ है कि युद्ध में मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन हुआ है। इजराइल की बदले की कार्रवाई से ज्यादातर लोग निर्दोष आम फिलस्तीनी नागरिक हैं। यह युद्ध पहले की लड़ाइयों से अलग है। यह युद्ध ऐसे वक्त में छिड़ा है जब मध्यपूर्व को विभाजित करने वाली रेखाओं के टूटने की गूंज सुनाई दे रही है। पिछले दो दशकों में ​​बिखरे हुए मध्यपूर्व के राजनीतिक परिदृश्य में सबसे गम्भीर विभाजन ईरान के मित्र देशों और अमेरिका के सहयोगी देशों के बीच देखा गया है।
अक्सर ‘प्रतिरोध की धुरी’ कहे जाने वाले ‘ईरानी नेटवर्क’ में लेबनान का हिज़बुल्लाह, सीरिया की बशर अल-असद हुकूमत, यमन के हुथी विद्रोही और इराक़ी मिलिशिया शामिल हैं. इराक़ी मिलिशिया को ट्रेनिंग और हथियार दोनों ही ईरान से मिले हैं। ईरान गाजा पट्टी में हमास और फिलस्तीन इस्लामी जिहाद का भी पुरजोर समर्थन करता है। दूसरी ओर, ईरान रूस और चीन से भी अपनी नजदीकियां बढ़ा रहा है। यूक्रेन में चल रहे रूस के युद्ध में ईरान एक महत्वपूर्ण भागीदार बन गया है। चीन ईरान से बड़ी मात्रा में तेल खरीदता है। जब तक गाजा में युद्ध जारी रहेगा, और जब तक इजराइल फिलस्तीनी लोगों को मारना और उनके घरों को बर्बाद करना जारी रखेगा, तब तक दोनों पक्षों के और अधिक सदस्यों के संघर्ष में शामिल होने का जोखिम बना रहेगा। इजराइल और लेबनान की सीमा पर धीरे-धीरे तनाव बढ़ता जा रहा है। न तो इजराइल और न ही हिज़बुल्लाह आर-पार की लड़ाई चाहते हैं।
मध्यपूर्व के तेल सम्पदा वाले देश मिस्त्र, जार्डन अमेरिका के साथ हैं। गाजा हमले के खिलाफ सऊदी अरब के रियाद में मुस्लिम देशों के नेताओं की बैठक में तुरंत संघर्ष विराम और फिलस्तीनी मुद्दे के समाधान की मांग की गई। सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों को लागू करने में दोहरे मानदंडों का मुद्दा उठाते हुए पश्चिमी देेेेशों की खामोशी की आलोचना की। लेकिन जब ईरानी राष्ट्रपति और कुछ अन्य देशों ने इजराइल और उसके सहयोगी देशों को तेल की सप्लाई रोकने तथा आर्थिक और राजनयिक संबंध तोड़ने का प्रस्ताव रखा है तो इस प्रस्ताव का विरोध भी हुआ। इसका अर्थ यही है कि मुस्लिम देश भी एकमत नहीं थे।
संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन समेत कुछ देशों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने 2020 में इजराइल के साथ राजनयिक संबंध बहाल किए थे। अरब लीग के कुछ देश ऐसे हैं जिनके इजराइल के साथ आर्थिक संबंध हैं। ऐसे में इस्लामी देश इजराइल पर कोई भी दबाव बनाने में विफल रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इजराइल गाजा पर पूरी तरह से कब्जा करना चाहता है। जून 1967 के युद्ध में पश्चिमी किनारे, पूर्वी यरुशलम आैर सीरिया की गोलान की पहाड़ियों के साथ-साथ गाजा पर इजराइली फौज के कब्जे के साथ यह पट्टी इजराइल के लिए सुरक्षा की समस्या बन गई है। अब फिर गाजा में रहने वाले लाखों लोग शरणार्थी बन चुके हैं। यह स्पष्ट है कि बहुत बड़ी मानवीय त्रास्दी पैदा हो चुकी है। बड़ी संख्या में शवों को दफनाने के लिए जमीन में गड्ढे खोदे जा रहे हैं। बेघर हुए लाखों लोगों के पुनर्वास के लिए कोई पहल नहीं की जा रही। इन लोगों को​ फिर से बसाने के लिए कौन पहल करेगा। खतरनाक हो चुकी जंग में युद्ध अपराध हो रहे हैं। 1939 से 1945 तक दूसरा विश्व युद्ध हुआ। इस युद्ध में साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए। इस विश्व युद्ध में पहले परमाणु बम का इस्तेमाल ​हुआ। ऐसी तबाही फिर न हो इसे रोकने के​ लिए 1949 में जेनेवा सम्मेलन में युद्ध के नियम बनाए गए। इसमें तय किया गया कि युद्ध के दौरान आम नागरिकों को निशाना नहीं बनाया जा सकता। रिहायशी इलाकों, स्कूलों, कालेजों और अस्पतालों को निशाना नहीं बनाया जा सकता। आम नागरिकों के लिए बनाए गए कैम्पों पर भी हमला नहीं किया जा सकता लेकिन इजराइल ने सभी सीमाएं तड़ दी हैं और मानवता कराह रही है। हमास के आतंक का खामियाजा आम नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है। कब होगा युद्ध विराम कुछ कहा नहीं जा सकता।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।