ईरान : ट्रंप का चुनावी मुद्दा - Punjab Kesari
Girl in a jacket

ईरान : ट्रंप का चुनावी मुद्दा

तेल टैंकर पर हमले और इसके बाद अमेरिकी हवाई ड्रोन को मार गिराए जाने के बाद से ही

तेल टैंकर पर हमले और इसके बाद अमेरिकी हवाई ड्रोन को मार गिराए जाने के बाद से ही फारस की खाड़ी में तनाव बढ़ चुका है। ड्रोन मार​ गिराए जाने के बाद अमेरिका ईरान पर हवाई हमला करने ही जा रहा था कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चंद मिनट पहले ही हमले की कार्रवाई रोक दी। अब अमेरिका ने ईरान की हथियार प्रणालियों के खिलाफ साइबर अटैक करने शुरू कर दिए हैं। साइबर अटैक से ईरान की राकेट और मिसाइल सिस्टम को नियंत्रित करने वाली कम्प्यूटर प्रणालियों को निशाना बनाया गया है। साइबर हमलों का उद्देश्य ईरान की उस हथियार प्रणाली को निशाना बनाना है, जिसका इस्तेमाल इस्लामिक रिवाेल्यूशनरी गार्ड करती है।
इन हमलों से इस प्रणाली पर आनलाइन काम ठप्प हो जाएगा। अब युद्ध का स्वरूप बदल गया है, युद्ध केवल जल, नभ और आकाश में ही नहीं बल्कि युद्ध साइबर क्षेत्र में भी लड़े जाएंगे। ईरान पर हवाई हमले को रोकने के ट्रम्प के फैसले को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर उन्होंने मन क्यों बदला। ऐसा नहीं है कि ट्रम्प को युद्ध के विनाशक परिणामों का अहसास नहीं है। उधर डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए अपने चुनाव प्रचार की शुरूआत कर चुके हैं। हो सकता है कि वह अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए ईरान मुद्दे को जमकर उछालें। निश्चित रूप से वह ऐसे सीमित कदम उठाना चाहेंगे, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। अगर अमेरिका और ईरान में युद्ध छिड़ गया तो दुनिया दो खेमों में विभाजित हो जाएगी। 
अमेरिका ने मई माह में 1500 सैनिक ईरान के बाहरी इलाकों में भेजे थे। 13 जून के हमले के बाद पेंटागन की तरफ से एक हजार सैनिक भेजने की बात स्वीकारी गई। अमेरिकी जंगी जहाज पहले से ही खाड़ी में मौजूद हैं। लड़ाकू जहाज आकाश में दिन-रात उड़ान भर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप के ईरान पर हवाई हमला नहीं करने के फैसले के पीछे अमेरिका की अपनी मजबूरियां भी हैं। दरअसल चीन और रूस ईरान के पक्ष में खड़े हैं और दोनों ही देश अमेरिका विरोधी रुख अपनाए हुए हैं। ऐसी स्थिति में ट्रंप की राह आसान नहीं है। ट्रंप ने यह कहकर ईरान के साथ बराक ओबामा के कार्यकाल के दाैरान हुए परमाणु समझौते को तोड़ा था कि ईरान चोरी-छिपे परमाणु हथियार बना रहा है। 
ट्रंप ने ईरान पर कई तरह की पाबंदियां लगा दीं ताकि उसकी आर्थिक कमर टूट जाए। ट्रंप का सनकीपन मध्यपूर्व में अमेरिका द्वारा चलाए जा रहे युद्ध की तरह है, जिसमें जार्ज बुश से लेकर ओबामा तक सभी अमेरिकी राष्ट्रपति तालिबान से लड़ने में पूरी तरह विफल रहे हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी ट्रंप की ईरान विरोधी नीति से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि ईरान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई से वैश्विक स्तर पर अमेरिका की विश्वसनीयता पर असर पड़ेगा। यह भी सही है कि अफगानिस्तान, इराक, लीबिया में अमेरिका द्वारा किए गए विध्वंस को दुनिया ने देखा है। इन देशों में आज तक शांति स्थापित नहीं हुई। ईरान इस समय एक अकेला देश है जो अमेरिका से टक्कर ले रहा है। यह शिया बहुल देश न तो राजशाही और न ही सरकार से चलता है। यह देश धर्म के साथ चलता है। 
ईरान में अमेरि​का विरोधी विचारधारा एकजुट हो चुकी है। सरकार, आम जनता और मीडिया ये सब एकजुट हो चुके हैं। कई अमेरिकी अधिकारियों ने ईरान मामले में ट्रंप को संयम बरतने को कहा है। अधिकारियों का मानना है कि अमेरिका ने सीरिया में युद्ध लड़कर देख लिया, आखिर हासिल क्या हुआ? पिछले डेढ़-दो महीने में ओमान की खाड़ी से गुजरने वाले तेल टैंकरों पर हमले की घटनाएं युद्ध का कारण बनने के लिए काफी हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा तेल टैंकर इसी खाड़ी मार्ग से गुजरते हैं। इसलिए युद्ध की स्थिति में सबसे बड़ा संकट तेल  का होगा। 
खाड़ी में टैंकर युद्ध की आशंका मात्र से ही लोग भयभीत हो उठे हैं। ट्रंप भी जानते हैं कि युद्ध के परिणाम काफी घातक होते हैं। इसलिए अमेरिका ने यह भी कहा है कि वह ईरान से बिना शर्त वार्ता को तैयार है। ट्रंप ईरान के मुद्दे को जीवित रखेंगे और अमेरिका के लोगों को यह विश्वास दिलाएंगे कि ईरान जैसे देश से निपटने का साहस और क्षमता केवल उन्हीं में है। इसलिए वह अभी इस मुद्दे पर धीरे-धीरे चलेंगे। हो सकता है कि वह ईरान पर सीमित सैन्य कार्रवाई कर वाहवाही लूट लें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four × two =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।