इसमें कोई शक नहीं कि हिन्दू धर्म बहुत महान है। हिन्दू धर्म के अपने आदर्श हैं और हिन्दू ऐसा धर्म है जो दूसरों के लिए जीना सिखाता है। सही मायनों में इंसानियत को समर्पित हिन्दू धर्म का जितना प्रचार-प्रसार आज की तारीख में आरएसएस के प्रमुख श्री मोहन भागवत जी ने किया है, इसकी जितनी तारीफ की जाए वो कम है। श्री भागवत जी हिन्दुत्व को भारतीयता से जोड़ते हैं। अपनी बात वह बेबाकी से रखते हैं और जब कुछ कह देते हैं तो उनकी बात को लेकर अर्थ निकाले जाते हैं।
पिछले दिनों शिकागो में श्री भागवत जी ने हिन्दुओं को लेकर जिस तरह से अपनी बातें रखी वह सचमुच राष्ट्रीयता और भारत की पहचान को दर्शाती हैं। शिकागो में 1893 में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद जी के ऐतिहासिक भाषण की 125वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में वहां विश्व हिन्दू कांग्रेस का आयोजन किया गया था। अमेरिका में अब ऐसे आयोजन किए जाने लगे हैं, लिहाजा सात समुंदर पार से भागवत जी ने एक ही संदेश दिया कि हिन्दुओं को एक हो जाना चाहिए। उन्होंने जिस तरह से आज भारत में धर्म और मजहब को लेकर अपने-अपने लिए लोग जी रहे हैं, इसी चीज को ध्यान में रखकर हिन्दुओं से एक होने का आह्वान किया। भागवत जी ने इशारों ही इशारों में स्पष्ट कर दिया और कहा कि हिन्दू किसी के विरोध के लिए नहीं जीते। उन्होंने अध्यात्म को हिन्दुओं से जोड़कर कहा कि हम लोग तो कीड़ों को भी जीने देते हैं, तो हम भला किसी का विरोध कहां करते हैं। उनकी एक बात जबर्दस्त है जिसमें उन्होंने यह कहा कि जब हम किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहे, सबको जीने दे रहे हैं तो फिर हमें भी उन लोगों से निपटना होगा, जो हमारा विरोध कर रहे हैं।
सच बात यह है कि आज देश में हिन्दुत्व को राजनीति से जोड़ा जा रहा है। हमारा लोकतंत्र सबको अपनी भावनाएं अभिव्यक्त करने की संविधान के तहत इजाजत देता है। शायद इसीलिए लोग जरूरत से ज्यादा जागरूक होकर अब सत्ता हासिल करना चाहते हैं। राजनीतिक स्तर पर ऐसी गतिविधियां हम आम देख रहे हैं, परंतु मोहन भागवत जी ने तो कह दिया है कि भारत ही क्यों पूरी दुनिया को एक दल के रूप में स्थापित करना होगा और इसके लिए हमें अपने अहं पर कंट्रोल करने के साथ-साथ सर्वसम्मति का पालन करना होगा। उनकी दो पंक्तियों पर अनेक बुद्धिजीवी और राजनेता रिसर्च का काम करने लग गए हैं, जिसमें उन्होंने यह कहा कि, अगर शेर अकेला हो तो जंगली कुत्ते उस पर हमला कर उसे शिकार बना लेते हैं।
इस लाइन को लेकर सब अपने-अपने ढंग से व्याख्या कर रहे हैं। कुछ लोग इसे विपक्ष के महागठबंधन की तरफ इशारा समझ रहे हैं तो कुछ लोग इसकी व्याख्या यह कहकर कर रहे हैं कि भाजपा के अंदर जो कुछ हो रहा है श्री भागवत जी ने स्पष्ट कर दिया है। खैर, सबका अपना-अपना नजरिया है, लेकिन भागवत जी ने बड़ी चतुराई से स्पष्ट किया है कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया की बेहतरी तो मिल-जुलकर चलने से ही है और हम इसी दुनिया को बेहतर बनाना चाहते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम कोई वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं।
यहां भागवत जी ने बड़ी चतुराई से स्पष्ट किया है कि हिन्दुओं का वर्चस्व स्थापित करने की हमारी कोई आकांक्षा भी नहीं है परंतु यह सच है कि किसी विचार को अगर सामूहिक रूप से लागू करना है तो कार्यप्रणाली विकसित होनी ही चाहिए। उनकी हर बात गहरी है, इसको राष्ट्रीय स्तर पर, मानवीय स्तर पर और राजनीतिक स्तर पर कैसे लिया जाता है यह हम नहीं जानते परंतु उन्होंने एक और वजनदार बात कही जिसमें यह कहा कि हिन्दुओं का साथ आना अपने-आप में मुश्किल चीज है। भागवत जी ने निश्चित रूप से आज के समय में धर्म को लेकर हो रहे दावाें-प्रतिदावों के बीच बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया और उन्होंने यहां तक कह डाला कि हिन्दू हजारों वर्षों से पीडि़त हैं, क्योंकि वे अपने मौलिक सिद्धांत भुला चुके हैं।
सही बात यह है कि भागवत जी एक सच्चे भारतीय ही नहीं बल्कि एक हिन्दू रत्न हैं, जो भारतीयता और इंसानियत की बात करते हैं। उन्होंने आज के समय के साथ-साथ हिन्दुओं को आधुनिक बनने का भी आह्वान किया और कहा कि जब पूरी दुनिया एक टीम की तरह काम करेगी तो फिर बहुत कुछ हो सकता है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और पांडवों के संबंधों का जिक्र किया तथा कहा कि श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर जो भी कहते रहे हों परंतु उन्होंने एक-दूसरे का खंडन नहीं किया। महाभारत और राजनीति के बीच उन्होंने हिन्दुत्व और इंसानियत की बात अपने तरीके से रखी है तथा अमेरिका जाकर यह बात कहना बहुत कुछ प्रमाणित करता है।
सच यही है कि सामाजिक जीवन में भी लोग उस चीज को स्वीकार करते हैं, जो उसे जंचती है। हम समझते हैं कि यहां भी भागवत जी की जो बातें जिसको अच्छी लगें वो स्वीकार कर लें। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा की सफलता में आज की तारीख में आरएसएस का बहुत महत्व है। आरएसएस में भागवत जी जैसे दिग्गज निष्पक्ष और नि:स्वार्थ होकर अपना काम कर रहे हैं। राजनीतिक रूप से, व्यक्तिगत रूप से कोई इसे किस नजरिए से लेता है यह हम नहीं कह सकते लेकिन भागवत जी जो कुछ कह रहे हैं, कर रहे हैं, वह भारतीयता और हिन्दुओं के पक्ष में ही है, हमारा तो यही मानना है।