रिकार्ड बनाते भारतीय - Punjab Kesari
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रिकार्ड बनाते भारतीय

परम्परागत खेलों कुश्ती, कबड्डी और हाकी आदि में तो भारत का दबदबा रहता ही है लेकिन इंग्लैंड में

परम्परागत खेलों कुश्ती, कबड्डी और हाकी आदि में तो भारत का दबदबा रहता ही है लेकिन इंग्लैंड में चल रही राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की एथलीट उन खेलों में नए रिकार्ड कायम कर रहे हैं, जिनके बारे में कभी हमने कल्पना भी नहीं की। इस बार  खिलाड़ी भारत के गौरव में चार चांद लगा रहे हैं। भारत के 23 वर्षीय युवा एथलीट मुरली श्रीशंकर ने पुरुषों की लम्बी कूद स्पर्धा में 8.08 मीटर लम्बी छलांग लगाकर रजत पदक अपने नाम कर लिया। श्रीशंकर राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में भारत के लिए लम्बी कूद स्पर्धा में रजत पदक जीतने वाले पहले पुरुष खिलाड़ी बन गए हैं। इससे पहले महिलाओं में पूर्व एथलीट अंजू बॉबी जार्ज और प्रज्यूषा मलाईखल पदक जीत चुकी हैं। अंजू बॉबी जार्ज ने राष्ट्रमंडल खेलों में लांग जम्प में कांस्य और प्रज्यूषा ने 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीता था। पुरुषों में सुरेश बाबू ने 1978 राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीता था। श्रीशंकर का रजत पदक एक तरह से गोल्ड पदक के बराबर ही है, क्योंकि स्वर्ण पदक जीतने वाले वहामास के लकन नैटन ने भी 8.08 मीटर का ही जम्प लगाया था। लेकिन उन्होंने यह जम्प दूसरे प्रयास में लगाया था जबकि श्रीशंकर ने जम्प पांचवें प्रयास में लगाया था इसलिए पदक नैटन काे मिला।मूल रूप से केरल के रहने वाले श्रीशंकर का परिवार खेलों से जुड़ा हुआ है। उनकी रगो में खेल बहता है। पिता और मां दोनों एथलीट हैं। पिता भारत दक्षिण एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीत चुके हैं। उन्होंने ही मुरली को प्रशिक्षण दिया है। मुरली की मां ने वर्ष 1992 में एशियाई जूनियर एथलैटिक्स में 800 मीटर की दौड़ में रजत जीता था। उनकी बहन श्रीपार्वती भी हैप्थलान की ​खिलाड़ी हैं। मुरली में तेज धावक बनने के लक्षण देखकर ही पिता ने उन्हें ट्रेनिंग देनी शुरू की थी। वे अंडर-10 चैम्पियनशिप में 50 मीटर और 100 मीटर स्पर्धा में स्टेट चैम्पियन बन गए थे। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने ट्रिपल जम्प में करियर बनाने का फैसला किया। उनका भविष्य काफी उज्ज्वल है।राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने एक ऐसे खेल में स्वर्ण पदक हासिल किया जिसके बारे में लोग कम ही जानते हैं, वह खेल है लॉन बाल। महिलाओं की स्पर्धा में भारत ने फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को हरा कर गोल्ड मेडल अपने नाम किया है। लॉन बाल एक प्राचीन खेल आैर एक तरह का बालिंग गेम है। इसकी शुरूआत 13वीं शताब्दी में हुई और इसके आैपचारिक नियम आैर कानून 18वीं सदी के अंत में बने। आज लगभग 40 देशों में यह खेल खेला जाता है। 1996 को छोड़ कर हर राष्ट्रमंडल खेलों में इसे शा​िमल किया गया है। भारतीय महिला टीम के लिए  बर्मिंघम तक का सफर आसान नहीं रहा। प्रायोजकों के अभाव में महिला टीम की खिलाड़ी खुद अपने पैसे से इंग्लैंड का दौर कर रही है । टीम की खिलाड़ी लवली झारखंड पुलिस में कांस्टेबल है, वहीं नयन मोनी सैकिया असम पुलिस में कांस्टेबल है। रूपारानी टिर्की झारखंड के रामगढ़ में स्पोर्ट्स आफिसर हैं, जबकि पिंकी दिल्ली में एक स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर हैं। हमें इन पर गर्व है, उम्मीद है कि टीम के इस शानदार प्रदर्शन के बाद सरकार की तरफ से इन्हें मदद मिलेगी और इस खेल को भी प्रचलित बनाया जाएगा।पुरुष एकल स्कवॉश में सौरव घोषाल ने कांस्य पदक जीत कर इस स्पर्धा में भारत को पहला पदक दिलाया। हाई जम्प में तेजस्विन शंकर ने भी कांस्य जीत कर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया। जहां तक कुश्ती में पहलवान बजरंग पूनिया, दीपक पूनिया और साक्षी मलिक ने स्वर्ण जीता, वहीं अंशु मलिक ने रजत जीता। दिव्या काकरान और मोहित गरेवल ने कांस्य जीता। इनका प्रदर्शन उम्मीदों के अनुरूप रहा। कुश्ती में भारत का लम्बा इतिहास रहा है। प्राचीन भारत में कुश्ती को मल्लयुद्ध के रूप में जाना जाता था। भीम, जरासंघ, कीचक और बलराम को अपने समय का महान मल्ल माना जाता था। कुश्ती को दंगल के नाम से भी जाना जाता है और यह कुश्ती टूर्नामैंट का मूल रूप है।हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र समेत कुछ राज्यों में कुश्ती आज भी काफी लोकप्रिय है। भारत के पहले कुश्ती सुपर स्टार गुलाम मोहम्मद बख्श थे, जिन्हें गामा पहलवान के नाम से जाना जाता है। 1947 में देश बंटवारे के बाद गामा पहलवान लाहौर में बस गए थे। 1952 में केडी जाघव ने हेलसिंकी ओलिम्पियन में कांस्य पदक जीता और कुश्ती के सुपर स्टार बने। उसके बाद तो उदयचंद, बिशंबर सिंह, दारा सिंह आैर मालवा सिंह ने खूब नाम कमाया। गुरु हनुमान कुश्ती के कोच बनकर उभरे। सतपाल सिंह, करतार सिंह, राजेन्द्र सिंह के साथ भारतीय कुश्ती ने सफलता की सीढ़ियां चढ़ीं। 2008 बीजिंग ओलिम्पिक में सुशील कुमार ने कांस्य जीता और 2010 में विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। 2012 में सुशील ने ओलिम्पिक रजत पदक जीता था, जबकि योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक जीता था। महिलाओं में फोगाट बहनें सूरज की किरणों की तरह चमकीं और कई खिताब  जीते। साक्षी मलिक के पिता भी कुश्ती के कोच हैं। बजरंग पूनिया, अंशु मलिक ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बनाई है। भारत में कुश्ती का इतिहास पहले से कहीं अधिक सुनहरा है। कुश्ती में कई युवा लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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