अमेरिका में घुसपैठ करते भारतीय - Punjab Kesari
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अमेरिका में घुसपैठ करते भारतीय

भारतीयों में ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका और खाड़ी देशों में शिक्षा ग्रहण करने और नौकरी करने का क्रेज कोई नया नहीं है। प्रवासी भारतीयों की सफलता की गाथाओं ने भी भारतीयों को प्रेरित किया है। कई देशों में प्रवासी भारतीय न केवल सफल हुए हैं बल्कि वहां के देशों की सत्ता में भागीदार भी बन चुके हैं। भारतीय छात्रों की पसंद अमेरिका और यूरोपीय देश हैं तो भारतीय कामगारों की पसंद खाड़ी देश हैं। न तो भारतीय छात्र और न ही उनके अविभावक यह महसूस कर रहे हैं कि विदेशों में समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना आसान नहीं है। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने वीजा नियमों को सख्त और वीजा को सीमित करके भारतीयों के लिए कई तरह की संभावनाओं को धूमिल कर ​दिया है। ऐसी ​स्थि​ति में अब भारतीय अमेरिका की ओर भाग रहे हैं। डंकी रूट से विदेशों में अवैध तरीके से प्रवेश करने के मामले नए नहीं हैं। अनेक लोगों की अवैध तरीके से प्रवेश करने के दौरान लोगों की मौत भी हो चुकी है। माल्टा नौका कांड तो सबको याद होगा। नौका डूबने से पंजाब और हिमाचल के युवाओं को समुद्र ने निगल लिया था। ​जिनके परिवार आज भी उनका इंतजार कर रहे हैं। डंकी रूट की समस्या तो विकराल ही है लेकिन भारतीय कोई भी ​जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं।

कनाडा से बड़ी संख्या में भारतीय पैदल चलकर बिना दस्तावेज के अमेरिका में जा रहे हैं। यह संख्या अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। लगातार अवैध तरीके से घुस रहे लोगों के कारण अब कनाडा की वीजा स्क्रीनिंग प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गई है। इसके अलावा ऐसी भी खबरें हैं कि कनाडा की यात्रा करने वाले यात्री ऐसी यात्रा करते हैं कि उन्हें यूके में रुकना पड़े। इसके बाद उनके यूके में भी शरण लेने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। अमेरिकी सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा (सीबीपी) के लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार अकेले इस साल जून में 5152 भारतीय बिना दस्तावेज के पैदल चलकर कनाडा से अमेरिका में घुसे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2023 से कनाडा से अमेरिका में घुसने वाले भारतीयों की हर महीने की संख्या मैक्सिको बॉर्डर से घुसने वाले भारतीयों से ज्यादा हो गई है। कनाडा और अमेरिका के बीच 9000 किलोमीटर का बॉर्डर है। यह दुनिया की सबसे लंबी खुली सीमा है जो मैक्सिको-अमेरिका की सीमा से दोगुनी है। अमेरिका के सीबीपी डेटा के मुताबिक इस साल जनवरी से जून के बीच अमेरिकी सीमा पर पकड़े गए भारतीयों की हर महीने औसत संख्या 2024 में 2548 से 47 फीसदी बढ़कर 3733 हो गई है। 2021 में यह सिर्फ 282 थी जिसमें 13 गुना उछाल देखा गया है।

एक अनुमान के मुता​बिक अमेरिका की कुल आबादी में भारतीय अमे​रिकियों की आबादी 1.5 फीसदी है। ब्रिटेन में बंदरगाह पर शरण की चाह में पहुंचे भारतीयों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। 2021 में यह संख्या 495 थी जो 2022 में बढ़कर 1170 हो गई। 2023 में यह संख्या 1391 हो गई। इस वर्ष की बात करे तो जून तक 475 शरण मांगने वाले लोग वहां पहुंच चुके हैं। सोशल मीडिया के नए प्रभाव के चलते सामाजिक, आर्थिक स्थितियां भारत को जमीनी स्तर पर प्रभावित कर रही हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने लोगों को पूरी दुनिया एक थाली में सजा कर दे दी है। मानव की प्रवृति है कि लोग आमतौर पर अपने देश को इसलिए छोड़कर जाते हैं कि उन्हें विदेश में बेहतर जीवन मिलेगा। भारत की बेरोजगारी भी काफी हद तक ​जिम्मेदार है। अपना भविष्य सुनहरा बनाने के ​लिए भारतीय युवा दलालों के हाथ बिक रहे हैं और दलाल उन्हें रूस में नौकरी दिलाने के बहाने रूस की फौज में भर्ती करवाने से भी परहेज नहीं कर रहे। हाल ही में केन्द्र सरकार की पहल पर रूस की फौज में भर्ती युवा वापिस भारत लौटे हैं। अमेरिका में अवैध रूप से घुसपैठ करने वाले भारतीय ही नहीं हैं बल्कि

पाकिस्तान, बंगलादेश, चीन, ईरान आ​दि देशों के हैं जो लोग कानूनी प्रवासन पर ​अमेरिका जा रहे हैं। इसमें स्थायी निवास, वर्क परमिट के साथ स्टडी परमिट भी शामिल है। अवैध रूप से जाने वाले मध्य अमेरिका के रूट का इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि यह कनाडा और अमेरिका जाने के लिए सबसे आसान रूट है। अब सवाल यह है कि क्या अवैध रूप से घुसपैठ करने वाले सभी भारतीयों को अमेरिका या ब्रिटेन में शरण मिल जाएगी। विश्लेषण बताता है कि भारतीयों के लिए शरण मिलने की संभावनाएं काफी कम हैं। वर्ष 2019 से 2023 के दौरान केवल 300 लोगों को शरण दी गई जो शरणार्थी का दर्जा ​पाने के पात्र तो नहीं थे ले​किन विभिन्न कारणों से उन्हें ब्रिटेन में रहने की अनुमति दी गई। अवैध प्रवासियों की बढ़ती संख्या से बाइडेन सरकार बहुत चिंतित है। अब प्रवासियों का मुदा वहां अमेरिका में हमेशा ही चिंता का ​विषय रहा। अमेरिका लगातार अवैध रूप से घुसने वालों ​को गिरफ्तार कर रहा है। लाखों रुपए खर्च कर भारतीय विदेश जाने के लिए डंकी रूट का इस्तेमाल करते हैं लेकिन उन्हें वहां जेलों में रहकर वापिस भारत लौटना पड़ता है। भारतीयों को स्वयं सोचना चा​िहए कि भारत में रहकर जीवन जीना अच्छा है या विदेशों में डर-डर कर रहने का जीवन अच्छा है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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