तिरंगे का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान - Punjab Kesari
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तिरंगे का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान

तिरंगा हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज है। तिरंगे की आन-बान-शान बरकरार रखने के लिए…

तिरंगा हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज है। तिरंगे की आन-बान-शान बरकरार रखने के लिए देश की सरहदों पर जो जवान तैनात रहते हैं उनमें सबसे अधिक सिख सैनिक ही देखे जा सकते हैं क्योंकि देश में सिखों की आबादी केवल 2 प्रतिशत ही है। जब सिख सैनिक शहीद होते हैं तो उनके पार्थिव शरीर को भी तिरंगे में ही लपेट कर लाया जाता है क्योंकि वह मरकर भी तिरंगे से दूर नहीं हो सकते। ऐसे में कोई सिख तिरंगे का अपमान कैसे कर सकता है। मगर सिखी भेष धारण किए खालिस्तानी समर्थक हैं जो आए दिन तिरंगे का अपमान करते रहते हैं। हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर के इंगलैंड दौरे के दौरान भी उनकी गाड़ी के आगे कूदकर एक खालिस्तानी ने जिस प्रकार तिरंगे का अपमान किया उसकी जितनी निन्दा की जाए कम है।

पिछले कुछ समय से भारत देश के टुकड़े कर खालिस्तान की मांग करने वाले कुछ भारत में दहशत का माहौल बनानेेे के दृष्टिकोण से इस तरह की गतिविधियों को अन्जाम देते हैं। देश के प्रधानमंत्री, पंजाब के मुख्यमंत्री सहित अन्य राजनीतिक और प्रतिष्ठित लोगों को धमकियां देते रहते हैं मगर इन पर कोई कठोर प्रशासनिक कार्रवाई नहीं होती जिसके चलते इनके हौंसले बुलंद होते जा रहे हैं। कल जिस प्रकार एनआईए की कोर्ट के द्वारा 6 खालिस्तानियों को ड्रोन हमले में दोषी मानकर आजीवन कारावास की सजा दी है इसी तरह सरकारों को चाहिए कि खालिस्तानियों की पहचान कर सख्त कार्रवाई की जाए। पंजाब में कुछ संस्थाओं के द्वारा भी बीते दिनों खालिस्तानियों के खिलाफ मोर्चा खोला गया है और उन्हें उनकी ही भाषा मंे जवाब देने के लिए खालिस्तानी झण्डों को जलाने की बात कही है।

जत्थेदारों की सेवामुक्ति से पंथ में दुविधा का माहौल

बीते दिनों शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा जिस प्रकार से एक के बाद एक जत्थेदार को सेवामुक्त किया गया उससे एक बार फिर से समूचे पंथ मंे दुविधा का माहौल देखा जा रहा है क्योंकि श्री अकाल तख्त साहिब से हर सिख की आस्था जुड़ी है और उस तख्त के जत्थेदार को इस कदर बेईज्जत करके हटाया जाना सिखों को बर्दाशत नहीं हुआ। इसके पीछे कारण केवल एक ही दिखाई दे रहा है कि बीते 2 दिसम्बर को श्री अकाल तख्त साहिब से जत्थेदार साहिबान के द्वारा सुखबीर सिंह बादल और अन्य अकाली नेताओं को जिस प्रकार धार्मिक सजा लगाई गई जिसमें गले में तख्तीयां डालकर बैठने से लेकर टायलेट तक साफ करने की सजा शामिल थी। उसे अकाली नेताओं ने पूरा तो कर लिया मगर उसके बदले में जत्थेदारों को सबक सिखाने की नींव उसी दिन रख ली गई। अकाली दल में भर्ती प्रक्रिया को लेकर भी एक टीम का गठन श्री अकाल तख्त साहिब से किया गया मगर तकनीकी कारण बताते हुए अकाली नेताओं ने उसे मानने के बजाए अपने हिसाब से भर्ती शुरू कर दी जिसके चलते अकाली दल के नेताओं को श्री अकाल तख्त साहिब से भगौड़ा कहा जाने लगा मगर उन्हांेने इसकी परवाह किए बिना अपनी कार्रवाई जारी रखी और उनकी पूरी कोशिश थी कि मार्च माह मंे नई टीम का गठन कर पुनः सुखबीर सिंह बादल की अध्यक्ष पद पर वापिसी कर दी जाए। उन्हें इस बात का भी भय सता रहा था कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह के बाद ज्ञानी रघुबीर सिंह भी उनके रास्ते में रुकावट पैदा कर सकते हैं जिसके चलते उन्हें भी हटाने का फैसला लिया गया। देखा जाए तो यह पहली बार नहीं हुआ है समय-समय पर जब भी अकाली नेताओं को लगा कि जत्थेदार अब उनके हिसाब से नहीं चल रहे तो उन्हें साईड लाईन किया जाता रहा है। हमें याद है 1999 में जब भाई रणजीत सिंह जी श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार थे और उन्हांेने प्रकाश सिंह बादल और गुरचरण सिंह टोहड़ा में आपसी मतभेद भुलाकर खालसा पंथ का 300वां जन्मदिन मिलकर मनाने का आदेश दिया जिसके बाद बादल दल ने उन्हें पद से हटा दिया। उसके बाद ज्ञानी पूरन सिंह, ज्ञानी मनजीत सिंह, ज्ञानी बलवंत सिंह नंदगड़, ज्ञानी जुगिन्दर सिंह वेदांती को भी इसी प्रकार सेवा मुक्त किया गया। ज्ञानी जुगिन्दर सिंह वेदांती को इसलिए हटाया गया था क्योंकि उन्होंने आर.एस.एस. के खिलाफ हुक्मनामा जारी किया था। फर्क सिर्फ इतना हैै कि तब बादल परिवार की आर.एस.एस. भाजपा से नजदीकियां थी इसलिए उन्हें जत्थेदार वेदांती की कार्रवाई करना रास नहीं आया और अब ज्ञानी हरप्रीत सिंह का भाजपा नेताओं से मिलना उन्हें बर्दाशत नहीं हुआ।

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी से लेकर तख्त पटना कमेटी ने भी खुलकर इस पर आपति जताई गई यहां तक कि पूर्व जत्थेदार साहिबान और सिख मर्यादा के सूझवान सभी इसे गलत करार दे रहे हैं। दल पंथ, निहंग जत्थेबं​िदयांे ने नए जत्थेदार की ताजपोशी रोकने के लिए श्री आनंदपुर साहिब का रुख किया मगर अकाली दल ने सुखबीर सिंह बादल के आदेश पर रात के अन्धेरे में ही ताजपोशी कर दी जिसके बाद मर्यादा उलंघन के मामले पर भी देशभर में बहस छिड़ गई क्यांेकि आमतौर पर जत्थेदार साहिबान की ताजपोशी पर कुछ मर्यादाएं होती हैं जिनकी पूरी तरह से अनदेखी की गई। मगर वहीं दिल्ली के अकाली नेता परमजीत सिंह सरना, हरविन्दर सिंह सरना निश्चित तौर पर खुश नजर आ रहे हैं और ऐसा भी माना जा रहा है कि ज्ञानी कुलदीप सिंह गड़गज की नियुक्ति में भी उनका अहम रोल है। दिल्ली कमेटी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका, महासचिव जगदीप सिंह काहलो, धर्म प्रचार मुखी जसप्रीत सिंह करमसर का कहना है कि सरना भाईयों ने हमेशा कौम को दुविधा में डाला है। जब वह प्रधान थे तो 2-2 गुरुपर्व, संगरांद मनाई जाती और आज फिर से सुखबीर बादल के सलाहकार बनकर कौम में नई दुविधा डाल दी है।

दिल्ली कमेटी के पूर्व सदस्य गुरलाड सिंह काहलो का कहना है कि इसमें कोई हर्ज नहीं समय-समय पर नए जत्थेदारों की नियुक्ति होती रहनी चाहिए मगर इसका कोई मापदण्ड जरूर तय होना चाहिए क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि जत्देदारों की जब नियुक्ति होती है तो समूचे पंथ को एकत्र किया जाता है मगर हटाने का आदेश केवल कुछ राजनीतिक लोग ही ले लेते हैं इसमें सुधार होना चाहिए। गुरुद्वारा राजौरी गार्डन के अध्यक्ष हरमनजीत सिंह, महासचिव मनजीत सिंह खन्ना ने भी इस प्रक्रिया में सुधार की बात कही है और जत्थेदारों की नियुक्ति और हटाने के लिए मापदण्ड बनाने की मांग की है ताकि मर्यादा का कहीं भी उलंघन ना हो।

हालांकि सुधारवादी नेता अभी भी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि जत्थेदार हटाए जाने के फेसले को रद्द करवाकर जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब की सेवाएं जारी रखवाने के लिए शिरोमणि कमेटी के जनरल हाउस में मुद्दा उठायेंगे जिसमें समय लग सकता है। मगर हाल की घड़ी में समूचे सिख पंथ को एकजुट होकर ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए जिससे टकराव की स्थिति पैदा ना हो और पंथक एकता भी कायम रहे। अकाली नेता कुलदीप सिंह साहनी का मानना है नए नियुक्त जत्थेदार साहिब को भी चाहिए कि सिख कौम के अनेक पंथक मसले जो श्री अकाल तख्त साहिब पर लम्बित पड़े हैं उनका जल्द से जल्द निपटारा किया जाए।

अरदास के स्वरूप को बदला नहीं जा सकता

सिख पंथ में अरदास का बहुत महत्व है। गुरु गोबिन्द सिंह जी के समय से ही अरदास की जाती है और अरदास में दशम ग्रन्थ की बाणी भी आती है। जब गुरु साहिब ने खालसा पंथ की सिरजना की और अमृत का बाटा तैयार किया उस समय भी तीन बाणीयां दशम ग्रन्थ से ली गई। तब से लेकर आज तक उसी प्रकार सिखों को जब पांच प्यारे साहिबान अमृतपान करवाते हैं तो उन्हीं बाणीयों को पड़ा जाता है। मगर सिख पंथ में बिना वजह का विवाद पैदा करने हेतु प्रोः दर्शन सिंह जैसे लोग लम्बे समय से दशम ग्रन्थ की बाणीयों पर किन्तु परन्तु करते आ रहे हैं और अब उनके एक साथी दविन्दर सिंह ने अरदास का स्वरूप बदलकर नई अरदास तैयार कर दी। दिल्ली के इन्द्रलोक गुरुद्वारा में समागम के दौरान जब उन्होंने इस अरदास को पड़ा तभी से सिख कौम में रोष देखने को मिला और इनके खिलाफ कार्रवाई की मांग उठने लगी। धर्म प्रचार के क्षेत्र में लम्बे समय से सेवाएं दे रहे सः परमजीत सिंह वीरजी के द्वारा इस पर आपत्ति जताई गई और दोषियों को श्री अकाल तख्त साहिब पर बुलाकर सख्त कार्रवाई की मांग की गई है। अब देखना होगा कि कब श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदारों का अपना विवाद समाप्त होता है और वह पंथक मसलों को हल करने के लिए पहल करते हैं।

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