विश्व शांति को लेकर भारत को सबसे ज्यादा जिम्मेदार देश के तौर पर देखा जाता है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी के बाद और आज के दौर में भारत दुनिया के देशों में हर प्रकार की शांति का पक्षधर रहा है और शांति प्रयासों में अपनी भूमिका निभाता रहा है। विश्व युद्ध के दौरान महात्मा गांधी ने तानाशाह हिटलर को चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने उसे अहिंसा का मार्ग अपनाने की बात कही थी। बापू का यह पत्र विश्व शांति की भावना से ही प्रेरित था। बापू मानते थे कि हिंसा पूरी दुुनिया को अंधकार में डाल देगी। भारत का विश्व शांति को लेकर योगदान बहुत व्यापक है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब शीत युद्ध चल रहा था तो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने गुटनिरपेक्ष नीति के तहत न केवल दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियों के बीच तालमेल बनाकर रखा, बल्कि पूरी दुनिया को युद्ध में कूदने से बचाया। पंडित नेहरू ने विश्व शांति के लिए पंचशील सिद्धांत भी बनाया, जिस पर आज तक भारत चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कई बार कह चुके हैं कि यह समय युद्ध का नहीं है। यह समय देशों के परस्पर सहयोग से सामने खड़ी चुनौतियों पर पार पाने के लिए है। विश्व शांति का अर्थ केवल हिंसा न होना ही नहीं है, बल्कि ऐसे समाजों का निर्माण करना भी है, जहां सबको एहसास हो कि वे समान व्यवहार से आगे बढ़ सकते हैं।
आज विश्व शांति को खतरा पैदा हो चुका है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया कई तरह संकटों का सामना कर रही है। पैट्रोल, ऊर्जा और अनाज तथा अन्य वस्तुओं की सप्लाई बाधित होने से कीमतें आसमान को छू रही हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। यही वजह है कि अब दुनिया इस युद्ध को खत्म करवाने के प्रयासों में लग गई है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने तटस्थ नीति अपनाई है और उसका यही पक्ष रहा है कि दोनों देश वार्ता की मेज पर आएं और युद्ध रुक जाए। दुनिया भर की नजरें भारत पर लगी हुई हैं। केवल भारत ही ऐसा देश है जिसका दोनों पक्षों पर प्रभाव है। युद्ध को रोकने के िलए यूक्रेन की शांति योजना पर विचार के लिए सऊदी अरब के तटीय शहर जैद्दा में दो दिवसीय शिखर सम्मेलन आयोिजत हो रहा है। इस सम्मेलन में भारत समेत कुछ चुनिंदा देशों को आमंत्रित किया गया है। भारत का शुरू से ही यह स्टैंड रहा है कि बातचीत आैर कूटनीति ही यूक्रेन संकट को हल करने का रास्ता है। जैद्दा में होने वाली बैठक में भारत की भागीदारी भारत के एजैंडे के अनुरूप होगी। दुनिया के नेताओं का मानना है कि अगर रूस आैर यूक्रेन ने मध्यस्थता के लिए एक तटस्थ तीसरे पक्ष में रुचि दिखाई तो भारत एक मजबूत उम्मीदवार साबित हो सकता है क्योंकि दोनों ही पक्षों में उसकी विश्वसनीयता है। दशकों से भारत पश्चिमी देशों और रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित करके चल रहा है।
भारत जनसंख्या के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है और अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत और अमेरिका के बीच घनिष्ठ संबंध हैं लेकिन रूस उसका एक विश्वसनीय पार्टनर, प्रमुख एनर्जी सप्लायर और भारतीय सेना के ज्यादातर हथियारों का स्रोत है। पीएम मोदी और व्लादिमीर पुतिन के निजी संबंध भी किसी से छिपे नहीं हैं। मोदी उन नेताओं में से हैं जो कभी भी पुतिन से सीधे बात कर सकते हैं और इसीलिए मैक्रों ने उनके साथ मिलकर वार्ता की मेजबानी करने का प्रस्ताव दिया। यह युद्ध भारत के लिए भी एक परीक्षा की घड़ी है क्योंकि रूस से तेल की खरीद पश्चिमी देशों और यूक्रेन को नाराज कर रही है। संयुक्त राष्ट्र में रूसी आक्रमण के खिलाफ अमेरिका की ओर से लाए जाने वाले निंदा प्रस्ताव पर वोटिंग से भी भारत ने खुद को अलग रखा है।
भारत इस समय जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। इस समय भारत दुनिया की आवाज बन चुका है। संयुुक्त राष्ट्र में भारत कई बार कह चुका है कि कोई समाधान मानव जीवन की कीमत पर कभी नहीं पहुंच सकता। संघर्ष से बाहर निकलने का तरीका संवाद ही है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की आवाज़ संयम की रही है, जो ‘शत्रुता की समाप्ति’ और संयुक्त राष्ट्र चार्टर को कायम रखने का आह्वान करते हुए अपनी विशिष्ट रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखती है। साथ ही, रूसी सैन्य कार्रवाई पर भारत की प्रतिक्रिया दोनों पक्षों के बीच शत्रुता को कम करने की इच्छा के साथ नई दिल्ली के राष्ट्रीय हितों की रक्षा में निहित है। विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत पिछले कई वर्षों से तनाव के कारणों पर नज़र रख रहा है और हमेशा से जानता था कि यह कोई सामान्य संघर्ष या युद्ध नहीं था। यह इतिहास में गहरी जड़ों वाला एक बहुस्तरीय संघर्ष है। अगर भारत युद्ध रुकवाने में सफल हो जाता है तो यह बहुत बड़ी बात होगी। भारत दृढ़ होकर दोनों पक्षों से शांति की मेज पर आने का आह्वान करेगा तो वह इंकार नहीं कर पाएंगे और यह असीमित युद्ध खत्म हो जाएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com