विकासशील देश से विकसित देश की ओर बढ़ते भारत के सामने अभी भी कुछ सामाजिक और धार्मिक समस्याएं हैं जिनसे आजादी के 75वें वर्ष में भी हमें जूझना पड़ रहा है। इस समय देश की सबसे बड़ी विकराल समस्या इसकी विशाल जनसंख्या है। कई दूसरे देशों की तरफ देखा जाए तो वह इसलिए हम से आगे बढ़ गए क्योंकि उन्होंने अपने देश की जनसंख्या को नियंत्रण करने के प्रयास काफी पहले शुरू कर दिए थे। चाहे वो अपने देश के नागरिकों के मानसिक दृष्टिकोण को सही करने के प्रयास हों या फिर सीमित बच्चे अपनाने के लिए सरकारी प्रोत्साहन योजनाएं।
भारत के लिए यह बहुत बड़ी राहत की बात है कि देश की कुल प्रजनन दर 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पांचवें दौर की रिपोर्ट में सामने आए इन आंकड़ों से यह साफ है कि यह जनसंख्या नियंत्रण उपायों की अहम प्रगति का परिणाम है। कुल प्रजनन दर को प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या के रूप में माना जाता है। रिपोर्ट के अनुसार देश में केवल पांच राज्य हैं जो 2.1 के प्रजनन क्षमता के रिप्लेसमैंट लेवल से ऊपर हैं। इन आंकड़ों से यह संकेत मिलते हैं कि देश जनसंख्या नियंत्रण की ओर बढ़ रहा है। सर्वे में यह तथ्य भी सामने आया है कि बच्चों के पोषण में मामूली सुधार हुआ है। स्टंटिंग 38 प्रतिशत से घटकर 36 प्रतिशत हो गया है, जबकि कम वजन के मामले 3.6 प्रतिशत से घटकर 32 प्रतिशत हो गए हैं, लेकिन यह परिवर्तन महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि इन संकेतों के संबंध में बहुत कम अवधि में भारी बदलाव की सम्भावना नहीं है। यह भी राहत देने वाली बात है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 87 प्रतिशत जन्म संस्थानों में होते हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 94 प्रतिशत है। असम, बिहार, मेघालय, छत्तीसगढ़, नागालैंड, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में संस्थागत जन्म में 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ौतरी हुई है। इसका अर्थ यह है कि पिछले पांच साल में 91 प्रतिशत से अधिक जिलों में 70 प्रतिशत से अधिक जन्म स्वास्थ्य सुविधाओं में हुए।
जहां तक भारत में जनसंख्या नीति के इतिहास की बात है तो सन् 1960 में सर्वप्रथम भारत के लिए जनसंख्या नीति बनाने का सुजाव तत्कालीन विशेषज्ञों के एक समूह ने दिया था, परन्तु धरातल में भारत जनसंख्या नीति की सरकारी घोषणा सन् 1976 से देश में आपातकाल के दौरान हुई है। फिर हुए सत्ता परिवर्तन के बाद आई जनता पार्टी की सरकार द्वारा सन् 1978 में ही पुनः संशोधित जनसंख्या नीति की घोषणा कर दी। सम्भवतया जनसंख्या नीति में सन् 1978 का यह संशोधन सन् 1976 में राष्ट्रीय इमरजेंसी के दौरान पदस्थ कांग्रेस सरकार की कड़ी जनसंख्या नीति के दुष्प्रभाव को सुधारने के लिए किया गया था।
इसके साथ ही यह भी सर्वथा सत्य है कि सन् 1975-76 के आपातकाल के दौरान तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस ने भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या की भयावह स्थिति को सबसे पहले समझा था और फिर जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावी उपाय के रूप में नसबंदी नीति को प्रोत्साहन दिया परन्तु उक्त अवधि में नसबंदी नीति के सरकारी दुरुपयोग के कई उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हुए हैं, जिसमें से कुछ मामले तो विशेषतः हिन्दू साधु-संतों और अविवाहित पुरुषों तक की जोर जबरदस्ती से नसबंदी करने के भी रहे। यह सब तत्कालीन सत्तारूढ़ सरकार द्वारा नसबंदी के लिए निर्धारित कोटे को पूरा करने के लिए किया गया, बताया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी सरकारी नीति तभी कारगर होती है जबकि वह वहीं के नागरिकों द्वारा स्वेच्छा और सहजता से अपनाई जाती है न कि जोर जबरदस्ती से।
आपातकाल की ज्यादतियों को लोग आज तक नहीं भूल पाए हैं। सन् 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान नई जनसंख्या नीति लाई गई। जिसमें विवाह की न्यूनतम आयु लड़की के संबंध में 18 और लड़के के मामले में 21 वर्ष करने का निर्णय लिया गया। इस नीति में जनसंख्या नीति के सिद्धांतों को अपनाने वाले दम्पतियों को पुरस्कृत करने, बाल विवाह निरोधक कानून के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने का प्रावधान किया गया। 2005 में तत्कालीन यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया। जनसंख्या नियंत्रण के लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों के परिणाम अब जाकर मिलने लगे हैं। विडम्बना यह है कि बिहार जनसंख्या नियंत्रण में अभी भी फिसड्डी साबित हुआ है। 2.98 प्रजनन दर के साथ बिहार सबसे आगे है, जो जनसंख्या वृद्धि के लिए काफी खतरनाक है। बिहार के ग्रामीण इलाकों में शहरों की तुलना में प्रजनन दर अधिक है। अब समय आ गया है कि यदि भारत को विश्व में आर्थिक शक्ति बनना है तो उसे जनसंख्या वृद्धि को कम करना ही होगा। इसके लिए सरकार को भारतीय नागरिकों को मानसिक रूप से तैयार करने के लिए कुछ नई नीतियों को प्रभावी तौर पर पेश करना होगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार की बेहतर योजनाओं और लोगों में जनसंख्या वृद्धि को लेकर चेतना आई है और वह महसूस करने लगे हैं कि यदि आबादी बढ़ती गई तो शुद्ध वायु, शुद्ध जल और पर्याप्त आवास की व्यवस्था विकराल रूप धारण कर लेगी। कुछ राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण नीति लागू करने की बात कर रही हैं, लेकिन मैं समझता हूं कि देश के नागरिकों को स्वयं जागरूक होकर सोचना होगा, समझना होगा। क्योंकि धर्म राष्ट्र धर्म से बड़ा नहीं हो सकता।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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