भारत की पहचान ‘बन्धुता’ - Punjab Kesari
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भारत की पहचान ‘बन्धुता’

सर्वोच्च न्यायालय के विद्वान न्यायमूर्तियों ने भारत में विभिन्न थानों या जगह के नाम बदलने के लिए एक

सर्वोच्च न्यायालय के विद्वान न्यायमूर्तियों ने भारत में विभिन्न थानों या जगह के नाम बदलने के लिए एक ‘पुनर्नामकरण आयोग’ गठित करने सम्बन्धी याचिका को विचारार्थ स्वीकृत किये जाने की अर्जी को जड़ से खारिज करते हुए जो टिप्पणियां की हैं वे भारत की समन्वित संलिष्ठ संस्कृति के संदर्भ में अत्यन्त महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव डालने वाली हैं। न्यायमूर्ति सर्वश्री जोसेफ व श्रीमती नागरत्ना ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय को चेतावनी भरे लहजे में साफ किया कि वह ऐसी याचिकाएं दायर करते भारतीय समाज को उसके अतीत या भूतकाल का गुलाम बनाये रखना चाहते हैं तथा इसमें लगातार उबाल पैदा करना चाहते हैं। इतिहास को चुनिन्दा तरीके से नहीं पढ़ा जा सकता है। जहां तक हिन्दुत्व का प्रश्न है तो इसमें ‘दोहरेपन’ के लिए कोई स्थान नहीं है। तत्व ज्ञान के सम्बन्ध में यह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म माना जाता है। अपनी ऐसी हरकतों से उसे ‘छोटा’ मत बनाइये। जीवन जीने के मामले में जो हिन्दू शैली है वह समावेशी व सभी का सम्मान करने वाली है। उपाध्याय की दलील थी कि उन सांस्कृतिक महत्व के स्थानों का मूल नाम वापस रखने के लिए केन्द्र सरकार एक आयोग का गठन करे जिन्हें ‘आक्रमणकारियों’ ने बदल दिया था। विद्वान न्यायाधीशों का मत था कि इस प्रकार की दलील का मन्तव्य यदि एक विशेष धार्मिक समाज को निशाना बनाने का है तो आप उस वर्ग के लोगों को नीचा दिखाना चाहते हैं।
 भारत एक पंथ निरपेक्ष (सेकुलर) राज्य है और इसकी संरचना का ताना-बाना भी इसी के अनुरूप है। हिन्दू रीति-रिवाज जीवन जीने की एक शैली है जिसमें सभी मतों व पंथों के लोग आकर समाहित हो जाते हैं। इसी गुण की वजह से हम सब लोग इकट्ठा रहते हैं। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने तो यहां तक कहा कि भारत में ‘बांटों और राज करो’ की नीति तो अंग्रेजों ने चलाई। किसी भी देश का इतिहास इसके वर्तमान और भविष्य को अपना बन्दी इस प्रकार बनाकर नहीं रख सकता कि आने वाली पीढि़यां इसकी गुलामी में ही पड़ी रहें। भारतीय संविधान की उद्देशिका में समता व बन्धुत्व का सिद्धान्त इसमें चमकते स्वर्णाक्षर की तरह है। याचिकाकर्ता की इस दलील पर कि भारत के बहुत स्थानों के नाम विदेशी लुटेरों के नाम पर रखे गये हैं और दिल्ली में ही इब्राहीम लोदी, महमूद गजनवी और मुहम्मद गौरी तक के नाम पर कई जगहों के नाम हैं, न्यायमूर्तियों ने कहा कि बिल्कुल ठीक बात है। हम पर आक्रमण हुए हैं और हम पर उनका राज भी रहा है मगर इतिहास ने अपना काम किया है लेकिन इसका क्या यह मतलब है कि आप इतिहास से इन आक्रमणों को मिटा देना चाहते हैं ? इससे आप क्या हासिल करना चाहते हैं ? क्या हमारे देश में अन्य कोई समस्या नहीं है? न्यायमूर्ति नागरत्ना ने ताईद की कि ऐसी याचिकाएं दायर करके हमें समाज को बांटने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। कृपया देश के बारे में सोचिये न कि किसी मजहब के बारे में। हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत को गणराज्य बनाया है जिसका मतलब एक चुना हुआ राष्ट्रपति होना ही नहीं है बल्कि देश के सभी सम्प्रदायों के लोगों की इसमें भागीदारी होना है। अतः बहुत आवश्यक है कि हम आगे बढे़ं और उस उद्देश्य की प्राप्ति करें जो हमारे संविधान की उद्देशिका और मूलभूत जिम्मेदारियों में हैं। 
नागरिकों के मूलभूत कर्त्तव्यों में यह उल्लिखित है कि भारत का प्रत्येक नागरिक इस देश की समन्वित-संलिष्ठ संस्कृति का आदर करेगा और अन्य नागरिकों के साथ प्रेम व भाईचारा बनाये रखेगा। जाहिर है कि सर्वोच्च न्यायालय ने जिस प्रकार उपाध्याय की  याचिका को पहली ही नजर में सिरे से खारिज किया है उसके प्रभाव भारत के लोगों पर बहुत गहरे होंगे और वे सोचने पर मजबूर होंगे कि क्या केवल किसी स्थान के नाम बदल देने से इतिहास को बदला जा सकता है? यह हकीकत है कि भारत पर सात सौ वर्षों तक मुस्लिम सुल्तानों समेत मुगलों का राज रहा है मगर क्या उनके राज में भी भारत की मूल संस्कृति नष्ट हो सकी। बल्कि उल्टा यह हुआ कि उनके मजहबों पर भी भारत के उदार मतों का प्रभाव पड़ा और वे भारत के ही होकर रह गये। 
हमें इतिहास के इस पक्ष को भी देखना चाहिए कि मुगलों के राज में भारत ने अपनी प्रगति की रफ्तार को कम नहीं होने दिया और यह पूरी दुनिया में आर्थिक ताकत बनकर खड़ा रहा। बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है जब 1756 में बंगाल के नवाब सिरोजुद्दौला को ईस्ट इंडिया कम्पनी के लार्ड क्लाइव ने पलाशी के मैदान में छल-बल से हराया था तो उस समय तक विश्व बाजार में भारत का हिस्सा 24 प्रतिशत के आसपास था। अर्थात जितनी सम्पत्ति पूरी दुनिया में पैदा होती थी उसका एक-चौथाई तो भारत में ही उत्पन्न होता था जबकि जहांगीर के शासन में यह हिस्सा और भी बहुत ज्यादा था। जबकि व्यापार-वाणिज्य के क्षेत्र में हिन्दुओं का ही आधिपत्य था। दूसरी तरफ अंग्रेजों का शासन 1947 में खत्म होने पर विश्व बाजार में भारत का हिस्सा एक प्रतिशत से भी कम रह गया था। 
आज 75 वर्ष बाद भी यह मात्र दो प्रतिशत ही हो सका है। अतः आसानी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने किस कदर इस मुल्क को भीतर से खोखला किया। यहां यह भी लिखा जाना जरूरी है कि कुछ मुस्लिम आक्रान्ताओं ने भारत को केवल लूटा जिनमें नादिरशाह और अहमद शाह अब्दाली के नाम प्रमुख हैं मगर वे भारत में नहीं रुके। जहां तक मुगलों का सवाल है तो अन्तिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर ने अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था और इसके लिए उनके पीछे पूरी हिन्दू रियाया खड़ी हुई थी। अतः भारत की महानता को हम इसकी विविधतापूर्ण विशालता के आइने में रखकर दी देखेंगे। यह ताईद सर्वोच्च न्यायालय ने करने की कोशिश की है।

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