एनआरसी अर्थात नेशनल रजिस्टर ऑफ सीटीजन का मतलब है भारतीय नागरिकता। लगभग चार-पांच साल पहले असम को लेकर बवाल उठा कि वहां भारतीय अर्थात हिंदू मुसलमानों की बढ़ती आबादी के चलते अल्पसंख्यक हो रहे हैं। इस बवाल के बाद राजनीतिक समीकरण ऐसे बदले कि वहां हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर अब लगातार दूसरी बार पावर में आई मोदी सरकार ने असम में एनआरसी को लेकर तय किया कि जिन लोगों के नेशनल रजिस्टर में नाम होंगे वे देश के नागरिक माने जायेंगे।
यह सब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ही किया गया था लेकिन हमारे लोकतंत्र में बवाल आम बात है जो अभी भी दुष्प्रचार के चलते जारी है। असम में दुष्प्रचार किया गया कि लाखों लोग नागरिकता की सूची से बाहर रह गये हैं आग सुलगने लगी लेकिन इस देश का नागरिक पहले भारतीय अर्थात जो हिंदू है वही नागरिक है और वह जात-पात एवं मजहब से ऊपर है, यह सोचकर सरकार एक्शन में आ गई। गृहमंत्री अमित शाह ने पहले लोकसभा तो बाद में राज्यसभा में राष्ट्रीय नागरिकता पर बिल पास करवा कर कानून बनाकर ही दम लिया।
दरअसल संशोधित बिल अर्थात सीएबी में बंग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 1952 के बाद आए किसी भी हिंदू, सिख, जैन, ईसाई और पारसी को नागरिकता के दायरे में शामिल करने की बात कही गयी। इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया। बस इसी मुद्दे पर अब जबकि नागरिकता को लेकर कानून बन चुका है तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे देश में जहां मुसलमान अपने आप को कठघरे में खड़ा हुआ मानकर यह कह रहे हैं कि उनकी नागरिकता सीएए अर्थात नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत छीनी जा रही है, लिहाजा विरोध प्रचंड रूप ले चुका है।
विदेशों में खासतौर पर मुस्लिम राष्ट्रों में कट्टरपंथी मुस्लिम लोग आज भी जुल्मों-सितम के लिए कुख्यात हैं परन्तु अब भारत में यह मजहब वालों को जब नागरिकता मिली हुई है तो भी अमित शाह जी कानून लेकर आए हैं तो उसके खिलाफ दुष्प्रचार किया जा रहा है। हमारा यह दावा है कि नया सीएए देश की नागरिकता लोगों को देता है न कि छीनता है। मुस्लिम राष्ट्रों में जाने पर हिन्दुओं को कोई पूछता नहीं और उन्हें बिना वजह मुस्लिम सरकारों के जुल्म झेलने पड़ते हैं परन्तु यहां लगभग 25 करोड़ मुसलमान जो पाकिस्तान की कुल आबादी से भी ज्यादा हैं पूरे संवैधानिक अधिकारों के साथ रह कर मौज कर रहे हैं।
बड़ी बात यह है कि हमारे यहां विभिन्न सरकारों में मुस्लिम समुदाय के लोग बड़े पदों पर भी आसीन हैं। उन्हें नागरिकता मिली हुई है परन्तु वह इसे भारतीयता नहीं कहते और पाकिस्तान का गुणगान करते हैं, यह हमारे यहां नहीं चलेगा। अब उनका विरोध एकदम बिना वजह है और यह खत्म होना चाहिए। पुलिस और सेना का कड़ा एक्शन जरूरी है, हम इसका समर्थन करते हैं। खुद सरकार की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को बार-बार यह सफाई देनी पड़ रही है कि किसी भारतीय मुसलमान की नागरिकता नहीं छीनी जा रही।
यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी 59 से ज्यादा याचिकाएं संशोधित नागरिकता कानून को चैलेंज करने को लेकर पहुंच गयी हैं और सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि कानूनन इस पर रोक नहीं लग सकती। हमारा मानना है कि सरकार की ओर से देश में हिंदुओं को अर्थात भारतीयों को कभी भी मजहब के आधार पर संविधान ने नहीं माना। सबको भारतीय नागरिक पहले माना है। इसलिए किसी भी मुसलमान की भारतीय नागरिकता को खत्म नहीं किया जा सकता और न ही यह खत्म हो रही है लेकिन लोकसभा और राज्यसभा में इस बिल के पास हो जाने के बाद विपक्ष पर भी इस बिल को लेकर हिंसा फैलाने के आरोप सरकार की ओर से लगने लगे हैं।
जिस देश में रामप्रसाद बिस्मिल और पठान अशफाक उल्ला खान जैसे लोगों ने मिलकर अपनी जान आजादी की लड़ाई के लिए दी हो या जब शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु ने अपनी जान कुर्बान की तो कभी देश में हिंदू-मुसलमान का शोर नहीं था और अब आजादी के बाद जब भारत दुनिया की एक महाशक्ति बनने की राह पर है तो फिर यह विवाद नहीं होना चाहिए। देश पहले है, जात-पात और मजहब बाद में।
धारा 370, जो जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा देती थी, खत्म कर दी गयी और अब तो विरोध भी खत्म हो गया तो नए नागरिकता संशोधन कानून को लागू करना सरकार का एक राष्ट्रीय दायित्व है जिसे उसने निभाया है और हम इसका स्वागत करते हैं। पूरे देश को इसका स्वागत करना चाहिए तथा एक विकासशील राष्ट्र में हमेशा सबका साथ सबका विश्वास और सबका विकास होना चाहिए। यही भारत की संस्कृति है और हम इसे सैल्यूट करते हैं। हिंसा की इसमें कोई जगह नहीं होनी चाहिए, यह बात देशवासियों को याद रखनी चाहिए।