भारत-चीन जर्नलिस्ड पॉलिटिक्ल - Punjab Kesari
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भारत-चीन जर्नलिस्ड पॉलिटिक्ल

भारत और चीन के संबंध बहुत बुरे दौर में चल रहे हैं। ऐसे समय में कूटनीति की जरूरत होती है लेकिन चीन अपनी धूर्त्तता  से बाज नहीं आ रहा। वह बार-बार भारत को उकसाने वाली कार्रवाइयां करता आ रहा है। अब दोनों देशों के बीच पत्रकारों को लेकर राजनीति शुरू हो चुकी है। दोनों देश पत्रकारों के मामले पर आमने-सामने हैं। चीन ने भारत के आखिरी पत्रकार न्यूज एजैंसी प्रैस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पत्रकार को जून के अंत तक चीन छोड़ने का फरमान सुना ​िदया है। इस साल चीन में कुल 4 पत्रकार कार्यरत थे। इनमें से 3 पत्रकारों को चीन पहले ही निकाल चुका है। आखिरी भारतीय पत्रकार के वापिस भारत लौटने के बाद दोनों देशों में एक-दूसरे का एक भी पत्रकार नहीं रहेगा। इससे पहले भारत ने चीन के पत्रकारों का वीजा रिन्यू करने से इंकार कर दिया। इस पूरे घटनाक्रम के बाद ए​िशया के दो शक्तिशाली देश भारत और चीन में दूरियां और बढ़ गईं। भारत से पहले ऐसा ही सलूक अमेरिका और आस्ट्रेलिया के साथ भी किया जा चुका है, तब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे। तब उन्होंने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया था। इस घटनाक्रम से सा​बित हो गया है ​िक जिनपिंग के शासन में प्रैस की आजादी ​​बिल्कुल नहीं है। 
देशों के बीच राजनयिक विवाद तो होते रहे हंै। राजनयिकों पर जासूसी के आरोप भी लगते रहे हैं और उन्हें निष्कासित भी किया जाता रहा है लेकिन पत्रकारों के निष्कासन से आज के युग में दोनों तरफ की सूचनाओं का अंधकार फैल जाने का खतरा पैदा हो गया है। चीन सरकार भारत के पत्रकारों के मामले में दोहरा रवैया अपनाती रही है। चीन में भारत के सिर्फ तीन पत्रकारों को काम करने की मंजूरी दी जाती है लेकिन बीजिंग चाहता हैै कि उसके जितने चाहे पत्रकार भारत में रहे। ऐसा भेदभाव भारत कैसे सहन कर सकता था। भारत ने भी सख्त रुख अपनाते हुए चीन के पत्रकारों का वीजा बढ़ाने से इंकार कर ​​दिया था, जिसके चलते चीन पहले से ही परेशान था। चीन में भारतीय पत्रकारों को स्वतंत्रतापूर्वक काम नहीं करने दिया जाता। उनकी गतिविधियों पर 24 घंटे निगरानी रखी जाती है और उनसे अनुचित व्यवहार किया जाता है। भारतीय पत्रकारों को यात्रा करते समय भी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। जबकि भारत में चीनी पत्रकारों को ​िबना ​िकसी बाधा के काम करने दिया जाता है। दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव 2020 में शुरू हुआ था। जो अब तक खत्म नहीं हुआ। सीमा विवाद के चलते परिदृश्य काफी जटिल हो गया है। 
चीन के साथ सीमा विवाद को समझने से पहले थोड़ा भूगोल समझना जरूरी है। चीन के साथ भारत की 3,488 किमी. लंबी सीमा लगती है। सीमा तीन सैक्टर्स-ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न में बंटी हुई है। ईस्टर्न सैक्टर में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा चीन से लगती है, जो 1346 किमी. लंबी है। मिडिल सैक्टर में हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा है, जिसकी लंबाई 545 किमी. है। वहीं, वेस्टर्न सैक्टर में लद्दाख आता है, जिसके साथ चीन की 1,597 किमी. लंबी सीमा लगती है। डोकलाम और गलवान विवाद ने दोनों देशों के संबंधों में आग में घी डालने का काम किया है।
चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी. के हिस्से पर अपना दावा करता है। जबकि लद्दाख का करीब 38 हजार वर्ग किमी. का हिस्सा चीन के कब्जे में है। इसके अलावा 2 मार्च, 1963 को हुए एक समझौते में पाकिस्तान ने पीओके की 5,180 वर्ग किमी. जमीन चीन को दे दी थी। अरुणाचल में चीन के साथ सीमा विवाद की वजह मैकमोहन लाइन है। मैकमोहन लाइन 1914 में तय हुई थी। इस लाइन में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया था। आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन लाइन को माना लेकिन चीन ने इसे मानने से इन्कार कर दिया। चीन ने दावा किया कि अरुणाचल दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है और चूंकि तिब्बत पर उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के साथ रिश्तों को मजबूत करने के लिए नया रास्ता निकाला। ये रास्ता भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के रूप में सामने आया। डोकलाम विवाद के उपजे तनाव के बीच चीन के वुहान में अप्रैल 2018 को दोनों देशों के बीच पहला अनौपचारिक शिखर सम्मेलन हुआ। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों मतभेदों को दूर कर हर तरह के सहयोग को बढ़ाने पर सहमत हुए। वुहान शिखर सम्मेलन ने डोकलाम संकट से बने तनाव को कम करने में अहम भूमिका निभाई। दोनों देशों के बीच दूसरा अनौपचारिक शिखर सम्मेलन तमिलनाडु के मामल्लपुरम अक्तूबर 2019 में हुआ। इस दौरान नरेंद्र मोदी और जिनपिंग ने दोस्ताना माहौल में आपसी संबंधों के दायरे को बढ़ाने पर सहमति जताई। इस दौरान दोनों नेताओं ने सीमावर्ती इलाकों में शांति बनाए रखने को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की। हालांकि इसके बाद जून 2020 में गलवान में चीन सैनिकों की कार्रवाई के बाद भारत-चीन के रिश्तों ने फिर से यूटर्न ले लिया।
 सीमा विवाद के बावजूद दोनों देशों के कारोबारी रिश्ते मजबूत हुए हैं। 2021-22 में दोनों देशों के बीच 115 अरब डॉलर का व्यापार हुआ लेकिन ​चिंता की बात यह भी है कि चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है। भारत चीन को अब उसी की भाषा में जवाब देने लगा है। भारत लगातार स्पष्ट करता आ रहा है कि सीमा पर एक पक्षीय फेरबदल अब स्वीकार नहीं किया जाएगा। भारत चीन की दबावपूर्ण नीतियों को स्वीकार नहीं कर रहा और वह चीन का कड़ा​ विरोध कर रहा है। दोनों देशों के संबंध तभी मधुर बनेंगे जब चीन अपनी टुच्ची हरकतें बंद करेगा। चीन को भारत की अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना होगा और शांतिपूर्ण सहअस्त्वि की नीति का पालन करना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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