भारत-आसियान संबंध - Punjab Kesari
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भारत-आसियान संबंध

म्यांमार में गृह युद्ध और दक्षिणी चीन सागर में जारी तनाव दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के लिए अस्तित्व का सवाल बन चुके हैं। हाल ही के वर्षों में आसियान को कई ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा जो संगठन की एकता के लिए खतरा बनी। लाओस में हुए आसियान सम्मेलन में काफी हद तक एकजुटता दिखाई है। चीन को कड़ा संदेश दिया गया है लेकिन म्यांमार के संकट पर कोई उम्मीद नजर नहीं आई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मंच से दुनिया को शांति का संदेश दिया और कहा कि भारत एक शांतिप्रिय देश है और वह हर देश की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करता है। प्रधानमंत्री ने आसियान देशों में संपर्क और लचीलापन बढ़ाने के उद्देश्य से 10 सूत्री योजना का ऐलान भी किया। आसियान संगठन की स्थापना 8 अगस्त 1967 को हुई थी और इसका उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देना है। आसियान भारत शिखर सम्मेलन का उद्देश्य भी यही है।
भारत और आसियान के बीच संबंधों की शुरुआत 1992 में हुई थी, जब भारत को “सांवादिक साझेदार” के रूप में शामिल किया गया था। इसके बाद, 2002 में पहली बार आसियान- भारत शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। तब से यह सम्मेलन हर साल आयोजित होता है, जिसमें भारत और आसियान के सदस्य देशों के नेता एक मंच पर आकर विभिन्न क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

2009 में, भारत और आसियान के बीच वस्तुओं पर मुक्त व्यापार समझौता लागू हुआ, जिससे दोनों पक्षों के बीच व्यापार में तेजी आई। इसके अलावा, सेवाओं और निवेश पर भी समझौतों को लागू किया गया है, जिससे आर्थिक संबंध और मजबूत हुए हैं। इस शिखर सम्मेलन के तहत, दोनों पक्षों ने “आसियान-भारत फंड” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं को वित्तपोषण प्रदान करना है। आसियान भारत की एक्ट ईस्ट नीति का केन्द्र है। यह नीति एशिया प्रशांत क्षेत्र में विस्तारित पड़ोस पर आधारित है। 1990 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने लुक ईस्ट नीति की शुरूआत की थी। नरसिम्हा राव चाहते थे कि आसियान देशों के साथ भारत के संबंधों को रणनीतिक रूप दिया जाए और चीन के रणनीतिक प्रभाव को कम किया जाए। इसी नीति का अनुसरण अटल बिहारी वाजपेयी ने भी किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लुक ईस्ट नीति को एक्ट ईस्ट नी​ति में बदल डाला। भारत और आसियान के बीच रिश्ता प्राचीन काल से ही है जब व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता था। भारत के सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ ऐतिहासिक संबंध रहे लेकिन बिना सोवियत संघ वाली दुनिया में भारत को दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से संबंध कायम करने की जरूरत थी। क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए भी यह संबंध बहुत जरूरी थे।

लाओस शिखर सम्मेलन में भी भारत समेत सभी 10 सदस्य देशों ने चीन की दक्षिण चीन सागर नीति की कड़ी निन्दा की और उसे खरी-खरी सुनाई।इस सम्मेलन के दौरान विवादित दक्षिण चीन सागर में झड़पों के बाद दक्षिण पूर्व एशियाई नेताओं ने अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करने के लिए चीन पर दबाव बढ़ा दिया है। इस सम्मेलन के दौरान चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग अलग-थलग ही दिखे। इस बैठक के दौरान उन्होंने अपने क्षेत्रीय मामलों में हस्तक्षेप के लिए “बाहरी ताकतों” को दोषी ठहराया। ये बैठक उस समय आयोजित किया जब कुछ दिन पहले ही चीन और आसियान सदस्यों फिलीपींस और वियतनाम के बीच समुद्र में हिंसक टकराव हुआ था। पीएम मोदी ने भी इस सम्मलेन में चीन का नाम लिए बगैर उसे बड़ी नसीहत दे डाली। पीएम मोदी ने अपने बयान में कहा कि हम शांतिप्रिय राष्ट्र हैं, जो एक-दूसरे की राष्ट्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करते हैं और हम अपने युवाओं के लिए उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मेरा सबका मानना है कि 21वीं सदी ‘एशियाई सदी’ है. आज, जब दुनिया के कई हिस्सों में संघर्ष और तनाव है, भारत और आसियान के बीच दोस्ती, समन्वय, संवाद और सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो 10 सूत्री कार्ययोजना पेश की है उनमें अगले वर्ष आसियान भारत पर्यटन वर्ष मनाना और इसके लिए संयुक्त गतिविधियों के लिए 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर देना, युवा शिखर सम्मेलन, आसियान देशों के छात्रों के लिए वजीफों की संख्या दाेगुनी करना, थिंक टैंक नेटवर्क को मजबूत बनाना आदि शामिल हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले 10 सालों में भारत आसियान व्यापार दोगुना हो कर 130 विलियम अमेरिकी डॉलर से अ​धिक हो गया है। आसियान ​आज भारत के सब से बड़े व्यापार और ​निवेश भागीदारों में इसे एक है। सात आसियान देशों के साथ भारत की सीधी उड़ान संपर्क कायम है। पिछले कुछ वर्षों से भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ी हैं। इसके लिए भी आसियान देशों से संबंधों को गहरा करना जरूरी है। देखना होगा कि आसियान म्यांमार के गृहयुद्ध को समाप्त करने की दिशा में क्या भूमिका निभाता है। आसियान के दबाव के चलते म्यांमार की सेना का रुख कुछ नर्म हुआ है और इसने विद्रोही समूहों को बातचीत का न्यौता भी भेजा है। देखना होगा कि आसियान देश कूटनीतिक तरीकों से म्यांमार के संघर्ष को समाप्त करने की क्या पहल करते हैं।

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