भारत और तालिबान के रिश्ते - Punjab Kesari
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भारत और तालिबान के रिश्ते

भारत और अफगानिस्तान के संबंध प्राचीनकाल से ही गहरे रहे हैं। महाभारत काल में अफगानिस्तान का गांधार जो

भारत और अफगानिस्तान के संबंध प्राचीनकाल से ही गहरे रहे हैं। महाभारत काल में अफगानिस्तान का गांधार जो वर्तमान समय में कंधार है की राजकुमारी का विवाह हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र से हुआ ​था। महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में अफगानिस्तान तक भारत का कब्जा रहा यद्यपि भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते मजबूत रहे लेकिन अगस्त 2021 में अमेरिका और उसके मित्र देशों की फौजों की वापसी के बाद तालिबान का कब्जा हो गया। तब से ही तालिबान से जुड़ने को लेकर भारत ने काफी सतर्क रुख अपनाया है।

भारत सरकार अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं देती लेकिन तालिबान के साथ उसका सम्पर्क उतना ही रहा जो रणनीतिक रूप से उचित रहा है। भारत ने अफगानिस्तान में अरबों रुपए का निवेश किया हुआ है। भारत ने ही उनकी संसद का निर्माण करके दिया है। रेलवे नेटवर्क से लेकर सड़कें बनाने की परियोजनाएं भारत ने पूरी की हैं। युद्ध में जर्जर हो चुके अफगानिस्तान के पुनर्निमाण में भारत ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। तालिबान शासन आने के बाद पा​िकस्तान के हुकमरानों ने खुशियां मनाई थीं और इस बात का ढिंढोरा पीटा था कि भारत का अफगानिस्तान में किया गया करोड़ाें डालर का निवेश डूब जाएगा। पाकिस्तान चाहता था कि अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी न रहे और वह अपनी मौजूदगी बढ़ाकर अफगानिस्तान से पूरा फायदा उठाए। भारत ने इसे कूटनीतिक चुनौती के रूप में लिया और तालिबान के साथ सीमित सम्पर्क बनाए रखा। भारत ने शुरू में काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था लेकिन अपनी मौजूदगी बनाए रखने के महत्व को देखते हुए भारत ने अपना दूतावास फिर से खोला और वहां अपनी एक तकनीकी टीम नियुक्त की।

भारत ने सूझबूझ के साथ अपने हितों की रक्षा की। भारतीय विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव जे.पी. सिंह के नेतृत्व में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अफगानिस्तान के रक्षामंत्री मोहम्मद याकूब से मुलाकात की। इस बैठक में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने, खासकर मानवाधिकार मामलों समेत अन्य मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी। तालिबान से सम्पर्क बढ़ाने के मुद्दों पर केन्द्र की मोदी सरकार और विदेशमंत्री एस. जयशंकर बड़ी सूझबूझ से आगे बढ़े। आज हालात यह है कि तालिबान और पाकिस्तान के संबंध इस वक्त सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं।

दोनों देशों के सीमावर्ती इलाकों में अक्सर झड़पें होती रहती हैं। पाकिस्तान की तरफ से जो हमले अफगानिस्तान की सरजमीं पर होते हैं। उसके लिए तालिबान सरकार पाकिस्तान पर आरोप लगाती है। तालिबान का कहना है कि पाकिस्तान ने इस्लामिक स्टेट-खुरासान के प्रमुख आतंकियों को संरक्षण दे रखा है। ये लोग वहीं से बैठकर अफगानिस्तान और अन्य मुल्कों में हमले कराते हैं। पाकिस्तान में छिपे ऐसे ही कई अन्य आतंकी संगठनों पर भी तालिबान अंगुली उठाता रहता है। उसका मानना है कि ये संगठन तालिबान को अस्थिर करने की कोशिशें करते रहते हैं। इन वजहों से ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के संबंध सहज नहीं रहे।

इन बदलते हालात के बीच भारत और तालिबान में अब सम्पर्क कायम हो गया है। भारत ने तालिबान सरकार को ईरान में भारत द्वारा विकसित किए जा रहे चाबहार बंदरगाह का व्यापार के लिए इस्तेमाल करने के लिए पेशकश की है। तालिबान-अफगानिस्तान पर आयो​िजत संयुक्त राष्ट्र की बैठक में भारत के सम​र्थन को लेकर पहले ही आभार व्यक्त कर चुका है। तालिबान शासन ने भारत द्वारा शुरू की गई ​परियोजनाओं को रोका भी नहीं है।

इसके बाद भारत ने अफगानिस्तान की स्थिति को देखते हुए मानवीय सहायता प्रदान की। इसके तहत अफगानिस्तान को गेहूं और दवाइयों समेत कई जरूरी सामान भेजे गए। हालांकि, इस काम में पाकिस्तान ने अपनी तरफ से खूब अड़चन पैदा करने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो सका। 2023-24 में, भारत ने अफगान सहायता के लिए लगभग 24 मिलियन अमेरिकी डॉलर आवंटित किए, जो अफगान के लोगों का समर्थन करने के लिए उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत, अफगानिस्तान के क्षेत्रीय सहयोगी के रूप में सामने आया और कई तरह से मदद की। काबुल में तालिबान द्वारा आयोजित क्षेत्रीय सम्मेलन में भाग लेते हुए, भारत ने क्षेत्रीय स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका पर जोर दिया। यह जुड़ाव क्षेत्र में भारत की सक्रिय कूटनीति को उजागर करता है।

अफगानिस्तान अब भारत स्थित अफगान दूतावास में अपने प्रतिनिधि की नियुक्ति चाहता है। चाबहार बंदरगाह को भारत अफगानिस्तान और अन्य पड़ोसी देशों के बीच एक महत्वपूर्ण पारगमन केन्द्र के रूप में देखा जाता है। दोनों देशों में सम्पर्क को नए दौर की शुरूआत के रूप में भी देखा जाना चाहिए। इससे न केवल व्यापारिक और मानवीय संबंध मजबूत होंगे बल्कि दोनों देशों के लिए आर्थिक और सुरक्षा मुद्दों पर सहयोग के नए द्वार भी खुलेंगे।

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