जी-20 सम्मेलन की तैयारियों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में असियान भारत शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए तूफानी कार्यक्रम बनाया। उन्होंने तड़के तीन बजे जकार्ता में लैंडिंग की और 11.45 की उड़ान से नई दिल्ली के लिए रवाना भी हो गए। 9 घंटे से भी कम समय तक वह जकार्ता में रहे। जब भारत में जी-20 सम्मेलन का आयोजन हो रहा है तो प्रधानमंत्री ने आसियान सम्मेलन में भाग लेना क्यों जरूरी समझा। उनकी इस यात्रा से भारत और आसियान के संबंधों के महत्व की झलक मिलती है। आसियान का गठन 1967 में हुआ था। उस समय इस क्षेत्र में बाहरी देशों का काफी दखल था और वियतनाम युद्ध जैसी घटनाएं हुई थीं। दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में विकास करने का जुनून था और आसियान एक सफल प्रयास साबित हुआ। आज दुनिया का एक महत्वपूर्ण संगठन बन चुका है। वर्तमान समय में भारत आसियान संबंध भारत की विदेश नीति का महत्वपूर्ण पक्ष बन गया है। अक्तूबर 2003 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आसियान देशों की यात्रा के साथ ही संबंध एक नए मोड़ पर आ गए।
भारत की लुक ईस्ट नीति के चलते संबंधों में मजबूती आई और भारत एशियाई एकता के सपने को साकार करने के लिए आगे बढ़ने लगा। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने शासनकाल में सम्पर्क स्थापित करने से लेकर नौवहन सुरक्षा, आतंकवाद से मुकाबला, प्रशिक्षण, अभ्यासों और आपदा प्रबंधन सहित सुरक्षा मुद्दों पर सहयोग की जरूरत पर काफी बल दिया था। आसियान के साथ भारत का क्या संबंध है? हालांकि भारत आसियान का सदस्य देश नहीं है, लेकिन उसके इस गुट के साथ संबंध हैं। 1992 में क्षेत्रीय संवाद भागीदार बनने से लेकर 2022 में पीएम मोदी की एक्ट ईस्ट नीति के संचालन में एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक। 2018 में आसियिन नेता भारत के गणतंत्र िदवस परेड में मुख्य अतिथि थे। भारत ने 2010 में आसियान के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं। विशेष रूप से भारत के सदस्य देशों के साथ व्यक्तिगत संबंध भी हैं, जिससे भारत इस समूह के लिए महत्वपूर्ण हो गया।
वर्ष 2030 तक आसियान दुनिया की सबसे बड़ी चौथी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आसियान देशों का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष 2022 में लगभग 10.2 ट्रिलियन डॉलर है। आसियान में बहुत छोटे-छोटे देश हैं। लेकिन विश्व की कुल जीडीपी का लगभग 6 प्रतिशत हिस्सा इन देशों का है। भारत के लिए आसियान आर्थिक और सामरिक दोनों दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी, जो पहले लुक ईस्ट पॉलिसी थी, के तहत पूर्वोत्तर भारत को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. भारत की तरह आसियान देश भी काफी तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्थाएं हैं। ऐसे में इस तरह के क्षेत्रों के साथ जुड़ने से हमारा आर्थिक विकास भी तेज होगा। आसियान देश भारत के चौथे सबसे बड़े व्यापारिक सहयोगी हैं। इनके अतिरिक्त, आसियान देशों के सांस्कृति तौर पर भी हमारे गहरे संबंध रहे हैं। शीत युद्ध के दौर में इसमें दरार आ गयी थी, क्योंकि आसियान देशों का झुकाव अमेरिका की तरफ था और भारत ने तटस्थता की नीति अपनायी थी, मगर रामायण की परंपरा या बौद्ध संस्कृति के लिहाज से इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देशों से भारत की एक सांस्कृतिक निकटता साफ प्रकट होती रही है। ये संबंध यदि फिर से मजबूत होते हैं, तो उससे भारत को बहुत लाभ होगा।
भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण इसलिए महत्वपूर्ण है कि चीन इस इलाके में अपना दबदबा बढ़ा रहा है। दक्षिणी चीन सागर विवाद के चलते मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम जैसे देश चीन का विरोध कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने तूफानी दौरे के दौरान चीन की दुखती रग पर हाथ रखा है। इससे चीन को काफी परेशानी हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सम्बोधन में दक्षिणी चीन सागर और चीन द्वारा हाल ही में जारी किए गए नक्शे को लेकर भी चीन को खरी-खरी सुनाई। प्रधानमंत्री ने संगठन की मजबूती के लिए 12 सूत्री प्रस्ताव भी पेश किया। उन्होंने वन अर्थ वन फैमिली आैर वन फ्यूचर का मंत्री भी दिया है। आसियान के जरिये भारत अपने लिए आर्थिक बेहतरी की सम्भावनाएं पैदा कर रहा है। वहीं आसियान ने भी बड़ी शक्तियों को यह संदेश दिया है कि बाजार के लिए उन पर निर्भर नहीं रहेगा। भारत की आसियान में मजबूत उपस्थिति से यह भी संदेश है कि आसियान का झुकाव भारत की ओर है न कि चीन की ओर। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा व्यापक रणनीतिक सांझेदारी और संबंधों में नई ऊर्जा का संचार किया।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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