चुनावों में भारत एक ‘गुलदस्ता’ - Punjab Kesari
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चुनावों में भारत एक ‘गुलदस्ता’

दो राज्यों और एक नगर निगम के चुनावों में इन क्षेत्रों के मतदाताओं ने जो जनादेश दिया है

दो राज्यों और एक नगर निगम के चुनावों में इन क्षेत्रों के मतदाताओं ने जो जनादेश दिया है उससे एक बार फिर सिद्ध हो गया है कि भारत विभिन्न फूलों का एक ‘खूबसूरत गुलदस्ता’ है जिसमें विभिन्न मत-मतान्तरों के लोग रहते हैं। राजनैतिक स्तर पर गुजरात में भाजपा व हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस और दिल्ली नगर निगम में आम आदमी पार्टी को सत्ता की चाबी सौंप कर भारत के लोगों ने इस देश की बहुदलीय राजनैतिक व्यवस्था के औचित्य को न केवल स्थापित किया है बल्कि यह भी सिद्ध किया है कि मतदाता ही लोकतन्त्र का असली मालिक होता है। भारतीय गणराज्य में अन्ततः नागरिक ही तय करते हैं कि शासन करने का अधिकार किस पार्टी को मिलेगा और हर राज्य में इनकी प्राथमिकताएं अलग-अलग हो सकती हैं। गुजरात में यहां के मतदाताओं ने राज्य में  पिछले 27 वर्षों से चल रही हुकूमत को ही पुनः अवसर देने का फैसला किया जबकि हिमाचल में इसके मतदाताओं ने भाजपा को गद्दी से उतार फैंका और दिल्ली में नगर निगम की चाबी आम आदमी पार्टी को देकर नया प्रयोग किया। इससे भारत के मतदाता की बुद्धिमत्ता का अन्दाजा लगाया जा सकता है। 
लोकतन्त्र की खूबी भी यही होती है कि मतदाता हर पांच वर्ष बाद अपनी सेवा करने वाले राजनैतिक सेवादारों को उनकी काबलियत के मुताबिक नवाजता है। गुजरात में मतदाताओं को लगा कि भाजपा का शासन उनके लिए ठीक है अतः उसने इस बात की परवाह किये बिना पुनः इस पार्टी को चुना कि वह पिछले तीन चुनावों से लगातार जीतती आ रही है जबकि हिमाचल में उसने भाजपा के शासन को नाकारा समझा अतः उसे बदल डाला। जहां तक गुजरात का प्रश्न है तो इस राज्य से ही प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी व गृहमन्त्री श्री अमित शाह आते हैं। इन दोनों ही नेताओं ने गुजरात में जमकर प्रचार किया था। मतदाताओं ने विशेषरूप से प्रधानमन्त्री के वादों और कथनों पर यकीन करने के साथ ही उसे गुजरात का गौरव भी जोड़ा और भाजपा को हटाना उचित नहीं समझा। गुजरात में जिस प्रकार दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने अपने बूते पर मतदाताओं के बीच सेंध लगाने की कोशिश की उसका असर भी हुआ और इसने मुख्य रूप से कांग्रेस के वोट बैंक को छिन्न-भिन्न करते हुए उसमें हिस्सेदारी की जिसकी वजह से राज्य में यह पार्टी धराशायी हो गयी और बामुश्किल 182 सदस्यीय विधानसभा में 20 के नीचे का  आंकड़ा ही छूने में कामयब हो सकी। 
भाजपा ने इस राज्य में नया इतिहास रच डाला और 54 प्रतिशत वोट प्राप्त करके नया कीर्तिमान स्थापित किया। इसका सीधा मतलब यह निकलता है कि राज्य के मतदाताओं ने अन्य पार्टियों के प्रत्याशियों को केवल कुछ अंचलों में ही जीतने लायक वोट दिये। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि गुजरात में भाजपा कमजोर विपक्ष के रहते मनमाना राज चलाये। उसे संविधान का पालन करते हुए कमजोर विपक्ष को भी विधानसभा में साथ लेकर चलना होगा जिससे राज्य के लोगों के कल्याण व विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके। चुनाव के दौरान विपक्ष की पार्टियों ने जो भी खामियां राज्य प्रशासन ने गिनाई हैं उनकी तरफ भी नई सरकार को समुचित ध्यान देना होगा तभी गुजरात में जनता का राज कायम हो सकेगा। इन चुनावों में सरकारी रेवड़ी व जन कल्याण योजनाओं की जो बहस शुरू हुई थी वह तार्किकता के साथ सिरे नहीं चढ़ सकी अतः इस बारे में भी सभी राजनैतिक दलों को सोचना होगा कि केवल चुनावी समय में जनता को लुभाने के लिए मुफ्त की सौगातें देने का लोकतन्त्र पर क्या असर पड़ सकता है। खैर यह बहुत गूढ विषय है जिसकी चर्चा फिर किसी उचित समय पर करूंगा। लेकिन हिमाचल में मतदाताओं ने कांग्रेस को पूर्ण बहुमत देकर सिद्ध किया है कि केवल आक्रामक प्रचार के माध्यम से मतदाताओं को प्रभावित नहीं किया जा सकता। इस राज्य के अधिसंख्य लोग सेना, मैदानी क्षेत्रों में  नौकरियों व सेब की फसल में लगे हुए हैं। इन तीनों ही क्षेत्रों में राज्य की पिछली जयराम ठाकुर सरकार ने जो काम किये उससे लोग सन्तुष्ट नहीं थे और उनमें भारी असन्तोष था। इसका कारण सेना में भर्ती के नियमों में बदलाव किया जाना भी माना जा रहा है और सरकारी कर्मचारियों की पेंशन योजना को बदल दिये जाने से भी जोड़ा जा रहा है। सेना की अग्निवीर योजना का विरोध जिस प्रकार से उत्तर भारत के इस पहले पहाड़ी राज्य में हुआ उसके कई आयाम हो सकते हैं परन्तु इतना निश्चित है कि केवल चार साल के लिए सेना की नौकरी में भर्ती की प्रणाली पर युवा वर्ग के अपने एतराज थे।
हिमाचल प्रदेश के सन्दर्भ में हमें यह ध्यान रखना होगा कि यहां कृषि की संभावनाएं बहुत सीमित रहती हैं साल में छह महीने यहां के पहाड़ों का बहुत बड़ा भाग बर्फ से ढका रहता है। बागबानी के नाम पर यहां सेब व अन्य फलों की उपज होती है। इस उपज के विपणन की लाभकारी प्रबन्ध व्यवस्था करना सरकार की जिम्मेदारी ही होती है। इसके साथ पर्यटन राज्य का मुख्य उद्योग- धंधा है। इसमें अधिकाधिक रोजगार सृजन करने के लिए उपयुक्त तन्त्र की स्थापना करने की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की ही है। लेकिन पहाड़ों पर जिस तरह महंगाई की मार से यहां के निवासियों का जीवन त्रस्त हुआ उसका असर भी हमें चुनाव परिणामों पर देखने को मिल रहा है। दिल्ली नगर निगम में यहां के मतदाताओं ने आम आदमी को बहुमत केवल इसलिए दिया है जिससे दिल्ली सरकार व निगम के बीच की खींचतान व चख- चख समाप्त हो सके। चुनाव नतीजों का यह विश्लेषण भारत के विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट समस्याओं का आंकलन भी है। 

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