आजादी के पर्व का सिंहावलोकन - Punjab Kesari
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आजादी के पर्व का सिंहावलोकन

भारत के आजादी पाने का जश्न हम 15 अगस्त के दिन मनायेंगे और आज 14 अगस्त है। अतः

भारत के आजादी पाने का जश्न हम 15 अगस्त के दिन मनायेंगे और आज 14 अगस्त है। अतः हमें 1947 से लेकर अब तक के दौरान स्वतन्त्र भारत की यात्रा का सिंहावलोकन करना चाहिए। यह 75 वर्षों की यात्रा बहुत दुर्गम रही है और अंग्रेजों द्वारा भारत को कंगाल बना कर छोड़े गये देश की गौरवमयी यात्रा रही है। मगर इस आजादी की जो कीमत अंग्रजों ने हमसे वसूली वह भी बहुत बड़ी थी क्योंकि भारत से काटकर पाकिस्तान बना दिया गया था। यह पाकिस्तान कम से कम दस लाख लोगों की लाशों पर बनाया गया था जिसमें सर्वाधिक लगभग आठ लाख लोग अकेले पंजाब में ही हलाक हुए थे। दूसरा नम्बर बंगाल का था जिसे विभाजित करके मुस्लिम बहुल इलाकों को पूर्वी पाकिस्तान नाम दिया गया था। विडम्बना यह थी कि अंग्रेजों ने भारत की उन दो पंजाबी व बंगाली संस्कृतियों के लोगों का हिन्दू-मुसलमान के नाम पर बंटवारा किया था जिनकी संस्कृति में मजहब या धर्म उनकी सांस्कृतिक पहचान के बाद दूसरा स्थान रखता था। बंटवारे से पहले इन इलाकों का कोई भी व्यक्ति पंजाबी पहले होता था और हिन्दू या मुसलमान बाद में। यही स्थिति बल्कि इससे भी अधिक गहरी बंगाल में थी जहां बंगाली अपनी संस्कृति के लिए अपने धर्म की परवाह भी नहीं करता था। मगर इतिहास की त्रासदी यह रही कि इन्हीं दोनों प्रदेशों के लोग कम से कम 15 लाख की संख्या में विस्थापित हुए और रातों-रात अमीर से फकीर हो गये। 
मानव इतिहास की यह एेसी भयंकर त्रासदी थी जिसमें देश के नाम पर आबादी की अदाल-बदली धर्म के नाम पर हुई। मगर यह सारा कारनामा सिर्फ एक व्यक्ति का था जिसका नाम मुहम्मद अली जिन्ना था। जिन्ना ने साम्प्रदायिकता का जहर उगल कर पूरे भारत के हिन्दू-मुसलमानों को दो राष्ट्रों में बांट दिया था जिसमें उसकी मदद उस समय भारत के कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों जैसे हिन्दू महासभा आदि ने की और जिन्ना की मुस्लिम लीग के समानान्तर हिन्दुओं को भड़का कर भारत के बंटवारे को संभव बना दिया। इस काम में उस समय देशी राजे-रजवाड़ाें ने इन दोनों संगठनों का सहयोग किया। अंग्रेजों ने एक और चालाकी यह कर दी थी कि भारत व पाकिस्तान को स्वतन्त्र देश घोषित करके उन्होंने यहां की 570 से अधिक देशी रियासतों को भी स्वतन्त्र घोषित कर दिया था और उन्हें विकल्प दे दिया था कि वे चाहे जिस भी देश में अपना विलय कर सकती हैं। 
भारत की स्वतन्त्रता व इसके बंटवारे का कानून अंग्रेजों ने 16 जुलाई, 1947 को ही घोषित कर दिया था। इससे पहले मार्च 1946 में अंग्रेजों ने घोषणा कर दी थी कि वे भारत को आजाद कर देंगे। जिसके बाद सरदार पटेल ने भारत में देशी रियासतों के विलय की प्रक्रिया कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के तौर पर शुरू कर दी थी क्योंकि अंग्रेज कांग्रेस पार्टी को ही भारत की सत्ता सौंप रहे थे।  हैदराबाद, भोपाल, जम्मू-कश्मीर, त्रावनकोर, जूनागढ़ आदि बड़ी रियासतों को छोड़ कर भारतीय भू-भाग की लगभग सभी देशी रियासतों का तब तक भारतीय संघ में विलय हो चुका था। इन शेष बची रियासतों के भारत में विलय में भी सरदार पटेल की महत्वपूर्म भूमिका रही। मगर पाकिस्तान ने आजादी मिलने के बाद कश्मीर पर कबायलियों के छद्म आक्रमण से इसका मामला उलझा दिया और अगले साल 48 में जाकर यह स्वीकार किया कि कश्मीरी आक्रमण में उसकी सेनाएं शामिल हैं। यह सब लिखने का आशय यह है कि आजाद भारत ऐसा लुटा-पिटा भारत था जिसका जमीनी स्तर से विकास किया जाना था। अंग्रेजों ने भारत को किस कदर लूटा था, उसका यही प्रमाण काफी है कि 1939 से 1945 तक चले दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों ने भारतीय रेलवे की 40 प्रतिशत से अधिक सम्पत्ति पश्चिम एशिया के देशों में पहुंचा दी थी। युद्ध की विभीषिका ने रेल पटरियों की हालत खस्ता कर दी थी क्योंकि अंग्रेजों ने अधिसंख्य बड़े रेलवे यार्डों को सैनिक अड्डों में बदल दिया था। अपने दो सौ वर्षों के शासन के दौरान अंग्रेजों ने भारत को अपने ब्रिटिश माल का बाजार बना कर रख दिया था और इसे विज्ञान व टैक्नोलॉजी से महरूम कर दिया था। अतः आज की पीढ़ी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि जब अंग्रेज भारत से गये तो ब्रिटेन भारत का लाखों पौंड का कर्जदार था। अतः उन्होंने भारतीय रुपये की विनिमय दर पौंड के बराबर तय की और भारत के साथ पौंड चुकाने की सन्धि की। मगर इसके बाद पौंड लगातार अमेरिकी डालर के मुकाबले कमजोर होता गया। 
पं. नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे। उन्होंने इस लुटे-पिटे भारत को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए विकास के पैमाने के हर क्षेत्र में नई शुरूआत की और देशवासियों को नारा दिया ‘आराम हराम है’। मगर दुर्भाग्य से हम आज इस नारे को विस्मृत कर चुके हैं। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान- जय किसान’ नारा दिया और इन्दिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’। हम लगातार तरक्की करते रहे और अपने संविधान को सर्वोपरि मानकर इसके आदर्शों को अपनाते रहे। इसी संविधान की छत्रछाया में भारत के सभी हिन्दू-मुसलमानों, सिखों व ईसाइयों ने मिल कर भारत को महान बनाने का बीड़ा उठाया और आज हम कम्प्यूटर साफ्टवेयर के क्षेत्र में विश्व के सिरमौर हैं परन्तु मणिपुर और हरियाणा से जिस प्रकार की खबरें आयीं उससे हमारी एकात्म भारतीय चेतना को भारी झटका लगा है और हम सोच रहे हैं कि क्या कभी स्वतन्त्र भारत में नागरिकों के एक समुदाय को दूसरे समुदाय के दुश्मन के रूप में निरूपित करने के प्रयास भी किये जा सकते हैं। चाहे सवाल हिन्दू-मुसलमान का हो या मैतेई या कुकी का। यह भारत की विकास गति को उल्टा घुमाने वाली मानसिकता ही कही जायेगी क्योंकि अमेरिका के महान गांधीवादी मानवीय अधिकारों के प्रणेता ‘मार्टिन लूथर किंग’ के अनुसार जब किसी देश के नागरिक अपने में से ही कुछ नागरिकों को हेय दृष्टि से देखने का काम करते हैं तो वे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर रहे होते हैं  क्योंकि उनके देश के विकास में सभी समुदायों की भागीदारी होती है जिसके बिना कोई भी देश कभी भी तरक्की नहीं कर सकता। अतः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सबका साथ-सबका ​िवकास नारा महत्वपूर्ण है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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