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मुंबई संसद में…

फिल्म अभिनेत्री से सांसद बनीं कंगना रनौत एक बार फिर सुर्ख़ियों में हैं, और यह एक छोटे अन्तरकाल में दूसरी बार है। इसकी शुरुआत हुई भाजपा द्वारा उन पर प्रतिबंध लगाने का आदेश देने से जिस पार्टी से उनका राजनीतिक करियर जुड़ा है। फिर हफ्ते भर में ही, उनकी बहुप्रचारित फिल्म ‘इमरजेंसी’ पर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा (जिसे सेंसर बोर्ड के नाम से जाना जाता है) फिलहाल के लिए रोक दी गयी थी। दोनों ही मामलों में, एक बार फिर से रनौत तूफान के घेरे में थी। ऐसा लगता है की बीजेपी ने ऐसे बड़बोले व्यक्ति से अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। लेकिन आगे बढ़ने से पहले हम आपको अतीत में हुए मामलों का एक पुनर्कथन दे दें।
किसान विरोध प्रदर्शन पर रनौत की टिप्पणी को लेकर असंतोष व्यक्त करते हुए, भाजपा ने न केवल रनौत द्वारा कही गई बातों से दूरी बना ली, बल्कि यह भी सार्वजनिक रूप से कहा कि उन्हें पार्टी की ओर से नीतिगत मामलों पर बोलने का अधिकार नहीं है। भाजपा द्वारा जारी एक बयान में स्पष्ट रूप से कहा गया कि भाजपा ने रनौत को भविष्य में ऐसे बयान न देने का निर्देश दिया है, और यह बात सख्त लहजे में कही गई थी। तो हंगामा किस बात पर था? अभिनेत्री से सांसद बनीं रनौत ने सुझाव दिया था कि यदि मोदी सरकार द्वारा निर्णायक कदम नहीं उठाए जाते, तो किसानों का विरोध भारत में एक बंगलादेश जैसी स्थिति पैदा कर सकता था। रनौत ने यह भी आरोप लगाया था कि किसानों के विरोध के दौरान “लाशें लटकती हुई देखी गईं थी, साथ ही बलात्कार भी हो रहे थे”।
कंगना ने आगे आरोप लगाया कि स्वार्थी तत्वों और ‘विदेशी ताकतों’ ने सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले के बावजूद विरोध को जारी रखा। साथ ही यह भी कहा ​ कि जो बंगलादेश में हुआ, वह यहां भी आसानी से हो सकता था। यह विदेशी ताकतों की साजिश है और ये फिल्मी लोग उसी पर पलते हैं। उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि देश बर्बाद हो जाए।
कंगना की इस बात पर भाजपा की पंजाब इकाई ने उन पर भड़काऊ बयान देने और विपक्षी पार्टियों के हाथों खेलने का आरोप लगाया। जहां तक साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने का सवाल है, उस विषय पर, कंगना रनौत की आने वाली फिल्म ‘इमरजेंसी’ पर सेंसर बोर्ड ने फिलहाल के लिए रोक लगा दी है। यह कदम दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति द्वारा दी गई लिखित आपत्तियों के बाद उठाया गया है, जिसने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है, यह कहते हुए कि इससे नफरत फैल सकती है और सिख समुदाय का गलत चित्रण हो सकता है।
फिल्म में कंगना पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भूमिका निभा रही हैं। इसे इस साल आज के दिन 6 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज़ किया जाना है। प्रेस में जाने तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया था कि फिल्म रिलीज़ होगी या नहीं। अभिनेत्री का दावा है कि सेंसर बोर्ड को फिल्म के कुछ दृश्यों को लेकर जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। रनौत ने एक वीडियो में आरोप लगाया कि फिल्म के कुछ दृश्यों, जैसे इंदिरा गांधी की हत्या, पंजाब दंगे, आदि को हटाने के लिए ‘दबाव’ डाला जा रहा है। इसे ‘अविश्वसनीय’ बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें ‘इस देश में सोच के मौजूदा स्तर’ पर खेद है। लेकिन कंगना विवादों से अछूती नहीं हैं।
‘स्लैप-गेट’ घटना अभी भी यादों में ताजा है। जून में, चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर किसानों के विरोध पर बार-बार बयान देने के कारण कंगना को कथित तौर पर एक सीआईएसएफ महिला कांस्टेबल ने थप्पड़ मारा था। घटना के बाद, अभिनेत्री ने कहा कि वह ‘पंजाब में बढ़ते आतंकवाद और उग्रवाद को लेकर चिंतित हैं।’ रनौत ने उस समय भी गायक रिहाना की आलोचना की थी जब रिहाना ने किसानों के विरोध का समर्थन किया था, और कहा था कि रिहाना ने अपने ट्वीट के लिए 100 करोड़ रुपये लिए होंगे। इसी तरह, उन्होंने कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग को ‘बिगड़ी हुई बच्ची’ कहकर खारिज कर दिया था।
सेलिब्रिटी के अलावा, भाजपा सांसद ने विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर उनकी जाति को लेकर तीखा हमला किया ‘आप अपनी जाति के बारे में कुछ नहीं जानते, आपके दादा मुसलमान हैं, दादी पारसी, मां ईसाई, और ऐसा लगता है जैसे किसी ने पास्ता में करी पत्ते डालकर चावल और दाल बनाने की कोशिश की हो, लेकिन फिर भी आप सभी की जाति जानना चाहते हैं।’ एक जनप्रतिनिधि की ओर से ऐसे कठोर शब्द चौंकाने वाले हैं। लेकिन क्या यह सिर्फ रनौत के बारे में है, या यह फिल्म सितारों के संसद और राजनीति के प्रति उदासीन रवैये का मुद्दा है?
बेशक, अक्सर उनके कौशल पर सवाल उठते हैं, जैसे कि एक प्रसिद्ध अभिनेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछा था कि उन्हें आम कैसे खाना पसंद है। या फिर एक और जो यह नहीं जानती थी कि देश का राष्ट्रपति कौन है। दुख की बात यह है कि यह अपवाद नहीं है, बल्कि बॉलीवुड के अधिकांश लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ रहते हैं कि उनके हाथी दांत के मीनार से बाहर भी एक दुनिया है। फिर भी, सभी को एक ही नजरिए से देखना अनुचित होगा। इस औसत अभिनेता से राजनेता बने लोगों की सूची में कुछ उल्लेखनीय अपवाद भी हैं जिन्होंने सांसद के रूप में अच्छा प्रदर्शन किया है।
उदाहरण के लिए, शबाना आज़मी उन लोगों में शामिल थीं, जो न केवल नियमित रूप से संसद में उपस्थित रहती थीं, बल्कि सुबह 11 बजे की घंटी बजने से पहले ही पहुंचने वाली पहली और सदन स्थगित होने के बाद जाने वाली अंतिम होती थीं। उनके पति जावेद अख्तर ने भी सांसद के रूप में अपनी भूमिका को बहुत गंभीरता से लिया और संसद में कॉपीराइट (संशोधन) विधेयक पारित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह विधेयक रचनाकारों और गीतकारों के अधिकारों में सुधार करता है और उन्हें उनके काम पर अर्जित मुनाफे में हिस्सेदारी का हकदार बनाता है।
अन्य स्टार सांसद भी नियमित रूप से संसद में उपस्थित रहते हैं, लेकिन जब सार्थक योगदान की बात आती है, तो उनके पास दिखाने के लिए बहुत कम होता है। और निश्चित रूप से, उस महिला सांसद और अध्यक्ष के बीच उस तुच्छ मुद्दे पर हुए विवाद को कौन भूल सकता है, जहां उनके नाम के साथ उनके पति का नाम जोड़ा गया था?
ये असंगतियां इसलिए हैं क्योंकि कई सांसद, चाहे वे निर्वाचित हों या नामांकित, ने न तो संसद आने का महत्व समझा और न ही किसी सत्र में उपस्थित होने या योगदान देने का। इसलिए, सवाल यह है कि हर राजनीतिक दल से पूछा जाए, जो वोट हासिल करने के लिए ग्लैमर का सहारा लेते हैं : क्या इन सांसदों के लिए संसद को एक साइड शो की तरह लेना उचित है? क्या संसद को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए? क्या वे जवाबदेह नहीं हैं, और क्या उन पार्टियों को जो उन्हें चुनने में मदद करती हैं, गलत आचरण करने वालों पर सख्ती नहीं करनी चाहिए? जबकि कोई भी पार्टी इसके विपरीत नहीं कह सकती, अब समय आ गया है कि वे अपने सांसदों को संसद के शिष्टाचार और गरिमा के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए एक तंत्र विकसित करें और जितनी जल्दी वे ऐसा करेंगे, उतना ही बेहतर होगा।

– कुमकुम चड्डा

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