पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की तोशाखाना केस में गिरफ्तारी में कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है। इससे पहले भी अब्दुल कादिर ट्रस्ट घोटाले में उनकी गिरफ्तारी हो गई थी। तब पाकिस्तान में कोहराम मच गया था और इमरान समर्थकों ने देश में उत्पात मचाया था और लोगों ने सैन्य ठिकानों को भी निशाना बनाते हुए सरकारी सम्पत्तियों को नुक्सान पहुंचाया था तब उच्च अदालतों से जमानत लेकर इमरान बच निकले थे। पाकिस्तान में समय-समय पर पूर्व प्रधानमंत्रियों पर गाज गिरती रही है। जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी की सजा दे दी गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में डाला गया था, बाद में 7 साल वह निर्वासन में रहीं। 2007 में वतन वापसी के बाद आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ हो या यूसुफ रजा गिलानी या फिर शाहिद ठाकान अब्बासी भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके हैं। मौजूदा प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को भी मनी लांड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है और करीब 7 महीने बाद उन्हें लाहौर की कोट लखपत जेल से रिहा कर दिया गया था।
पाकिस्तान की नियति यही रही है कि वह हुक्मरानों के भ्रष्टाचार का शिकार होता रहा और आज पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र के रूप में पूरी दुनिया के सामने है। अदालत द्वारा इमरान खान को तीन साल की सजा सुनाए जाने के बाद वह पांच साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। हालांकि उन्होंने सजा के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी है और उनके पास अनेक कानूनी विकल्प हैं। यह भविष्य के गर्त में है कि पाकिस्तान की सियासत में उनका गेम ओवर होगा या नहीं। क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान हालांकि आखिरी ओवर तक खेलने का दम रखते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि इस बार उनका अपना बल्ला ही विकेट को छू गया। इमरान खान की कहानी भी पवेलियन से पिच तक और पिच से मैदान के बाहर जाने तक जैसी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों के ऐसे छक्के छुड़ाए हैं जिन्हें वह कभी भूल नहीं सकते। इमरान खान का राजनीति में आना कोई अचानक होने वाली घटना नहीं थी। इसके लिए कई सालों तक इंतजार किया और मेहनत की थी। यह भी सभी जानते हैं कि उनका इलैक्शन कम और सेना की सिलैक्शन ज्यादा था।
2018 में जब इमरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने नया पाकिस्तान और रियासत-ए-मदीना के सपने दिखाए थे। तब ऐसे लगा था कि पड़ोसी मुुल्क में अच्छे-अच्छे बदलावों की बयार आएगी। पाकिस्तान आतंकवाद मजहबी हिंसा और भ्रष्टाचार के चंगुल से निकल कर लोकतंत्र के रास्ते पर आ जाएग। इमरान खान ने भी अपने भाषणों में नए पाकिस्तान और रियासत-ए-मदीना का तड़का लगाकर लोगों को खुशफहमी का अहसास कराया लेकिन लोगों की खुशफहमी धीरे-धीरे खत्म हो गई। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में हमेशा ही आधा-अधूरा लोकतंत्र रहा है और सेना ने लगातार बार-बार लोकतंत्र को अपने बूटों के नीचे रौंदा है। इमरान का सत्ता में रहते ही सेना के साथ टकराव शुरू हो गया। इमरान ने पीएम पद को सेना के प्रभाव से मुक्त करने की कोशिश की, लिहाजा फौज से उनका टकराव हो गया। इमरान खान पर आरोप लगा कि वे पाकिस्तान के पूर्व आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल को विस्तार नहीं देना चाहते थे और वे इसे टालने की कोशिश करते रहे। इसके अलावा उन्होंने बाजवा के चहते जनरल नदीम अंजुम को आईएसआई के चीफ पद पर नियुक्ति में भी टालमटोल की। ये ऐसी घटनाएं थी जिससे सेना के साथ उनका टकराव लगातार होता रहा।
पिछले साल जब विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव के जरिए उन्हें हटाने की कोशिश की तो आर्मी ने इसे विदेशी साजिश करार दिया और इसके पीछे अमेरिका का हाथ बताया। अमेरिका पर कई चीजों के लिए निर्भर पाकिस्तानी सेना और हुक्मरानों के लिए ये बेहद ही विकट स्थिति थी। हालात ऐसे हुए कि पाकिस्तानी सेना को इसके लिए सफाई भी देनी पड़ी। सेना से टकराव को लेकर इमरान ने अपनी वो बैसाखी तोड़ दी जिसके सहारे पाकिस्तान का हुक्मरान लोकतंत्र की इमारत पर जैसे-तैसे टिका रहता है। इमरान खान की रंगीन मिजाजियों और एक के बाद एक शादियों के किस्से भी मशहूर होते गए और उन पर भ्रष्टाचार के शर्मसार कर देने वाले आरोप लगे। इसमें जादू-टोने के लिए मशहूर उनकी पत्नी बुशरा बीवी और सहेलियों का नाम भी आया। इमरान खान पर बतौर पीएम मिले उपहार बेच-बेच कर पैसा कमाने का आरोप भी लगा। इमरान ने भारत के विरुद्ध जहर उगलने में कोई कसर नहीं छोड़ी और आतंकवाद को खत्म करने में भी कोई भूमिका नहीं निभाई। सरकार गिरते ही उनके बुुरे दिन शुरू हो गए। जैसा कि पाकिस्तान की राजनीति का दस्तूर है, इमरान के खिलाफ केस खुलते गए। शाहबाज सरकार ने इमरान की पार्टी पर शिकंजा कसना शुरू किया तो एक-एक करके इमरान की पार्टी पीटीआई के नेता उन्हें छोड़ गए। इमरान समर्थकों द्वारा हिंसक प्रदर्शनों के बाद सरकार द्वारा बरती गई सख्ती के चलते इमरान कमजोर होते गए और इस बार उनकी गिरफ्तारी के बाद ज्यादा विरोध देखने को नहीं मिला। हो सकता है कि इमरान को फिर से जमानत मिल जाए लेकिन उन पर चलाए जा रहे अनेक केसों में वह कब तक बचते रहेंगे यह देखना बाकी होगा। सेना उनको पूरी तरह से खत्म करने पर अमादा है और शाहबाज सरकार आम चुनावों का ऐलान करने वाली है। फिहाल यही कहा जा सकता है कि क्या से क्या हो गया, नया पाकिस्तान बनाने चले थे फिसल गई पूरी कमान।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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