फ्रांस में अल्जीरिया मूल के 17 वर्षीय नाबालिग की पुलिस की गोली से हुई मौत के बाद भड़की हिंसा की आंच बेल्जयम और स्विट्जरलैंड जैसे देशों तक पहुंच गई है। फ्रांस में लगातार पांचवें दिन भी हिंसा जारी है। 45 हजार से अधिक पुलिसकर्मी सड़कों पर हैं और 2300 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। फ्रांस की हिंसा का अन्य देशों में पहुंचना बहुत ही चिंता का विषय है। अब तक फ्रांस में अरबों रुपए की सार्वजनिक सम्पत्ति तबाह हो चुकी है। हालांकि पुलिस की गोली से मारे गए किशोर नाहेल की दादी नादिया ने प्रदर्शनकारियों से अपील की है कि वे शांति बनाए रखें और हिंसा का रास्ता छोड़े। हम नहीं चाहते कि दुकानों और स्कूलों को तबाह किया जाए। बसों को नष्ट मत कीजिए। मेरी जैसी मां ही होती है जो बसों में सफर करती है। उन्होंने यह भी कहा कि हिंसा करने वाले लोग नाहेल की मौत को एक बहाने की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों भी बार-बार लोगों से शांति की अपील कर रहे हैं लेिकन अभी तक हिंसा के थमने का कोई संकेत नहीं मिल रहा। नाहेल की पुलिस की गोली से मौत और हिंसा के वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करने के बाद अन्य कई देशों में भी इस की प्रतिक्रिया शुरू हो चुकी है। हिंसा के तांडव के बीच सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर कौन लोग हैं जिन्होंने हिंसा को भड़काया है या यह कोई नया प्रयोग है। आखिर उनका मकसद क्या है। दंगों का मास्टर माइंड कौन है। इस हिसा के भड़काने के पीछे सोशल मीडिया भी काफी हद तक जिम्मेदार है। सोशल मीडिया के लगभग सभी प्लेटफार्मों ने गंभीर लापरवाही दिखाई है। फ्रांस के ऐसे हालात देखकर ऐसा नहीं लगता कि वास्तव में यह आक्रोश एक गोलीकांड की वजह से है। दरअसल शार्ली एब्दो कांड के बाद से फ्रांस इसी तरह के दंगों की आग में झुलसने लगा था। इन घटनाओं में वृद्धि होने के पीछे मुस्लिम शरणार्थियों का ही नाम आया था और फ्रांस की ताजा हिंसा के पीछे भी मुस्लिम शरणार्थियों को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। इन आशंकाओं से इंकार नहीं किया जा सकता कि फ्रांस में गोलीकांड एक संयोग था और दंगे मुस्लिम शरणार्थियों का प्रयोग है।
फ्रांस के जो लोग दंगाईयों से अपने घरों को बचाने के लिए बाहर आ रहे हैं उन्हें भी नहीं छोड़ा जा रहा। फ्रांस की तुलना सीरिया और ईरान से की जाने लगी है। फ्रांस में एक मजबूत लोकतंत्र है। जहां अभिव्यक्ति की आजादी है और आंदोलन का अधिकार है लेकिन दंगाईयों ने सभी लक्ष्मण रेखाएं लांघ दी हैं। फ्रांस में किशोरों के लिए कोई सख्त कानून भी नहीं है और हिसा में लिप्त ज्यादातर किशोर भी मुस्लिम हैं। यूरोप के लोग खुलेआम यह कह रहे हैं कि फ्रांस ने जब उदार बनकर जेहाद को आयात किया है तो ऐसा होगा ही। इतिहास के पन्ने पलटे तो फ्रांस में प्रवासियों का इतिहास बहुत पुराना है। वर्ष 1871 में पहली बार नार्थ अफ्रीका से प्रवासी मजदूर यहां आए थे और बाद के वर्षों में इन्होंने फ्रांस के समाज को बहुनस्लीय और विविध बनाया। यूरोप के बड़े नेता सीधे तौर पर इस हिसा को अफ्रीकी और मुस्लिम शरणार्थियों के आने से पैदा हुई समस्या से जोड़ रहे हैं। सोशल मीडिया ऐसी पोस्टों से भरा हुआ है जिसमें कहा गया है कि मुस्लिम शरणार्थी किसी भी देश में जाकर वहां के कानून को नहीं मानते और हिंसा करते हैं। स्वीडन में कुरान जलाने भर से इस्लामी सरकारें और कट्टरपंथी नाराज हैं। उनकी हिंसक विचारधारा को मानने वाले लोग ही फ्रांस को जला रहे हैं।
पोलैंड के प्रधानमंत्री माटुस्ज मोराविएकी ने फ्रांस के दंगों पर तंज कसा है। उन्होंने एक वीडियो शेयर किया है जिसमें जलता हुआ फ्रांस दिख रहा है वहीं वीडियो के बीच में शांति और सुकून वाला पोलैंड है। यूरोप में पोलैंड उन देशों में से एक है जिसमें एक भी अवैध मुस्लिम शरणार्थी नहीं है। पोलिश नेता डोमोनिक टार्जिस्की का एक पुराना टीवी इंटरव्यू ऐसे दंगों के बाद एक बार फिर वायरल हो गया है, जसमें वह कहते हैं कि पोलैंड ने जीरो मुस्लिम शरणार्थियों को देश में आने की जगह दी है। इस पर एंकर पूछती है कि क्या आपको इस पर गर्व है, जिस पर वह कहते हैं कि हमने 20 लाख यूक्रेनियों को शरण दी है जो शांति से यहां रह रहे हैं और काम कर रहे हैं। अवैध मुस्लिमों के न होने से हमारा देश सुरक्षत है। कोई भी दंगा नहीं हुआ और न ही आतंकी हमला। फ्रांस ने काफी उदारता दिखाते हुए कई देशों के शरणार्थियों को शरण दी। देखते ही देखते फ्रांस में मस्जिदें बन गई। फ्रांस सरकार ने कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने वाली मस्जिदों को बंद कराया। बाहरी देशों से इमामों के आने पर पाबंदी लगाई। मस्जिद की होने वाली फंडिंग पर रोक लगाई। स्कूलों और दफ्तरों में हिजाब पहनने पर रोक लगाई। इसके चलते फ्रांसीसी समाज और मुस्लिमों के रिश्ते मधुर नहीं रहे। फ्रांस के बहुसंख्यक ईसाई मानते हैं कि मुस्लिम उनमें घुल-मिलकर उनके देश पर कब्जा कर लेंगे। फ्रांस के दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों ही मुस्लमानों के फ्रैंच होने पर सवाल उठाते हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि कट्टरपंथी विचारधारा के प्रसार को कैसे रोका जाए। यह एक ऐसी विचारधारा है जो खुद को सर्वश्रेष्ठ और दूसरों को काफिर मानती है। फ्रांस की हिंसा अन्य कई देशों के लिए भी सबक है। समूचे विश्व को इस संबंध में सोचना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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