असम में पहचान का संकट (3) - Punjab Kesari
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असम में पहचान का संकट (3)

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भारत की सीमाओं के भीतर ही राजधानी दिल्ली से 2000 किलोमीटर दूर दूसरा देश बसता है तो वह है पूर्वोत्तर। बदला-बदला रहन-सहन, बदला-बदला सा खानपान। प्राकृतिक विविधताओं के बीच नदियों में लिपटा संसार। प्राकृतिक सौंदर्य में पूर्वोत्तर के राज्य​ किसी भी विश्व के पर्यटक स्थलों से कम नहीं। प्रकृति ने पूर्वोत्तर को हर तरह की सौगात दी लेकिन आजादी के 70 वर्ष बाद भी पूर्वोत्तर भारत के राज्य देश के अन्य राज्यों के मुकाबले काफी पिछड़े हुए हैं। पूर्वोत्तर में 7 राज्य हैं और यह 7 बहनों के रूप में जाने जाते हैं। असम के अलावा बाकी 6 बहनें मेघालय, अरुणाचल, नगालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम हैं। इन सभी राज्यों में स्वतंत्रता और स्वायत्तता का जुनून छाया रहा। इन राज्यों में सीमा विवाद को लेकर हिंसा होती रही। बंगलादेशी घुसपैठ ने पूर्वोत्तर राज्यों के जनसांख्यिकी अनुपात को बिगाड़ दिया। वोट बैंक की राजनीति के चलते उग्रवादी तत्वों को हवा मिलती रही। कुछ राज्य सरकारें केन्द्र से आतंकवाद से जूझने के लिए मिलने वाली राशि भी उग्रवादी तत्वों तक पहुंचाती रहीं।

बंगलादेशी घुसपैठ से असम ही नहीं, पश्चिम बंगाल आैर बिहार भी अछूते नहीं रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने दशकों पहले देश को आगाह करते हुए कहा था कि असम में जिस तरह से बंगलादेश से आव्रजन चल रहा है और ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा असम वृहत्तर बंगलादेश का हिस्सा बन जाएगा। उनकी भविष्यवाणी सही साबित हुई। 2001 की जनगणना के अनुसार असम के विभिन्न जिलों में बंगलादेशी मुस्लिमों की जनसंख्या इस प्रकार है-धुबरी 74 प्रतिशत, ग्वालपाड़ा 54 प्रतिशत, नरपेटा 59 प्रतिशत, हेलाकाडी 58 प्रतिशत, करीमगंज 52 प्रतिशत, नौगान 51 प्रतिशत, मोरीगान 48 प्रतिशत, दरांग 36 प्रतिशत, बोंगाईगांव 39 प्रतिशत और कधार 36 प्रतिशत। 2001 से 2017 तक आप अनुमान लगा सकते हैं कि हालात कितने भयावह हो चुके होंगे। राज्य की आबादी के दशकवार आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि हर जनगणना में मुस्लिमों की जनसंख्या असाधारण रूप से बढ़ी है। बंगलादेशी घुसपैठ की इस समस्या से केवल असम ही नहीं पूरा पूर्वोत्तर भारत पीडि़त है। त्रिपुरा लगभग चारों ओर से बंगलादेश से घिरा हुआ है और यह भी अवैध आव्रजन से परेशान है।

मणिपुर में भी असम के कधार जिला व अन्य दूसरे रास्ते से घुसपैठ की गूंज सुनाई देती है। मणिपुर में घुसपैठिये आबादी के हिसाब से एक चौथाई हो चुके हैं। नगालैंड में भी स्थिति यही है। इतना ही नहीं बंगलादेशी नगा युवतियों से शादी भी कर लेते हैं और उनकी सम्पत्तियों पर कब्जा कर लेते हैं। इन राज्यों की सरकारों ने वोट बैंक के लालच में इन घुसपैठियों को राशन कार्ड आदि बनवा दिए। बैंकों में अकाउंट खोलना इनका पहला काम होता है। कई विधानसभा सीटें तो ऐसी हो गई हैं कि घुसपैठिये जिसे चाहते हैं उसे जिता देते हैं। असम के मूल वासियों की जमीन पर उनकी इच्छा के खिलाफ बसाए गए बंगलादेशी घुसपैठियों की वजह से सामाजिक विद्वेष फैलता गया। उसी की वजह से ही उल्फा समेत बोडो उग्रवादी गुट पैदा हो गए। बोडो उग्रवादियों ने अपने आदिवासी समुदाय के लोगों की पहचान का संकट समाप्त होने की आशंका से हथियार सम्भाल लिए और अलग राज्य का आंदोलन छेड़ दिया था जिसमें कोई बाहरी बंगलादेशी न हो। गैर बोडो समुदाय बोडोलैंड की मांग का विरोध करता आया है।

गैर बोडो सुरक्षा मंच और अखिल बोडोलैंड मुस्लिम छात्र संघ दोनों ही संगठनों में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिये सक्रिय हैं। यह संगठन चाहते हैं कि जिन इलाकों में बोडो समुदाय की आबादी आधे से कम है, उन्हें बोडोलैंड क्षेत्र से बाहर किया जाए। स्थिति यह हो गई है कि अवैध घुसपैठिये असम के मूल वनवासियों की हत्याएं करने लगे, उनके घर जलाए जाने लगे, उनकी जमीनें छीनने लगे। असम के मूल नागरिकों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का षड्यंत्र पूरे जोरों से चला। सामरिक लिहाज से भारत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण उत्तर-पूर्व के कुछ हिस्सों, खासकर असम के हिस्सों, को मिलाकर एक वृहद इस्लामी राष्ट्र बनाने के लिए इस क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने की साजिशें पाकिस्तान की आईएसआई, पाक सेना और आतंकी संगठन चलाते रहे हैं। अब समय आ गया है कि इस समस्या का समाधान किया जाए जो राज्य की पहली भाजपा सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। बाकी चर्चा मैं कल के लेख में करूंगा। (क्रमशः)

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