जी हां मैंने ‘आदिपुरुष’ देखी ही नहीं। बड़े आश्चर्य की बात है जिस फिल्म का सबको बहुत इंतजार था, जिसके प्रोमो देखकर लग रहा था कि बनाने वाले ने बड़ी अच्छी फिल्म बनाई होगी, इसलिए हमारे सारे परिवार ने 18 जून की डायरैक्ट्स कट पीवीआर की सीट बुक कराई। अभी कि मुझे 16 तारीख को पहले शो के लिए स्वादा महिला संस्था से फिल्म देखने का निमंत्रण था परन्तु काम की व्यवस्था होने और बच्चों के साथ फिल्म देखने जाने के कारण उनके साथ नहीं गई। बेटे-बहुओं और पोतों के साथ देखने का आनंद ही कुछ और होगा, साथ में कोशिश होती है कि बच्चों को अधिक से अधिक भारतीय संस्कृति, संस्कारों और अपने धार्मिक, राजनीतिक इतिहास से अवगत कराया जाए।
जैसे ही पहला शो हुआ लोगों की समीक्षा और विचार सामने आने लगे। 20 प्रतिशत लोग इसके हक में बोल रहे थे, 80 प्रतिशत तो बिल्कुल नैगेटिव कोई गुस्से में थे कि रामायण को ही बदल दिया। किसी ने कहा समय बर्बाद कर दिया। अपने विवादित डायलॉग और फिल्म के मुख्य किरदारों के लुक के चलते इस फिल्म को जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा। शुरूआत में आदिपुरुष की टिकटों के दाम काफी ज्यादा रखे गए थे लेकिन बाद में दर्शकों की ओर से अच्छा रिस्पांस न मिलने के कारण भारी डिस्काउंट करना पड़ा। हमारे पूरे परिवार का अच्छा भला प्लान था कि फिल्म देखेंगे और डिनर भी साथ में करेंगे परन्तु इतना विरोध सुनने और देखने के बाद बच्चों ने एकदम टिकट कैंसिल कर दी, सारा प्लान चौपट हो गया।
मेरी बड़ी बहू जो अपने बच्चों को हमेशा हिन्दी पिक्चर दिखाना चाहती है और बच्चों को धार्मिक संस्कार भी देती है, क्योंकि बच्चों के मुख पर हमेशा इंग्लिश रहती है, ने सोचा और मुझसे भी पूछा कि क्यों न मैं दोनों बच्चों को दिखा लाऊं और आप भी साथ चलो। मेरा मन बहुत था क्योंकि मुझे लिखना भी था और तबियत भी खराब थी जिस कारण मैं न जा सकी। बच्चे बड़ी खुशी-खुशी देखने गए, पर यह क्या एक घंटे में वो भी वापिस आ गए। मेरे दोनों पोते आर्यवीर और आर्यन की उम्र 11 साल, 8 साल है। जैसे ही वापिस आए वह हंसे जा रहे थे और मुझे बोल रहे थे दादी इट वाज नोट रामायण, इट वाज समथिंग एल्स। इट्स मूवी ऑफ गोबलिन, क्योंकि उन्होंने पहले ही पूरी रामायण पढ़ी हुई थी और उन्हें यह रामायण बिल्कुल नहीं लगी, फिर उन्होंने कहा कि दे वर यूजिंग बैड वर्ल्ड्स इन दा मूवी।
मुझे यह सब सुनकर बहुत ही अजीब लग रहा था और गुस्सा भी आ रहा था कि क्या सोच है फिल्म निर्माता की और जिसने डायलॉग लिखे, उसका तो बहुत नाम है और अच्छा सिनेमा हमेशा संस्कृतियों के बीच पुल बनाता है। जीवन जीने के अलग तरह के तरीकों से मिलवाते हुए व्यवहार में उदार बनाकर बेहतर इंसान बनाने का काम चुपके से करता है। बहुत सी धार्मिक फिल्में या इंसानियत के ऊपर फिल्में बनी हैं, जो कुछ सीखने के लिए मिसाल बनी हैं और एक रामायण रामानंद सागर ने टीवी पर बनाई थी, जिसको देखने के लिए सड़कें खाली हो जाती थीं और उस समय की पीढ़ी के लिए बहुत ही शिक्षाप्रद और ज्ञान वाली थी। सोचा यह भी आज और आने वाली पीढ़ी के लिए ज्ञानवर्द्धक होगी परन्तु सब कुछ सुनकर बहुत निराशा हुई।
मुझे याद है हमारे माता-पिता हमें अच्छी पिक्चरें दिखाते थे और उस समय वही मनोरंजक और शिक्षाप्रद होती थी। जैसे हरीशचन्द्र, दोस्ती, खानदान, रामायण, महाभारत आदि हमने भी यही सोच कर इस पिक्चर की टिकट बुक की थी परन्तु लोगों के विचार सुनकर अब कोई बच्चा इसे देखने को तैयार नही। अभी सुना है कि आदिपुरुष की गिरती कमाई और बढ़ते विवाद को थामने के लिए फिल्म निर्माताओं ने फिल्म के डायलॉग में बदलाव कर दिया है। मुझे नहीं मालूम इसके बाद लोग इसे देख रहे हैं या नहीं, मैं तो नहीं देखूंगी। जिसने मेरे छोटे से पोतों को निराश कर दिया, जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम और कलयुग के भगवान हनुमान जी की मर्यादा को ही खराब तरह से दिखा दिया।
फिल्में तो ऐसी बननी चाहिए जिसे सभी अपने परिवार के साथ बैठकर देख सकें, जो सच्चाई के नजदीक हो और भारतीय संस्कृति, संस्कारों, व्यवहारों को उजागर करें जिससे आने वाली पीढ़ियों को अच्छे इतिहास, धर्म, संस्कृति का ज्ञान हो। आज हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम को पूजते हैं, मानते हैं। रावण को बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत की नजर से देखते हैं। हनुमान जी को राम भक्त मानते हैं तो हमारी आस्था को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए।