इतिहास दोहराता ‘‘आप्रेशन अमृतपाल’’ - Punjab Kesari
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इतिहास दोहराता ‘‘आप्रेशन अमृतपाल’’

खालिस्तानी अमृतपाल सिंह 15 दिन बाद भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। अमृतपाल और पुलिस में चूहे-बिल्ली

खालिस्तानी अमृतपाल सिंह 15 दिन बाद भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। अमृतपाल और पुलिस में चूहे-बिल्ली का खेल चल रहा है। ‘आप्रेशन अमृतपाल’ को लेकर सवाल उठने लगे हैं। ऐसा आभास हो रहा है कि जैसे सबकुछ लिखित पटकथा के अनुरूप सुनियोजित ढंग से हो रहा है। अमृतपाल का बार-बार बच निकलना और नए-नए वीडियो जारी कर सत्ता को चुनौती देने से पुलिस प्रशासन असहाय नजर आ रहा है। स्वर्ण मंदिर परिसर, तलवंडी साबो और अन्य गुरुघरों के बाहर हजारों की संख्या में पुलिस और अर्द्धसैन्य बलों के जवानों की घेराबंदी है, जगह-जगह सर्च आप्रेशन जारी हैं, फिर भी एकमात्र अमृतपाल  को गिरफ्तार करने में विफलता बहुत कुछ कहती है। आखिर कौन सी ऐसी ताकत है जिसके बल पर अमृतपाल पुलिस को छका रहा है। ऐसा लग रहा है कि अमृतपाल का नैरेटिव राज्य पर हावी हो रहा है। जिस तरह से वीडियो जारी कर अमृतपाल ने आत्मसमर्पण के लिए शर्तें रखी हैं और अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह से बैसाखी के अवसर पर सरबत खालसा बुलाने की अपील की है उससे साफ है कि पंजाब के काले दिनों का इतिहास फिर दोहराया जा रहा है।
 सितम्बर 1981  में पंजाब पुलिस ने जनरैल सिंह भिंडरावाला को गिरफ्तार करने का फैसला किया था। भिंडरावाला पर मेरे परदादा और पंजाब केसरी के संस्थापक,सम्पादक लाला जगत नारायण जी की हत्या में संलिप्त होने का आरोप लगा था। उसकी गिरफ्तारी के लिए पंजाब पुलिस को पकड़ने के लिए हरियाणा और दिल्ली तक दौड़ लगानी पड़ी थी लेकिन वह छिपते-छिपते हरियाणा के हिसार स्थित चंदोकला से अमृतसर के चौक मेहता स्थित अपने मुख्यालय में पहुंचने में सफल हो गया था। बाद में जब उसने आत्मसमर्पण के लिए शर्तें रखीं तो ऐसा लगा कि जैसे पंजाब सरकार की गिरफ्तारी हो रही है। सत्ता ने उसके सामने हथियार डाल दिए थे। अंततः भिंडरावाला ने अपनी शर्तों के अनुसार आत्मसमर्पण किया। उसका काफिला देखने के लिए शहरों की सड़कों पर हुजूम उमड़ पड़ा था।
अमृतपाल ने अपने वीडियो में कहा है कि कोई भी उसका बाल बांका नहीं कर सकता, वह भगौड़ा नहीं है, उसे मौत से डर नहीं लगता, वह ना पाखंडी है और न ही मौत से डरता है। अमृतपाल ऐसी बातें कर सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर रहा है। वह भावनाओं से खेलने में माहिर है। अमृतपाल ने जिस तरह पुलिस कार्यवाही को सिख कौम पर हमला बताकर वही खेल खेलने की कोशिश की है जो भिंडरावाला ने खेला था। अमृतपाल ने बड़ी चतुराई से गेंद अकाल तख्त के पाले में सरका दी और उसके बाद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और शिरोमणि अकाली दल बादल का सर्मथन भी उसे मिल गया। अकाल ताकत के अल्टीमेटम के बाद पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 348 में से अधिकांश युवकों को छोड़ दिया गया। दरअसल शिरोमणि अकाली दल का जनाधार पिछले कुछ सालों से लगातार घटता जा रहा है। उसका परम्परागत वोट भी काफी खिसका है। ऐसी हालत में वह अमृतपाल के बहाने सिख कौम के मुद्दे उठाकर अपना खोया वोट बैंक फिर से हासिल करना चाहता है। जब अमृतपाल दुबई से लौटा और उसने दीप सिद्धू के  संगठन वारिस पंजाब दे के प्रमुख का पद सम्भाला तब वह एक अज्ञात ईकाई था। पंजाब में उसके तेजी से उदय और सिख समुदाय के रुढ़िवादी तत्वों के त्वरित समर्थन जिसमें अकाली दल का समर्थन भी शामिल है, के कारण हुआ। 
अलगाववादी भाषा बोलने वाले संगरूर से सांसद सिमरनजीत सिंह मान ने तो खुलेआम अमृतपाल का समर्थन करना शुरू कर दिया। पंजाब में इस समय जो चल रहा है वह एक तरह से अलग-अलग धारणाओं की प्रतियोगिता है। हर किसी की जुबान पर यही सवाल है कि आखिर पुलिस प्रशासन के पास अतिआधुनिक हथियार, संचार उपकरण, खुफिया एजैंसियों का जाल है तो फिर अमृतपाल की गिरफ्तारी क्यों नहीं हो रही। अगर अमृतपाल ने अपनी शर्तों पर आत्मसमर्पण किया तो वह सिखों में एक योद्धा की छवि कायम कर लेगा और हो सकता है कि उसे गर्म विचारधारा वाले युवाओं का समर्थन मिल जाए। ऐसे में पंजाब में कट्टरवाद का प्रसार हो सकता है। अमृतपाल की कोशिश यही है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों का भावनात्मक दोहन कर सके। अजनाला कांड के बाद जिस तरह से अमृतपाल को छूट दी गई और वह कई दिनों तक खुलेआम इंटरव्यू और भड़काऊ बयान देता रहा तथा देश की सत्ता को चुनौती देता रहा, उस पर सवाल तो उठ ही रहे हैं। पंजाब पहले ही आतंकवाद की आग में झुलस चुका है। बड़ी मुश्किल से पंजाब शांति के पथ पर लौटा था। अमृतपाल को मीडिया ने सनसनी बना दिया। विदेशी ताकतों के समर्थन से राष्ट्र विरोधी ताकतों का उभार न केवल पंजाब बल्कि देश के लिए खतरनाक संदेश है। केन्द्र और राज्य को मिलकर सिख समुदाय काे ​िवश्वास में लेकर राष्ट्र विरोधी तत्वों का दमन करना चाहिए ताकि सिखों की गौरवपूर्ण विरासत और राष्ट्रवाद की राजनीति को कोई प्रभावित न कर सके।

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