अक्सर लोग कहते हैं कि जिन्दगी हादसों का ही सफर है। हादसे कभी भी किसी भी समय हो सकते हैं। देश में जिस तरह से भयंकर सड़क हादसे हो रहे हैं उससे तो यही लगता है कि हादसों का शिकार होने की बजाय हादसों से बचना ही जीवन है। भारत तेज रफ्तार का शिकार हो रहा है। कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता है जिस दिन देश के किसी न किसी भाग में हादसा न हुआ हो, जिसमें कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ता है। सड़क हादसों से जुड़ी खबरों पर विमर्श होना बहुत जरूरी है। खबर है कि अहमदाबाद के इस्कान ब्रिज पर भयंकर सड़क हादसा हुआ। सड़क पर पहले से ही एक थार और डम्पर के बीच दुर्घटना हुई उसे देखने के लिए लोग वहां जमा हो गए थे। उसी समय तेज रफ्तार से आ रही जगुआर कार ने वहां खड़े लोगों को कुचल दिया। हादसे में दो पुलिस कांस्टेबलों समेत 9 लोगों की मौत हो गई। जगुआर कार की स्पीड 160 किलोमीटर प्रति घंटा थी। दुर्घटना इतनी भयंकर थी कि पुल पर खड़े लोग तीस-तीस फीट दूर जा गिरे। हिट एंड रन के मामले पहले भी हो चुके हैं। जब अमीर मां-बाप के बेटों ने तेज रफ्तार से कार चलाते हुए पटरी पर सो रहे लोगों को कुचल डाला था। कभी शराब के नशे में धुुत्त लोगों ने राहगीरों को मौत के आगोश में सुला दिया। लेकिन दुर्घटना को देखने जमा हुए लोग दुर्घटना का शिकार हो गए, यह अपने आप में पहला मामला है।
अब सवाल यह है कि इन हादसों को रोका कैसे जाए। ट्रैफिक नियमों की अनदेखी हमारे समाज में आम बात हो चुकी है। रात को तो ट्रैफिक नियमों का कोई अर्थ नहीं रह जाता। सड़क दुर्घटनाओं की दो बड़ी वजह यही है कि तेज रफ्तार और लापरवाही से वाहन चलाना। दुनिया भर में यह मशहूर है कि भारतीयों को ट्रैफिक सैंस नहीं है। भारत सड़क दुर्घटनाओं के मामले में पहले स्थान पर है। अमेरिका और चीन भी हम से पीछे हैं। शराब पीकर वाहन चलाना देश में जन्मसिद्ध अधिकार जैसा माने जाना लगा है। भारत में सड़क हादसों के आंकड़े बताते हैं कि देश में वर्ष 2021 में सड़क दुर्घटनाओं में 1.55 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई। यह आंकड़ा औसत 426 लोग प्रतिदिन या हर घंटे 18 लोगों का है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल देश में 4.03 लाख सड़क दुर्घटनाओं में मौतों के अलावा 3.71 लाख लोग घायल भी हुए।
देश में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों पर राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक रोड एक्सीडेंट के मामले 2020 में 3,64,796 से बढ़कर 2021 में 4,03,116 हो गए। मौतों में 16.8 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। 2020 में 1,33,201 और 2021 में 1,55,622 लोगों ने सड़क हादसे में अपनी जान गंवाई है। साथ ही 2021 में प्रति हजार वाहनों की मौत दर 2020 में 0.45 से बढ़कर 2021 में 0.53 हो गई है। विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं तेज गति के कारण हुई हैं।
देश में मोटर व्हीकल एक्ट में किया गया संशोधन 1 सितंबर 2019 से लागू हुआ था। इसका मकसद देश में सड़क पर यातायात को सुरक्षित बनाना और सड़क हादसों में लोगों की मौत की संख्या को कम करना था। भारत में होने वाले सड़क हादसे में करीब 26 फीसदी खतरनाक या लापरवाह ड्राइविंग या ओवरटेकिंग की वजह से होते हैं। कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था। उससे सड़क हादसों में लगभग बीस हजार लोगों की जान बचायी गईं।
किसी युवा या परिवार का पालन-पोषण करने वाले व्यक्ति का किसी हादसे में चले जाना परिवारों को कितना भारी पड़ता होगा, इसका अहसास दूसरे लोगों को नहीं है। राज्य सरकारों को मृतकों के परिवारों और घायलों को मुआवजा भी देना पड़ता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में शानदार राजमार्ग बन चुके हैं। एक्सप्रैस-वे और अन्य सम्पर्क सड़कें बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं। केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के नेतृत्व में शानदार काम हुआ है। उनका लक्ष्य सड़क दुर्घटना और इसके कारण हो रही मौतों में कमी लाना है। तमिलनाडु ने इस दिशा में उल्लेखनीय काम किया है, वहां सड़क हादसों में होने वाली मौतों में कमी आई है। यदि सड़क हादसों से बचना है तो समाज में यातायात नियमों को लेकर जागरूकता फैलानी होगी और तेज रफ्तार से वाहन चलाने की मानसिकता को बदलना होगा। यातायात नियमों को अपनी आदत बनाना होगा। सड़क दुर्घटनाओं के कारण बेवजह इतनी जानें चली जाती हैं कि युद्ध में भी इतने लोग नहीं मरते होंगे। दुर्घटनाओं की वजह से न केवल परिवार बर्बाद होते हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है। ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने पर कड़ी कार्रवाई जरूरी है। सड़क हादसे केवल कानून व्यवस्था का मामला नहीं है, बल्कि एक सामाजिक समस्या है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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