समंदर का क्रोध हमने देख लिया,
महातूफान का प्रकोप झेल लिया।
महातूफान के बाद कई शहरों में बाढ़ से तबाही को देख लिया,
अब भीषण लू से राह चलते लोगों को एकाएक गिरते देख लिया।
आपदाएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही। महातूफान तब आते हैं जब समुद्र की अपनी सतह पर तापमान बढ़ जाए। बंगाल की खाड़ी का औसतन तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहने लगा है तो हर साल आधा दर्जन तूफान हमें झेलने ही पड़ेंगे। गुजरात में प्रलय दिखने के बाद तूफान ने राजस्थान में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिए। इस तूफान ने मानसून की गति को भी अवरुद्ध कर दिया। अब उत्तर प्रदेश, बिहार में भीषण लू से कई लोगों की मौत दुखद है। इन दो राज्यों के अलावा ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी भीषण गर्मी पड़ रही है। भारत ही नहीं समूचा विश्व इस समय जलवायु परिवर्तन की त्रास्दी भुगत रहा है। देश में कई राज्यों में अतिवृष्टि तो कई राज्यों में सूखा पड़ने की आशंकाएं बल पकड़ चुकी हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कम बारिश होने की भविष्यवाणी कर दी गई है। पिछले कुछ दशकों से धरती के तापमान में बढ़ौतरी को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, परंतु धरातल पर इन प्रयासों का कोई परिणाम सामने दिखाई नहीं दे रहा। वैज्ञानिक अभी और 2027 के बीच वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सयस की वृद्धि सीमा को पार करने की संभावना जताई है अगर हर साल तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा और ऐसा एक-दो दशक तक होता रहा, तो लू चलने की अवधि लंबी होती जाएगी, बड़े-बड़े तूफान आएंगे और जंगलों में आग लगने की घटनाओं में भारी बढ़ौतरी होगी, ये सभी स्थितयां अभी भी चिंताजनक स्तर पर हैं तथा सूखे और असमय बरसात भी कहर बन चुके हैं। आमतौर पर जल संकट से अनजान यूरोपीय देश स्पेन सूखे से जूझ रहा है तथा देश के एक हिस्से के मरुस्थल बनने का खतरा उत्पन्न हो गया है। विश्व मौसम संगठन के अनुसार, 2022 हालिया इतिहास के सबसे गर्म वर्षों में एक है। पिछले आठ वर्षों से लगातार वैश्विक तापमान में पूर्व औद्योगिक युुग की तुलना में कम-से-कम एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ौतरी हुई है।
अस्सी के दशक से हर दशक पिछले दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु समझौतों तथा अध्ययनों के सुझावों पर सही ढंग से अमल शुरू नहीं होगा, तो तापमान वृद्धि इसी तरह जारी रहेगी। भारत की बात करें तो वर्ष फरवरी 122 सालों में सर्वाधिक गर्म फरवरी रहा।
भारत की अर्थव्यवस्था मानसून पर निर्भर होती है। मानसून के चलते ही भारत दुनिया की मजबूत अर्थव्यवस्था बना है। मानसून के अनिश्चित रहने से कृषि उत्पादन का संतुलन बिगड़ जाता है। सरकार का बही खाता मानसून से ही चलता हॆ, अगर वर्षा अच्छी हो तो फसल अच्छी होती है, अगर सूखा पड़ जाए तो सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों काे कैसे झेला जाए? दरअसल मनुष्य ने प्राकृति से जितना खिलवाड़ कर दिया है उसकी भरपाई निकट भविष्य में नहीं की जा सकती है।
मनुष्य ने अपने जीवन को सहज बनाने के लिए सारे साधन तो जुटा लिए जिससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ता चला गया। विषाक्त गैसों से जलवायु विषाक्त होती गई और धरती का तापमान बढ़ता ही चला गया, अब जलवायु का चक्र ही बदल चुका है। प्राकृति संहारक साबित हो रही है। एक के बाद एक त्रास्दियों से रातें लंबी काली और भयानक हो रही हैं और विस्थापित हुए हजारों लोगों के जीवन में सन्नाटा और अंधकार छा जाता है। महातूफान हो या भीषण लू इनसे इंसानी जिंदगियां ही नहीं आशियानें भी बर्बाद हो रहे हैं। अब भी समय है कि इंसान जलवायु संकट को एक अपात स्थिति समझें और प्राकृति के साथ रहना सीखें। पूरी दुनिया में इंसानों को ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने और जल स्रोतों को बचाने के लिए काम करना होगा। विलासतापूर्ण जीवन को छोड़कर हम सबको कार्बन उत्सर्जन घटाने के प्रयास करने होंगे। वैश्वक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन और उपभोग बढ़ाना होगा। रेफ्रीजरेटर, एयर कंडीशन और कार्बन उत्सर्जन करने वाले वाहनों का इस्तेमाल भी सीमित करना होगा। अगर इंसान अब भी नहीं संभला तो प्राकृति रोद्र रूप दिखाती रहेगी और इंसानों को मौत की आगोश में सुलाती रहेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com