1984 दंगा पीड़ित परिवारों के जख्मों पर मरहम - Punjab Kesari
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1984 दंगा पीड़ित परिवारों के जख्मों पर मरहम

आज से 40 वर्ष पूर्व इस देश में ऐसी घटना घटी जिसका कभी किसी ने ख्वाब में भी

आज से 40 वर्ष पूर्व इस देश में ऐसी घटना घटी जिसका कभी किसी ने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा। हिन्दू-सिख भाईचारा सभी लोग प्रेम भाव के साथ आरामपूर्वक रह रहे थे जब अचानक से समूचे देश में सिखों का कत्लेआम शुरू हो गया। बच्चे से लेकर बूढ़े जिसके भी सिर पर दस्तार, मुख पर दाड़ी दिखी उसे बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। अकेले राजधानी दिल्ली में 10 हजार से अधिक सिखों का कत्लेआम हुआ जिसे सरकारी आंकड़ा 3 हजार बताता है। तब से लेकर आज तक 40 वर्षों में किसी ने भी पीड़ित परिवारों को इन्साफ तो क्या ही देना था उनकी जरूरी मांगों पर भी गौर फरमाना मुनासिब नहीं समझा।

सिख समाज के अपने लोग जिन पर उन्हांेने पूरा भरोसा किया उन्हांेने भी पीड़ित परिवारों का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु ही किया। जब भी कोई चुनाव आए पीड़ित परिवारों को ले जाकर धरने-प्रदर्शन करवाए जाते मगर शायद अन्दर से वह राजनीतिक लोग चाहते ही नहीं थे कि पीड़ितों को इन्साफ मिले क्योंकि अगर ऐसा हो गया होता तो उनकी राजनीतिक रोटियां कैसे ​िसकती। देश में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार आई तो उन्होंने कमीशन बनाकर इसकी जांच शुरू करवाई मगर तब तक कई पीड़ित परिवारों के मुखिया इस दुनिया से अलविदा हो चुके थे। उसके बाद 2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार आने पर प्रधानमंत्री के द्वारा स्वयं दिलचस्पी दिखाते हुए पीड़ितों को इन्साफ दिलवाने के लिए मुहिम को तेजी से शुरू किया गया। दिल्ली में कई जगहों पर पीड़ित परिवार रह रहे हैं और सबसे अधिक तिलक विहार में रहते हैं जिसे विधवा कालोनी का नाम दिया गया है।

पीड़ित परिवारों को समय-समय पर मुआवजा तो कई बार मिला। मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर थे उस समय भी उन्होंने एक पैकेज घोषित किया था जिसमें पीड़ित परिवारों को नौकरी का प्रावधान भी दिया गया था, मगर आज तक वह लागू ही नहीं हुआ। अब कहीं जाकर पीड़ित परिवारों में से 47 परिवारों को सरकारी नौकरी की पेशकश करते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल ने स्वयं पहुंचकर नियुक्ति पत्र सौंपे और जल्द ही अन्य 450 के करीब परिवारों को भी नौकरी देने हेतु दस्तावेज की जांच मुकम्मल करने की बात कही।

इतना ही नहीं पहली बार ऐसा हुआ जब सरकारी नौकरी में कोई उम्र की बन्दिश नहीं और 8वीं पास व्यक्ति भी इसका लाभ ले सकेंगे। विपक्षी दल का मानना है कि भाजपा को चुनावों में लाभ पहुंचाने हेतु यह निर्णय लिया गया है क्यांेकि फरवरी मंे दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। पर जो भी हो ऐसा होने से पीड़ित परिवारों के जख्मों पर मरहम जरूर लगी है। 40 साल से हमने देखा कई ऐसी महिलाएं हैं जिनके चेहरे हमेशा ही उदास देखे मगर पहली बार नियुक्ति पत्र कार्यक्रम मंे मंच पर बैठी पीड़िता जिसने अपनी आंखों के सामने परिवार के 8 लोगों को जिन्दा जलते हुए देखा, उसके चेहरे पर मुस्कान देखी गई और तालियां बजाकर उसने सरकार के फैसले का स्वागत किया।

गुरु हरिकृष्ण पब्लिक स्कूलों पर आरोप-प्रत्यारोप निरंतर जारी

दिल्ली में सिखों के 13 स्कूल गुरु हरिकृष्ण साहिब के नाम पर चल रहे हैं जिनका गठन 60 के दशक में दिल्ली के सिख नेताओं के द्वारा सिखों को कानवेंट स्कूलों के बराबर की शिक्षा मुहैया करवाने हेतु किया गया था। जिसका प्रबन्ध दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के द्वारा देखा जाता है। जब तक स्कूलों में बुद्धिजीवि, एजूकेशनिस्ट या बड़े व्यापारिक लोगों को चेयरमैन बनाया जाता रहा स्कूल निरन्तर तरक्की की राह पर अग्रसर रहे, पर जब से राजनीतिक लोगों ने अपनी कुर्सियां कायम रखने हेतु अपने चहेतों, चापलूसों को बिना उनकी काबलियत जांचे रेवड़ियों की तरह चेयरमैनियां बांटनी शुरू कर दी स्कूल गिरावट की ओर चल पड़े।

एक समय ऐसा था जब इन स्कूलों में दाखिला लेने के लिए बड़े-बड़े लोगों की सिफारिश के बाद भी दाखिला नहीं मिलता था, अब कोई भी अपने बच्चों को इनमें पढ़ाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होता। जो भी पार्टी सत्ता में रहती है विपक्षी उन पर स्कूलों की आड़ में निरन्तर वार करते हैं जिसका परिणाम स्कूलों की बदनामी के सिवा और कुछ नहीं निकलता। विपक्षी दल पहले तो टीचरांे से धरने-प्रदर्शन करवाया करते, मगर धीरे-धीरे कोर्ट-कचहरियों में प्रबन्धकों के खिलाफ केस तक होने लगे। स्कूलों में नाजायज और बेवजह की भर्तियां करके जरूरत से अधिक स्टाफ रखा गया। स्कूलों की बदनामी के चलते बच्चों की गिनती निरन्तर कम होती चली गई और भी कई कारण रहे जिसके चलते आज स्कूलों की हालत पूरी तरह से खस्ता हो चुकी है। ऊपर से छठा, सातवां पेकमीशन लगने से खर्चे निरन्तर बढ़ते चले गए।

इस सबके लिए कोई एक पार्टी या प्रबन्धक जिम्मेवार नहीं, सभी के द्वारा अपने समय में ऐसा किया जाता रहा है, किसी ने कम तो किसी ने जरूरत से अधिक। मौजूदा समय में प्रबन्ध संभाल रहे प्रबन्धकों के सामने बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है कि कैसे स्कूलों को कायम रखा जा सके। हालांकि गुरुद्वारों की गोलक से फण्ड देकर उनके द्वारा पूरी कोशिश की जा रही है। टीचर्स को अब तनख्वाह भी समय से मिलने लगी है, पर अभी भी बहुत से ऐसे खर्च हैं जिन्हें कम करना अति जरूरी है।

देखा जाए तो स्कूल किसी की भी निजी सम्पित्ति नहीं, यह समूची कौम की धरोहर है जिसे बचाने के लिए सभी को मिलकर इसका समाधान ढूंढना चाहिए और अपनी बदनामी स्वयं करने से बचते हुए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप तुरन्त बंद करने चाहिए तभी स्कूल बच पाएंगे।

गुरुद्वारों में व्हील चेयर की मनाही क्यों?

सिख समाज के द्वारा गुरुद्वारांे की इमारतें तो आलीशान बनाई जाने लगी हैं, पर गुरु नानक देव जी के दिखाए मार्ग से कहीं ना कहीं कौम पूरी तरह से भटक चुकी है। बिना किसी भेदभाव के अमीर-गरीब, जात-पात, धर्म के लोगों को गुरुघरों में नतमस्तक होने की छूट रहती है मगर वहीं कई ऐसे इन्सान भी इस दुनिया में हैं जो शारीरिक रूप से स्वयं चलने में भी असमर्थ हैं मगर उनके दिल में गुरु साहिब के प्रति श्रद्धा भावना पूरी तरह से कायम रहती है। उनके पारिवारिक लोगों की भी इच्छा रहती है कि जैसे रजनी के पति की श्री दरबार साहिब के सरोवर में जाने से काया पलट हो गई थी, हो सकता है कि उनके बच्चे भी स्वस्थ हो जाएं मगर गुरुद्वारा साहिब के अन्दर व्हील चेयर ले जाने की मनाही के चलते वह अपने बच्चों को नहीं ले जा सकते।

दिल्ली की ही एक महिला सुनीता घावरी जो निरन्तर सभी गुरुद्वारों के प्रबन्धकों से अपने बच्चे को दर्शन करवाने हेतु गुहार लगा चुकी है, पर उनकी कोई सुनवाई नहीं। उनका ऐसा भी मानना है कि गुरुद्वारा साहिब में ही व्हील चेयर की व्यवस्था होनी चाहिए जिस पर बिठाकर अपंग व्यक्ति अगर आए तो उसे दर्शन करवाए जा सकें।

ननकाणा साहिब को वैटिकन सिटी का दर्जा

1947 में देश का बंटवारा होने के बाद सिख धर्म के ज्यादातर ऐतिहासिक धार्मिक स्थल पाकिस्तान में रह गये जिसके लिए गुरु का सिख संसार के किसी भी कोने में हो दिन में जितनी बार भी अरदास करता है बिछुड़े गुरुधामों के खुले दर्शन दीदार के लिए प्रमात्मा से विनती करता है। इसी के चलते सिखों को गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर तोहफा मिला जब दोनों देशों की सरकारों ने करतारपुर साहिब जहां गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम समय में हाथों से मेहनत करते हुए खेतों में हल चलाया। उस स्थान के दर्शनों की मंजूरी वीज़ा पासपोर्ट के साथ दे दी परंतु इस प्रक्रिया को सरल बनाने की मांग निरंतर की जा रही है। उसी प्रकार से गुरु नानक देव जी के जन्म स्थल ननकाणा साहिब को वैटिकन सिटी बनाए जाने की मांग पिछले कई वर्षों से सिख ब्रदर्सहुड इंटरनेशनल के द्वारा की जा रही है। हर वर्ष गुरु नानक जयंती पर देश के प्रधानमंत्री को मांग पत्र सौंपा जाता है। बख्शी जगदेव सिंह ने इसकी शुरुआत की थी और बाद में उनके पुत्र परमजीत सिंह बख्शी इसे उठाते रहे। मौजूदा समय में उनकी तीसरी पीढ़ी के रूप में अमनजीत सिंह बख्शी, गुणजीत सिंह बख्शी ने इसका बीड़ा उठाया है और देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा को पत्र लिखा गया।

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