हरियाणा का चुनावी युद्ध - Punjab Kesari
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हरियाणा का चुनावी युद्ध

हरियाणा राज्य का निर्माण 1966 में पंजाब से अलग करके किया गया था। तब से लेकर आज तक हरियाणा की राजनीति में भारी बदलाव आ चुका है। इसके पहले मुख्यमन्त्री पं. भगवत दयाल शर्मा ने अपना उत्तराधिकारी 1967 के विधानसभा चुनावों के बाद स्व. बंसीलाल को बनाया। मगर इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी हाशिये पर ही बहुमत से दूर रह गई और स्व. राव वीरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस पार्टी से विद्रोह कर दिया। वह विपक्षी दलों के समर्थन से संविद सरकार के मुखिया बन गये मगर यह सरकार विधायकों के एक पाले से दूसरे पाले में जाने की वजह से ज्यादा दिन टिक नहीं सकी। नतीजतन 1968 में स्व. बंसीलाल मुख्यमन्त्री बन गये। मगर हरियाणा की राजनीति में विधायकों के दल बदलने की वजह से ‘आया राम व गया राम’ की लोकोकक्ति भी बन गई। मगर बंसीलाल की पार्टी कांग्रेस ने 1968 से राज्य की राजनीति को स्थायित्व दिया और 1972 का चुनाव भी श्री बंसीलाल के नेतृत्व में जीता। इसके बाद स्व. बनारसी दास गुप्ता से लेकर भजनलाल, देवीलाल, ओम प्रकाश चौटाला, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा व मनोहर लाल खट्टर आदि मुख्यमन्त्री रहे। मगर कोई भी मुख्यमन्त्री स्व. बंसीलाल के हरियाणा के विकास माडल को कायदे से छू पाने में असफल रहा।

बेशक श्री हुड्डा ने 2005 से लेकर 2014 तक उनके नक्शे कदम पर चलने का भरपूर प्रयास किया मगर 2014 के चुनावों में भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी की जबर्दस्त लहर चली जिसकी वजह से पार्टी को तूफानी सफलता मिली। भाजपा द्वारा मनोहर लाल खट्टर को नैपथ्य से निकाल कर मुख्यमन्त्री बनाया गया। 2019 के चुनावों में भाजपा का कमाल दब कर रह गया जिसकी वजह श्री खट्टर का पांच साल का शासन ही था। इन चुनावों में भाजपा को 90 सदस्यीय विधानसभा में केवल 40 सीटें ही मिल पाईं और इसने श्री खट्टर के नेतृत्व में ही दुष्यन्त चौटाला के 10 विधायकों के साथ गठबन्धन सरकार बनाई। यह सरकार भी जनता की निगाह में बेकार साबित हुई जिसकी वजह से भाजपा ने इसी साल हुए लोकसभा चुनावों से कुछ समय पहले ही श्री खट्टर के सिर से मुख्यमन्त्री का ताज उतार कर नायब सिंह सैनी के सिर पर रख दिया। अब इस राज्य के चुनाव हो रहे हैं और कांग्रेस पार्टी अपनी खोई जमीन प्राप्त करने के लिए ऐड़ी- चोटी का जोर लगा रही है। अतः राज्य इस समय भीषण चुनावी युद्ध के दौर से गुजर रहा है क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने अपने अन्तिम हथियार राहुल गांधी व प्रियंका गांधी को भी मैदान में उतार दिया है।

इसमें जरा भी शक की गुंजाइश नहीं है कि श्री राहुल गांधी लोकसभा चुनावों के बाद विपक्षी दलों की राजनीति की धुरी बन कर उभरे हैं औऱ वह भाजपा को सैद्धान्तिक से लेकर सड़क तक की राजनीति में सीधे मुकाबला करने के लिए उकसा रहे हैं। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस पार्टी श्री हुड्डा के नेतृत्व में अपने एजेंडे को जनता का एजेंडा बना रही है। लोकतन्त्र में जिस भी राजनैतिक दल का एजेंडा जन-विमर्श बन जाता है वही पार्टी अन्ततः विजयी होती है। मगर भाजपा ने भी इस हकीकत को पहचान लिया है अतः उसने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी से लेकर गृहमन्त्री अमित शाह, रक्षा मन्त्री राजनाथ सिंह व शहरी विकास व बिजली मन्त्री मनोहर लाल खट्टर को मैदान में उतार रखा है। मगर हरियाणा का मतदाता बहुत वाचाल माना जाता है वह अपने मन की बात जुबान पर लाने से नहीं हिचकता। हरियाणा कभी-कभी एकतरफा भी चलता है जैसा हमने 1977 के चुनावों में देखा था। इन चुनावों में जनसंघ समाहित जनता पार्टी को भारी सफलता मिली थी। मगर यह भी हकीकत है कि इस वर्ष हुए चुनाव के बाद जनता पार्टी ने स्व. देवीलाल को मुख्यमन्त्री बनाया था। तब इस पार्टी में स्व. भजनलाल कांग्रेस फार डेमोक्रेसी पार्टी के झंडे तले आकर जनता पार्टी का हिस्सा हो चुके थे यह पार्टी 1977 में कांग्रेस छोड़ने वाले स्व. बाबू जगजीवन राम ने बनाई थी। देवीलाल जून 1979 तक ही मुख्यमन्त्री रहे क्योंकि केन्द्र में जनता पार्टी की मोरारजी देसाई सरकार को स्व. चौधरी चरण सिंह ने धराशायी कर दिया था और चौधरी साहब ने देवी लाल को केन्द्र में बुला लिया था। तब देवीलाल ने राज्य की कमान भजन लाल को दी। मगर भजन लाल गजब के कलाकार थे।

1980 चुनावों में जब स्व. इन्दिरा गांधी को महान सफलता मिली तो स्व. भजन लाल ने रातों-रात पूरी सरकार को ही इन्दिरा जी की पार्टी कांग्रेस में परिवर्तित कर दिया था। वर्तमान समय में भजन लाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई भाजपा के साथ हैं। उनके अलावा देवीलाल की विरासत थामने वाले सभी फरजन्द अपनी-अपनी छोटी पार्टियां बना कर बैठे हुए हैं। ये पार्टियां कांग्रेस व भाजपा से बराबर की दूरी बनाने का उपक्रम करती रहती हैं। मगर वास्तविकता यह है कि राज्य में भाजपा व कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर होने की वजह से इनका खाता खुल भी पाता है अथवा नहीं, यह देखने वाली बात होगी। हरियाणा बेशक दिल्ली से लगा हुआ है मगर इसकी राजनीति कभी भी दिल्ली की स्थानीय राजनीति से प्रभावित नहीं रही है जबकि इसने राष्ट्रीय राजनीति के दांव-पेचों से खुद को शुरू से ही बावस्ता रखा है। जो सामने दिखाई पड़ रहा है वह यही है कि 5 अक्टूबर को होने वाले चुनावों में मतदाता बहुत सध कर मतदान करेंगे तथा खुद को लोकतन्त्र का मालिक साबित करेंगे।

भाजपा व कांग्रेस दोनों तरफ से ही यह कोशिश हो रही है कि मतदाता उनके एजेंडे को अपना एजेंडा समझे लेकिन इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इस बार चुनावों के ऐसे परिणाम आयेंगे जो भाजपा व कांग्रेस दोनों को ही हैरत में डालेंगे। इस सन्दर्भ में राहुल गांधी की आज से शुरू की गई चुनाव यात्रा कौन सा गुल खिला सकती है, यह भी देखने वाली बात होगी। हम जानते हैं कि भाजपा के कार्यकर्ता भी एक जमाने में घर- घर प्रचार किया करते थे। देशभर में भाजपा इसी तकनीक से जमी है। अतः राहुल गांधी की यात्रा इसी तकनीक का विस्तार है। इसलिए यह दीवार पर लिखी इबारत है कि भाजपा व कांग्रेस के बीच कांटे की लड़ाई होगी और शेष सभी पार्टियां ‘वोट कटवा’ बन कर तमाशा देखेंगी।

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पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।