उस दिन मैं एक सहयोगी के साथ भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर वैसे ही बात कर रहा था तो अचानक सुर्खियां बटोरने में माहिर ‘गुरु’ की चर्चा शुरू हो गई। इसके बाद उस सहयोगी ने कहा कि नवजोत सिंह सिद्धू जो आज पंजाब में मंत्री हैं, कभी भाजपा में रहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुणगान करते नहीं थकते थे और कभी प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को सरदार कहकर ‘असरदार’ से इसकी तुलना किया करते थे। उन पर यह शे’र लागू होता है-
नहीं शिकवा मुझे कुछ भी
तेरी बेवफाई का।
गिला हो तब अगर तूने
किसी से भी निबाही हो॥
इसमें कोई शक नहीं कि किसी पार्टी में जाने-आने को लेकर यह किसी व्यक्ति की विचारधारा हो सकती है, लेकिन आपका चरित्र और नैतिकता का कोई तकाजा भी होना चाहिए। जब आप किसी राज्य के मंत्री हैं तो फिर पाकिस्तान के मामले में हर कोई आपसे कर्त्तव्यपरायणता की उम्मीद करता है। व्यक्तिगत चीजें अलग बात हैं और राष्ट्र भक्ति दूसरी बात है। पाकिस्तान के बारे में सब जानते हैं कि वह एक ऐसा कट्टर दुश्मन है कि जिससे जितनी भी दोस्ती निभाने की कोशिश कर लो वह हमेशा डंक ही मारेगा। भारत-पाक बंटवारे के बाद सैंकड़ों मौकों पर पाकिस्तान ने भारत के साथ कश्मीर मुद्दे पर टकराव किया और हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी। पहले राष्ट्रीय स्तर पर वह जूते खाता था और अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर के मामले पर वह यूएनओ तक बेनकाब हुआ। सब जानते हैं कि पाकिस्तान में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं है। वहां चुनाव हुए आैर क्रिकेटर इमरान साहब की पार्टी पीटीआई को फौज ने सत्ता सौंप दी। इमरान ने कहा कि ओथ सेरेमनी में दोस्ती के तौर पर सुनील गावस्कर, आमिर खान, नवजोत सिंह सिद्धू और कपिल देव को अपने यहां बुला रहे हैं। सब जानते हैं कि पाकिस्तान ने दोस्ती के नाम पर भारत को हमेशा धोखा ही दिया है, इसलिए बाकी तीन लोगों ने उनका अनुरोध ठुकरा दिया, लेकिन सिद्धू साहब मुंह उठाकर पाकिस्तान चले गए।
वहां जाकर पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल बाजवा से गले मिलते रहे और उनके बाजू में पीओके के राष्ट्रपति मसूद बैठे थे। दुश्मन तो दुश्मन ही है। सिद्धू के वहां जाते ही और उनके वहां जनरल बाजवा के साथ गले मिलने को देख देश के लोग भड़क उठे। बॉर्डर पर ही उन्हें काले झंडे दिखाए गए तथा उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का केस दर्ज करने की मांग को लेकर याचिका भी दायर की गई। सिद्धू साहब ने इस विरोध को देखकर सफाई भी दी कि अगर प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी पूर्व पाक हुक्मरान परवेज मुशरफ से मिल सकते हैं या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के अपने समकक्ष रहे नवाज शरीफ से मिल सकते हैं तो मेरे वहां जाने में बुराई कैसी? सिद्धू साहब बड़े अदब से आपसे पूछना चाहता हूं कि सर्वश्री वाजपेयी और नरेंद्र मोदी जी के स्टेटस और आपमें बहुत फर्क है। वे लोग भारत राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जबकि आप अपने पर्सनल मामलों की दुहाई देकर वहां गए थे। खुद आपके सीएम कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने आपके पाकिस्तान जाने पर सवाल उठाया है। दूसरों पर अंगुली उठाने से पहले अपनी राष्ट्रीयता और कर्त्तव्यपरायणता को तराजू में तोल लीजिए। हम जानते हैं कि लोगों ने श्री मोदी के मियां नवाज शरीफ की नातिन के यहां जाकर सामाजिक ताने-बाने की खातिर एक दोस्ती की पहल कूटनीतिक तरीके से की थी। भारत दोस्ती का संदेश ही देना चाहता था।
मोदी इसके बाद कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान पर हमेशा भारी पड़े। आज अमरीका आतंकवाद को लेकर अगर पाकिस्तान को हड़का रहा है तो यह श्री मोदी की ही कूटनीति का कमाल है। वाजपेयी जी की बारी में भी भारत-पाक शिखर वार्ता मुशर्रफ की जेहाद और जेहादियों की स्तुति गान से ही पटरी से उतरी थी। हमें हर बार आतंक का खूनी खेल मिला। सिद्धू साहब आप बेनकाब हो चुके हैं। शिव सेना के उद्धव ठाकरे की जितनी तारीफ की जाए वह कम है। भाजपा के पार्टनर होते हुए भी वह गलत काम पर उनकी खुले में बुराई करते हैं, परंतु आपने पर्सनल चीजों को महत्व देकर देश की भावनाओं को अपने जूतों तले रौंद डाला। जिस पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के साथ कोई खेलना पसंद नहीं करता आप वहां चले गए। देश की भावनाओं से बड़ा कोई नहीं है। जिस कांग्रेस में आप हैं उस कांग्रेस के बड़े नेताओं ने आपको कठघरे में खड़ा किया है। अपनी गलत आदत को अपना उसूल कहना आप जैसे नेताओं की शान हो सकता है, परंतु देश आपकी पर्सनल शान से बड़ा है। आप माफी मांगिए और पश्चाताप कीजिए सारा देश आपको गले लगा लेगा। हमें हिंदुस्तान पसंद है पाकिस्तान नहीं। हिंदुस्तान में रहकर हिंदुस्तान की बात करें।
आप देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे, देश की कोई बात नहीं रख रहे क्योंकि खुद आप पर्सनल यात्रा पर गए हैं तो आप करतारपुर में गुरुनानक देव जयंती के मौके पर गलियारा बनाने की बात को लेकर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया का उल्लेख कैसे कर सकते हैं? हमारे जवानों के सर काटने वाले और भारतीय गांवाें में लोगों पर फायरिंग करने वाली पाकिस्तान फौज की करतूतों और श्रीनगर में पत्थरबाजों के कारनामों को लेकर अपने दोस्त इमरान खान से कुछ न कह सके और बाजवा से गले मिलने का काम करते रहे। समझ से बाहर है कि आपको ये क्या हो गया है? चलो अच्छा है अब आप देशवासियों की प्रतिक्रिया को समझिए। इसे स्वीकार करें और मनन करें कि क्या सही है और क्या गलत? लेकिन हमारा मानना है कि हिंदुस्तान बड़ा है, वही मेरी जननी, वही मेरा सब-कुछ है और जो हिंदुस्तान में रहकर पाकिस्तान से दोस्ती निभाएगा उसे क्या कहा जाए, इसका जवाब आप ही दे दें तो अच्छा है।