गुजरात का चुनावी ‘महासंग्राम’ - Punjab Kesari
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गुजरात का चुनावी ‘महासंग्राम’

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बेशक गुजरात विधानसभा चुनावों की तारीख अभी तक चुनाव आयोग ने घोषित नहीं की है मगर इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि इस राज्य में होने वाले ये चुनाव 2019 के लोकसभा चुनावों का ‘सेमीफाइनल’ माने जायेंगे। यह राज्य इसके साथ यह भी तय करेगा कि लोकसभा चुनावों के लिए शेष बचे समय के दौरान राष्ट्रीय राजनीति का स्वरूप क्या होगा और यह कौन सी दिशा पकड़ेगी। वास्तव में यह चुनाव देश की दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस व भाजपा के लिए जीवन-मरण का प्रश्न होगा क्योंकि इसके नतीजों पर ही दोनों पार्टियों का भविष्य तय होगा जो आगे का रास्ता बनायेगा। इसलिए यह बेवजह नहीं है कि गुजरात में कांग्रेस व भाजपा दोनों ने ही अपनी पूरी शक्ति झोंक दी है। भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान स्वयं प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह संभाली है उसे देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि लड़ाई कितनी पैनी और तेज होगी मगर दांव कांग्रेस की तरफ से भी कोई छोटा नहीं लगाया गया है।

यह पार्टी इन चुनावों के जरिये अपने भविष्य के नेता श्री राहुल गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के सपने संजो रही है। अतः यह कहा जा सकता है कि गुजरात में असली टक्कर ‘मोदी बनाम राहुल’ रहेगी। इस राज्य को अभी तक दो प्रधानमन्त्री देश को देने का गौरव हासिल रहा है। पहले श्री मोरारजी देसाई थे जिन्होंने 1977 में जनता पार्टी की सरकार का नेतृत्व किया था। मूलरूप से गांधीवादी और कांग्रेसी होने के बावजूद श्री देसाई की सरकार केन्द्र में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार इसलिए कही गई थी क्योंकि इसमें जनसंघ, स्वतन्त्र पार्टी, संसोपा, संगठन कांग्रेस आदि एेसे घटक दल थे जो जनता पार्टी में समाहित हो गये थे। यह प्रयोग पूरी तरह असफल रहा था और केवल ढाई साल बाद ही श्रीमती इन्दिरा गांधी की कांग्रेस ने सत्ता में धमाकेदार वापसी की थी लेकिन 2017 की राजनीति पूरी तरह बदली हुई है। केन्द्र में श्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है और इसे अपने बूते पर लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त है। इसके साथ ही श्री मोदी पूरे 12 वर्ष तक गुजरात के मुख्यमन्त्री पद पर रहे हैं और उनके नेतृत्व में पार्टी ने लगातार तीन बार राज्य स्तर पर विजय की तिकड़ी लगाई है।

1960 में गुजरात राज्य का गठन होने के बाद इतनी बड़ी विजय किसी मुख्यमन्त्री को हासिल करने का श्रेय नहीं मिल सका किन्तु 2014 में उनके केन्द्र में आने पर राज्य स्तर पर भाजपा कोई दमदार नेतृत्व प्रदान करने में सफल नहीं हो सकी है। दूसरी तरफ कांग्रेस की हालत भी एेसी ही है। राज्य स्तर पर इसके पास भी कोई एेसा नेता नहीं है जो अपनी छाया में समूची पार्टी को ले सके। अतः दोनों ही पार्टियों के केन्द्रीय नेतृत्व की भूमिका ही इन चुनावों में मुखर होकर बोलेगी और मतदाताओं को मोहने की कोशिश करेगी लेकिन गुजरातियों के बारे में एक तथ्य महत्वपूर्ण रहा है कि ये शान्त रहकर धमाके करने में माहिर हैं। 1975 में जब केन्द्र में स्व. इंदिरा गांधी जैसी शक्तिशाली नेता का शासन था तो सबसे पहले उनकी पार्टी कांग्रेस के विरुद्ध इसी राज्य ने बगावत का झंडा बुलन्द किया था और मई 1975 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस विरोधी जनमोर्चे को स्व. बाबू भाई पटेल के नेतृत्व में विजय दिला दी थी। इतिहास सबक लेने के लिए ही होता है। अतः सत्ताधारी भाजपा को लगातार 22 वर्ष तक शासन में रहने के ‘खुमार’ से बाहर निकल कर हकीकत का सामना करना होगा।

दरअसल गुजरात देश का एेसा राज्य रहा है जिसके विकास पर कभी कोई सवाल खड़ा नहीं हुआ। इस राज्य के लोग एेतिहासिक रूप से व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में अग्रणी रहे हैं। यह भी सत्य है कि विदेशों से कारोबार करने के रास्ते भी इसी राज्य में फैले समुद्र के किनारे बसे बन्दरगाहों से बने हैं। मौर्यकाल से लेकर मुगलकाल तक वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में यह राज्य प्रत्येक शासन का प्रिय रहा और यहीं से भारत की वाणिज्यिक शब्दावली भी उपजी। इसी कारण इस राज्य ने एक से बढ़कर एक उद्योगपति इस देश को दिये जिन्होंने विभिन्न व्यापारिक क्षेत्रों में कीर्तिमान तक स्थापित किये लेकिन मौजूदा दौर में इस राज्य की राजनीति पूरी तरह करवट ले चुकी है। इसकी वजह यह है कि राज्य में जातिगत व सामुदायिक आधार पर लोगों की अपेक्षाएं बदल गई हैं। इसे हम राजनीतिक विसंगति भी कह सकते हैं विशेष रूप से गुजरात का ग्रामीण समाज स्वयं को अलग-थलग महसूस करने की स्थिति में है। इसके साथ ही यहां दलितों व आदिवासियों में बदलते भारत और विकास करते गुजरात में आत्मनिर्भरता का वह भाव नहीं जग सका है जिससे वे अपने आत्मसम्मान की रक्षा पूरी तरह निर्भय होकर कर सकें। यह उस प्रदेश की विडम्बना कही जा सकती है जहां महात्मा गांधी ने जन्म लिया था और दलितों व आदिवासियों के उत्थान को स्वतन्त्रता प्राप्ति के लक्ष्य के ही बराबर रखा था। दरअसल गुजरात का यह महासंग्राम राजनीतिक दलों से निर्देशन लेकर उन्हें दिशानिर्देश देगा..।

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