पाठ्य पुस्तकों के बिना बच्चों को सीखने-सीखाने की कल्पना नहीं की जा सकती। हालांकि डिजिटल युग में भले ही ऑनलाइन कक्षाएं लगने लगी हैं। ई-पुस्तकें भी कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं। भले ही शिक्षकों का एक वर्ग अब यह विचार रखता है कि किताबों के बगैर भी शिक्षण कार्य सम्भव है। भले ही यह वर्ग किताबों के प्रचलित स्वरूप को नकारे लेकिन उन्हें यह स्वीकार करना ही होगा कि किताबों के बिना शिक्षा प्रक्रिया चलाई ही नहीं जा सकती। किताबों को सीखने-सीखाने के साधन के रूप में स्वीकार किया गया है। आज शिक्षा बहुत महंगी हो गई है। शिक्षा महंगी होने का कारण शिक्षा का व्यवसायीकरण होना है। प्राइवेट स्कूल शिक्षा बेचने के भव्य शापिंग मॉल बन चुके हैं। जो लोग आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं वे अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च उठा सकते हैं लेकिन गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार तो महंगी पाठ्य पुस्तकों का बोझ तक उठाने में सक्षम नहीं है। बच्चों की सफलता-असफलता का मूल्यांकन करने वाली परीक्षा प्रणाली भी पूरी तरह से किताबों पर आधारित है। शिक्षा में किताबों का महत्व बरकरार है। कुछ वर्ष पहले स्कूली बच्चों काे समय पर किताबें ही उपलब्ध नहीं होती थीं। किताबों की फोटोस्टेट प्रतियां बाजार में बिकती थीं। आधा शिक्षा सत्र होने पर किताबें उपलब्ध होती थी। अब स्थिति में काफी सुधार आया है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कुछ दिन पहले यह घोषणा की थी कि अब एनसीईआरटी की पुस्तकें पहले से 20 फीसदी सस्ती मिलेंगी। यह छात्रों के हित में सरकार का बड़ा कदम है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री के मुताबिक बीते दस सालों में देश में प्रति छात्र होने वाले खर्च में 130 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2013-14 में प्रति छात्र पर खर्च 10,780 रुपये था जो 2021-22 में बढ़कर 25,043 रुपये हो गया। इस दौरान नामांकन, पास होने की संख्या, नए स्कूल और उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या भी बढ़ी है। बड़ी संख्या में स्कूल बिजली और इंटरनेट से लैस हुए हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि शिक्षा क्षेत्र में आ रहे ये बदलाव और एनसीईआरटी का यह कदम छात्रों के भविष्य को एक नई गति प्रदान करेगा। राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने अगले शैक्षणिक वर्ष के लिए कक्षा नौ से 12 वीं तक की पाठ्य पुस्तकों की कीमत में 20 प्रतिशत की जो कटौती की है, यह छात्रों के हित में साबित होगी। ऐसा पहली बार हुआ है जब पाठ्य पुस्तकों की कीमतें घटाई गईं हैं। एनसीईआरटी के मुताबिक इस बार कागजों की खरीद काफी किफायती दामों में हुई है। साथ ही प्रिटिंग प्रेस की तकनीक में भी सुधार हुआ है। उसने इसका लाभ छात्रों को देने का फैसला किया है। हाल ही में संस्था ने अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के साथ साझेदारी भी की है जिससे न केवल देशभर में इन पाठ्य पुस्तकों की पहुंच आसान हो गई है, बल्कि छात्रों को ये पुस्तकें समय पर और प्रिंट रेट पर उपलब्ध भी हो रही हैं।
उल्लेखनीय है कि एनसीईआरटी हर वर्ष लगभग चार-पांच करोड़ पुस्तकें छापती रही है। पुस्तकों की बढ़ती मांग को देखते हुए इसने अब सालाना 15 करोड़ पुस्तकें छापने का फैसला किया है। साथ ही वह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत नई पाठ्य पुस्तकें तैयार करने में भी जुटी है। आगामी शैक्षणिक वर्ष में एनसीईआरटी चौथी, पांचवीं, सातवीं और आठवीं कक्षाओं के लिए नई पाठ्य पुस्तकें ला रही है, जबकि नाैवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा की नई पाठ्य पुस्तकें उसके अगले वर्ष आने वाली हैं। पालक महासंघ ने स्कूल में चलने वाली किताबों को लेकर सवाल खड़े किये हैं। पालक महासंघ के महासचिव प्रबोध पांडेय ने कहा कि एनसीईआरटी ने अपनी किताबें सस्ती करने का फैसला किया है जो स्वागत योग्य है।
सवाल तो ये है कि प्राइवेट स्कूल एनसीईआरटी कि किताबें चलाते ही कहां हैं। ऐसे में आप किताबों पर छूट 20 फीसदी दें या 50 प्रतिशत तक कीमत कम कर दें, स्टूडेंट्स और पेरेंट्स को तो फायदा तब मिलेगा जब प्राइवेट स्कूल इन किताबों को चलाएंगे। यहां तो कमीशन के चक्कर में निजी पब्लिशर्स की महंगी-महंगी किताबें ही चलाई जाती हैं।