सोना चला ‘गजब की चाल’ - Punjab Kesari
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सोना चला ‘गजब की चाल’

भारत में सोने की कीमतों में जो उछाला आ रहा है उसका मुख्य कारण…

भारत में सोने की कीमतों में जो उछाला आ रहा है उसका मुख्य कारण अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में संभावित बदलाव को माना जा रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सोने के भाव मजबूत होने के साथ रुपये के मुकाबले डाॅलर का मूल्य महंगा होते जाने की वजह से भी घरेलू बाजार में इसकी कीमतें बढ़ रही हैं। घरेलू बाजार में यह 83 हजार रुपये प्रति दस ग्राम के करीब पहुंचने को बेताब दिखाई पड़ता है। निवेश के लिए सुरक्षित माने जाने वाली इस बहुमूल्य धातु के लिए भारतीय लोगों में दीवानगी की हद यह है कि हर वर्ष एक हजार टन से भी अधिक सोने का आयात भारत को करना पड़ता है। इस आयात में विदेशी मुद्रा का खर्च भी लगातार बढ़ता जा रहा है क्योंकि डाॅलर लगातार महंगा होता जा रहा है। इसके बावजूद सोने के प्रति भारतीयों का मोह घटता नहीं है। भारत में एक विशेष आर्थिक घटना यह भी घट रही है कि एक तरफ जहां पूंजी बाजार में शेयरों का भाव बढ़ रहा है वहीं इसके समानान्तर सोने के भाव भी लगातार बढ़ रहे हैं। जबकि साधारण सा आर्थिक नियम यह माना जाता है कि यदि शेयर बाजार कमजोर होगा तो सोने के भाव बढे़ंगे और यदि शेयर बाजार मजबूत होगा तो सोने के भावों में कमी आयेगी परन्तु भारत में शेयर बाजार और स्वर्ण बाजार दोनों समानान्तर तरीके से तेज हो रहे हैं।

हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रम्प के चुने जाने के बाद शेयर बाजार थोड़ा ढीला जरूर हुआ है और सोने के दाम बढे़ हैं। श्री ट्रम्प ने गद्दी पर बैठते ही जिस प्रकार की व्यापारिक नीति घोषित करने की मंशा जाहिर की है उससे स्वर्ण बाजार में रौनक आयी है। इसकी वजह यह है कि अमेरिका, कनाडा सहित मेक्सिको व चीन से आयातित सामान पर शुल्क बढ़ सकता है जिससे अमेरिका की व्यापार नीति से विश्व बाजार में उथल-पुथल मच सकती है अतः सोने में निवेश बढ़ रहा है। मगर भारत में सोना हमेशा ही घरेलू निवेश का केन्द्र रहा है। हालांकि यह मृत निवेश समझा जाता है इसके बावजूद भारतीय इस धातु को भविष्य का सुरक्षित निवेश मानते हैं। यह पारंपरिक रूप से भारतीयों की मानसिकता का एक जरूरी अंग है। इसी वजह से पूरी दुनिया के स्वर्ण आयातकों में भारत का दूसरा नम्बर है। वर्ष 2024 के दौरान भारत ने 3772.5 अरब रुपये का स्वर्ण आयात किया था। जबकि इस मद में विदेशी मुद्रा खर्च करने के साथ भारत विश्व बाजार से कच्चे पैट्रोलियम तेल का आयात करने वाला विश्व में तीसरे स्थान का देश है। जहां तक पैट्रोलियम पदार्थों के आयात का सवाल है तो इसका खर्च भारत की अर्थव्यवस्था को चलायमान रखने में होता है परन्तु सोने में आयात का अर्थव्यवस्था के गतिमूलक होने से नहीं है।

भारत का तेल आयात बिल लगभग सम्पूर्ण बजट का एक तिहाई के करीब पड़ता है अतः यह आसानी से सोचा जा सकता है कि भारत की अर्थव्यवस्था को किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मगर भारत के घरेलू बाजार में सोने की कीमत में प्रति वर्ष बढ़ाैतरी यदि मुद्रा स्फीति की दर से अधिक रहती है तो इसमें चमक बढ़ती है अर्थात बड़े निवेशक इसमें निवेश करके अपनी पूंजी को सुरक्षित बनाते हैं। 2001 के करीब भारत में सोने का भाव 4 हजार रुपये प्रति दस ग्राम के बराबर था। उस समय डाॅलर का भाव 40 रुपए के करीब था। बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के ढांचे में डालर की कीमतें बाजार की शक्तियां ही निर्धारित करती हैं।

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि 2004 में केन्द्र में डाॅ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार बनने के बाद संसद के भीतर ही कुछ विपक्षी सदस्यों ने मांग की थी भारत के निर्यातकों को लाभ प्रदान करने के लिए रुपये को डाॅलर के मुकाबले थोड़ा ढीला किया जाये। उस समय देश के वाणिज्य मन्त्री कांग्रेसी नेता श्री कमलनाथ थे। तब श्री कमलनाथ ने संसद में वक्तव्य दिया था कि बेशक निर्यातकों की ओर से यह मांग आ रही है कि रुपये को थोड़ा ढीला किया जाना चाहिए जिससे उनकी निर्यात आय बढ़ सके मगर कमलनाथ का कहना था कि मजबूत रुपया देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती दिखाता है। सोने या अन्य वस्तुओं के आयात के सन्दर्भ में मजबूत रुपया आयात बिल को कम करता है। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उस समय भी भारत सोने व कच्चे तेल के आयात पर अपनी विदेशी मुद्रा का बहुत बड़ा हिस्सा खर्च करता था। एेसी स्थिति आज भी है। मगर डोनाल्ड ट्रम्प ने कच्चे तेल के आयात पर अपने देश की निर्भरता कम करने की गरज से अमेरिका के ही भूगर्भीय तेल को खोजने की मंशा ‘ड्रिल बेबी ड्रिल’ के मन्त्रोच्चार के तहत की है। फिलहाल अमेरिका कच्चे तेल के आयात का विश्व में पहले स्थान पर है। दूसरे नम्बर पर चीन आता है और तीसरे नम्बर पर भारत जो अपनी तेल जरूरत का 85 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है।

अमेरिका की इस मंशा का भी सोने के दाम बढ़ने से सीधा सम्बन्ध है। अन्तर्राष्ट्रीय निवेशक इस स्थिति को सोने में निवेश करके पाटना चाहते हैं। यह भी अलिखित नियम सा है कि जब सोने के भाव बढ़ते हैं तो इसके समर्थन में दूसरी बहुमूल्य धातु चांदी के भाव भी बढ़ जाते हैं जिसका औद्योगिक उपयोग बहुतायत में होता है। चांदी भी अब 94 हजार रुपए प्रति किलो हो गई है। इन दोनों धातुओं में मूल्य वृद्धि का सम्बन्ध मुद्रास्फी​ित की दर या महंगाई से भी होता है। जरा कल्पना कीजिये कि जब भारत आजाद हुआ था तो 1947 में इसका कुल बजट रेलवे को छोड़ कर 259 करोड़ रुपये का था और सोने का दाम तब 50 रुपये तोला (12 ग्राम) के लगभग था। आज सोना 83 हजार रुपये प्रति दस ग्राम के लगभग है और भारत का सालाना बजट 35 लाख करोड़ रुपये के आसपास है। अतः महंगाई की दर भी (तत्कालीन मूल्यों के सापेक्ष) इसके अनुरूप ही होगी। अतः सोना किस रूप में हमारी अर्थव्यवस्था का अविभाज्य अंग है, इसे साधारण नागरिक भी समझ सकते हैं।

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