बोफोर्स कांड का ‘भूत’ - Punjab Kesari
Girl in a jacket

बोफोर्स कांड का ‘भूत’

NULL

बोफोर्स तोप कांड स्वतन्त्र भारत का एेसा अकेला कांड कहा जा सकता है जिसने इस देश की राजनीति को बदल कर रख दिया और लम्बे समय से देश पर राज करने वाली पार्टी कांग्रेस की प्रतिष्ठा को जबर्दस्त धक्का लगाया। यह राष्ट्रीय स्मिता का सवाल भी था। मगर यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि यह कार्य स्वयं कांग्रेस पार्टी की सत्ता में शामिल उन लोगों द्वारा ही किया गया जो इसी पार्टी की बदौलत नेता कहलाने लगे थे। निश्चित रूप से यह स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह ही थे जिन्होंने 1986 में स्व. राजीव गांधी के प्रधानममंत्रित्व काल में इस कांड को पकड़ कर अपनी राजनीति चमकाई और इस कदर चमकाई कि वह इसी की बदौलत देश के प्रधानमंत्री तक बन बैठे, मगर उन्होंने बोफोर्स की हकीकत बाहर लाने के लिए न कोई परिश्रम किया और न इसके उन साक्ष्यों को उजागर किया जो वह कांग्रेस पार्टी छोड़ने पर राजीव गांधी मंत्रिमंडल से बाहर आने के बाद अपनी सार्वजनिक सभाओं में दिखाते फिर रहे थे।

जब 1989 में भारत में लोकसभा के चुनाव हुए तो आम जनता ने विश्वनाथ प्रताप सिंह पर भरोसा करते हुए यह समझा कि जब राजीव गांधी का वित्तमंत्री रहा और रक्षामन्त्री रहा व्यक्ति खुद कह रहा है कि बोफोर्स तोपों की खरीदारी में दलाली खाई गई थी तो जरूर कुछ सच होगा। मगर सत्ता पर बैठने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने खुद को बचाये रखने के लिए जो शतरंज बिछाई उसका नतीजा आरक्षण का पिटारा खुलना रहा और यह देश एेसे जंजाल में उलझ गया जिसमें एक ही वर्ग के लोग जाति- पाति के नाम पर आपस में ही लड़ने लगे। दरअसल विश्वनाथ प्रताप सिंह को स्वतन्त्र भारत का एेसा बेइमान राजनीतिज्ञ कहा जा सकता है जिसने लोगों को अपने ही बताए हुए तथ्य की सच्चाई जानने से महरूम रखा और भारत की सुरक्षा सेनाओं का मनोबल तोड़ने का एेसा उपक्रम कर डाला जिससे यह देश अभी तक उबरने में सक्षम नहीं हो सका है।

एेसा पहली बार हुआ जब देश के किसी प्रधानमन्त्री के नाम को दलाली लेने के मामले में घसीटा गया हो। इसने पूरे देश को बुरी तरह हिला कर रख दिया और इसका प्रभाव केवल राजनीतिक माहौल पर ही नहीं पड़ा बल्कि समूचे प्रशासकीय तन्त्र पर भी पड़ा लेकिन केन्द्र में भाजपा नीत श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के सत्ता में रहते इस मामले में पहली चार्जशीट दायर कराई गई जिसका फैसला दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2002 में दिया और इसमें साफ किया गया कि बोफोर्स तोप कांड में स्व. राजीव गांधी पर सन्देह करने का रंज मात्र भी कारण नहीं बनता है। इसके बाद इस मामले को बन्द कर दिया गया और मुकद्दमा चलाने वाली सरकारी एजैंसी सीबीआई ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की हिम्मत वाजपेयी जी के सत्ता में रहने के बावजूद नहीं दिखाई। यह इस मुल्क की हकीकत है कि भारत के लोगों ने इस कांड की पूरे देश में भारी गूंज के समय भी कभी हृदय से यह स्वीकार नहीं किया कि राजीव गांधी जैसे नेहरू- इंदिरा परिवार की विरासत संभालने वाले व्यक्ति का इस मामले में सीधा हाथ होगा। यह लोगों के मन में शंका रही कि शुरू में राजनीति से भागने वाले राजीव गांधी को जब 1984 में इंदिरा जी की असमय मृत्यु होने पर प्रधानमन्त्री बनाया गया तो वह इस जिम्मेदारी को उठाने में अधकचरे थे जिसकी वजह से उन्होंने अपने सलाहकार चुनने में भारी गलती की थी और राजनीति के उलझे दांव-पेंचों को सीधी नजर से देखा था। उस समय उनके सबसे निकट के लोगों में स्व. अरुण नेहरू और अरुण सिंह जैसे लोग थे जो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नौकरी छोड़ कर सीधे राजनीति में प्रवेश पा गए थे।

बोफोर्स कांड के गंभीर हो जाने पर ये लोग ही वी.पी. सिंह के बाद सबसे पहले उनका साथ छोड़ कर गए जिसकी वजह से कांग्रेस की प्रतिष्ठा लगातार नीचे गिरती चली गई। मगर आज सवाल यह है कि यदि संसदीय समिति की नजर में 2016 में यह आया है कि सीबीआई को इस मामले में आगे कार्रवाई करनी चाहिए तो वह वे साक्ष्य कहां से लायेगी जो 2002 में मौजूद थे? इस 64 करोड़ रुपए की दलाली के मामले में जांच की प्रक्रिया के पेंच इतने बेतरतीब हैं कि सिवाय राजनीतिक हो – हल्ले के कोई दूसरा निष्कर्ष निकालना असंभव है। इस कांड का मुख्य अभियुक्त क्वात्रोच्ची दूसरी दुनिया में पहुंच चुका है। एेसा नहीं है कि यह अकेला ही एेसा मामला था जो रक्षा सामग्री की खरीद से जुड़ा था। वाजपेयी सरकार के दौरान तहलका कांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। मगर उसका सच यह निकला कि जब 2004 में श्री प्रणव मुखर्जी मनमोहन सरकार के रक्षामन्त्री बने तो उन्होंने पाया कि एेसा कुछ भी नहीं है जिसके आधार पर वाजपेयी सरकार के रक्षामन्त्री रहे श्री जार्ज फर्नांडीज को कटघरे में खड़ा किया जा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

19 − 16 =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।