सिद्धू को सरकार से बाहर करो! - Punjab Kesari
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सिद्धू को सरकार से बाहर करो!

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किकेटर से राजनीतिज्ञ बने नवजोत सिंह सिद्धू ने जब पाकिस्तान के नवनियुक्त प्रधानमन्त्री इमरान खान के निजी निमन्त्रण पर इस्लामाबाद जाने का फैसला किया था तो यह तय था कि वह एेसे व्यक्ति के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने जा रहे हैं जिसने चुनाव में यह नारा ‘बल्ला घुमाओ-भारत हराओ’ देकर चुनाव जीता था और अपनी चुनावी रणनीति में भारत विरोध को केन्द्र में रखा था। इतना ही नहीं इमरान खान की तहरीके इंसाफ पार्टी को जिस तरह पाकिस्तान की दहशतगर्द तंजीमों ने पर्दे के पीछे से समर्थन दिया था उससे भी स्पष्ट था कि वह पाकिस्तानी अवाम को हिन्दोस्तान के खिलाफ हर सूरत में बनाये रखना चाहते थे।

पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ को उन्होंने जिस तरह चुनावी मैदान में ‘मोदी का यार-नवाज शरीफ’ कहकर प्रचारित किया था उससे भी यही बू आती थी कि वह भारत विरोध के अपने एजंडे पर आम जनता को बरगलाना चाहते हैं। इन सब कारणों से यदि सिद्धू चाहते तो इमरान खान का निजी निमन्त्रण अस्वीकार कर सकते थे और एेलान कर सकते थे कि वह ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ बनकर खुद को हंसी का पात्र नहीं बनाना चाहते मगर उन्होंने तो इससे भी दो कदम आगे जाकर शपथ ग्रहण समारोह में आये पाकिस्तानी फौज के जनरल बाजवा से गले मिलकर साबित कर दिया कि उन्हें पाक की उस नामुराद फौज के कारनामों से भी गिला नहीं है जो रोजाना सीमा का उल्लंघन करके भारतीय फौजियों को मौत के घाट उतारती है और सीमा पर बसे भारतीय गांवों के शहरियों का जीना मुहाल करती रहती है। इतना ही नहीं वह पाक अधिकृत कश्मीर के राष्ट्रपति के साथ भी बैठे।​

सिद्धू आजकल कांग्रेस पार्टी में हैं और पंजाब मन्त्रिमंडल में मन्त्री भी हैं। अतः उनकी अपनी निजता प्रत्यक्ष रूप से सार्वजनिक जीवन की मर्यादाओं से बन्धी हुई है और वह यह है कि सार्वजनिक जीवन में कार्यरत व्यक्ति का अपना कोई निजी जीवन नहीं होता। मन्त्री तो 24 घंटे का जनता का नौकर होता है। उसके हर पल का हिसाब-किताब मांगने का जनता को अधिकार होता है। लोकतन्त्र की यही मर्यादा होती है और जवाबदेही भी होती है मगर सिद्धू पहले भाजपा में रहते हुए बड़ी-बड़ी बातें किया करते थे और बांस पर खड़े होकर राष्ट्रप्रेम की धारा बहा दिया करते थे मगर सत्ता का लोभ उन्हें कांग्रेस में ले आया और वह मन्त्री बन गये। सबसे दीगर सवाल यह है कि क्या सिद्धू ने पाकिस्तान जाने से पहले अपनी पार्टी के अध्यक्ष श्री राहुल गांधी से अनुमति ली थी ? वह अन्य क्रिकेट खिलाडि़यों कपिल देव, सुनील गावस्कर की तरह मात्र पूर्व क्रिकेटर नहीं हैं बल्कि कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं और पंजाब के मन्त्री हैं। अभिनेता आमिर खान ने भी निमंत्रण स्वीकार नहीं किया। उनका किसी भी राजनैतिक दल से सम्बन्ध नहीं है। तीनों ने ही इमरान खान का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया लेकिन सिद्धू इस तरह उतावले हुए कि इस्लामाबाद में अपनी सुध-बुध खो बैठे और वहां की फौज के जनरल को ही उन्होंने अपनी बांहों में भर लिया।

आखिरकार एेसा करके वह सिद्ध क्या करना चाहते थे? क्या वह उस फौज को बराबरी का दर्जा देना चाहते थे जो पाकिस्तान में लोकतन्त्र को अपनी अंगुलियों पर नचाती है या उस फौज को इज्जत बख्शना चाहते थे जो दहशतगर्द तंजीमों को अपनी ही बटालियनों का हिस्सा मानती है? इसका जवाब उन्हें देना ही होगा मगर सिद्धू ने उलटा सवाल किया है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी भी पाकिस्तान वहां के पूर्व प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ की नवासी की शादी में पहुंच गये थे। इस पर कोई सवाल नहीं उठाता ! दरअसल यह सिद्धू को किसी हास्य सीरियल का जोकर ही सिद्ध करता है क्योंकि प्रधानमन्त्री की यात्रा की वह अपनी यारी निभाने की यात्रा से तुलना कर रहे हैं। प्रधानमन्त्री की यात्रा का लक्ष्य दोनों देशों के सम्बन्ध सुधारने से अलग कुछ नहीं हो सकता। इसमें उन्हें सफलता कितनी मिली यह अलग बात है मगर सिद्धू की यात्रा का सबब तो सिर्फ यह दिखाना भर था कि उन्हें दोनों देशों के सम्बन्धाें की कतई परवाह नहीं है लेकिन सिद्धू जैसे राजनीतिज्ञ से हम इससे अधिक अपेक्षा भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि वह मन्त्री होने के बावजूद हास्य सीरियल में पहले की तरह शिरकत करते रहे और जमकर कमाई करते रहे और बेशर्मी के साथ कहते रहे कि यह उनका निजी मामला है। हालांकि यह मामला अदालत में भी गया था और वहां से सिद्धू को राहत मिली थी मगर यह विशुद्ध रूप से नैतिकता का मामला था।

पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के मन्त्रिमंडल के सदस्य होने की वजह से उन्हें पाकिस्तान जाने की छुट्टी इस शर्त के साथ नहीं मिली होगी कि वह इस्लामाबाद में भारतीय गैरत को गिरवी रख देंगे और उलटे सीना-जोरी दिखायेंगे। क्या कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को यह एहसास नहीं है कि उनके एक साथी ने किस तरह भारत के सम्मान को धूल-धूसरित किया है? इसी वजह से उन्हें कहना पड़ा कि शपथ ग्रहण समारोह में जाना तक तो किसी लिहाज से ठीक हो सकता था मगर जनरल बाजवा की झप्पियां लेना पूरी तरह गलत था। एेसे आदमी को कैप्टन अपने मन्त्रिमंडल में कब तक रख सकते हैं? यह मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि पंजाब के रणबांकुरे फौजियों के परिवारजन कह रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि सिद्धू को सरकार से बाहर करो।

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