महागठबंधन का भविष्य - Punjab Kesari
Girl in a jacket

महागठबंधन का भविष्य

NULL

”यह कैसा गठबंधन है,
जिसमें कोई सुर-ताल नहीं।”
बिहार में महागठबंधन में ऐसा ही चल रहा है। अलग-अलग आवाजें, अलग-अलग बयान। रोज-रोज अलग-अलग स्टैंड। राष्ट्रीय जनता दल के लोग सरकार के लिए दुआएं मांग रहे हैं। वहीं जनता दल (यू) वाले काफी निश्चित नजर आ रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि नीतीश राजद न सही भाजपा के सहारे मुख्यमंत्री बने रहेंगे। भाजपा ने भी इस यकीन को पुख्ता किया है कि नीतीश हिम्मत दिखाएं, राज्य में अगर गठबंधन टूटता है तो हम राजनीतिक अस्थिरता पैदा नहीं होने देगा। ऐसा नहीं है कि पिछले डेढ़ वर्ष में इस महागठबंधन पर सवाल नहीं उठे हैं। जब सिवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन ने जेल से छूटने के बाद नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री कहा था और उन्हें नेता मानने से इन्कार कर दिया था तो जनता दल (यू) और राजद के रिश्ते तल्ख हुए थे लेकिन न तो लालू प्रसाद यादव और न ही नीतीश कुमार ने इस आग को हवा दी। भाजपा ने उस समय गठबंधन पर तीखा हमला किया था और सुशासन की दुहाई दी और नीतीश कुमार पर कार्रवाई के लिए दबाव भी बनाया था। नीतीश कुमार ने कार्रवाई भी की। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और शहाबुद्दीन तिहाड़ पहुंच गए लेकिन महागठबंधन को कोई नुक्सान नहीं हुआ था। इस साल के शुरू में जब बिहार की राजधानी पटना में प्रकाश पर्व का आयोजन हुआ था तो राजनीति खूब गर्म हुई थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बैठना और लालू प्रसाद यादव को मंच पर जगह नहीं मिलना काफी चर्चा में रहा था। जब से बिहार में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के समर्थन में सरकार बनाई, इस महागठबंधन पर सवाल उठते रहे हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव में राजद ने सबसे ज्यादा सीटें हासिल की थीं। तब यह सवाल उठा था कि राजद को बड़ी पार्टी होने के नाते मुख्यमंत्री का पद मिलना चाहिए लेकिन नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार थे और लालू प्रसाद यादव मजबूर थे। उन्हें भी पता था कि वर्षों से बिहार की राजनीति में सरक चुकी अपनी जमीन को अगर मजबूत करना है तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार ही एकमात्र रास्ता है। उन्होंने अपने दोनों बेटों को मंत्री भी बनवा दिया और राजनीति में उनके माध्यम से पुनर्वास भी लिया। चारा घोटाले का जिन्न फिर खड़ा हो गया। इसी घोटाले के कारण लालू यादव को जेल जाना पड़ा, वे चुनाव नहीं लड़ पा रहे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लालू प्रसाद यादव पर आपराधिक मामला चलाने का आदेश दे दिया। इस फैसले के बाद नीतीश कुमार काफी ताकतवर हो गए। बिहार का महागठबंधन दरअसल अन्तर्विरोध का गठबंधन है। परिस्थितियों का गठबंधन है। कई बार बयानबाजी ने गंभीर मोड़ ले लिया लेकिन न कभी लालू प्रसाद यादव ने और न ही कभी नीतीश कुमार ने खुलकर सवाल उठाए। अब नीतीश कुमार लालू परिवार के भ्रष्टाचार का बोझ सहने को तैयार नहीं। लालू का परिवार आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में बुरी तरह से फंसा हुआ है और नीतीश कुमार खुद को उनसे अलग करने के मूड में हैं। वैसे भी वह 17 वर्ष तक भाजपा के साथ रहे हैं और राजनीति में ‘कौन अपना कौन पराया’ यानी कभी कुछ भी हो सकता है। वैसे भी राजद का एक तबका नीतीश कुमार के नेतृत्व पर सवाल उठाता रहा है। राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह कई महीनों से मोर्चा खोले हुए हैं। सुशासन बाबू नीतीश कुमार के लिए अब राजद बोझ के समान है इसलिए उन्होंने अलग राह पकड़ ली है।

राष्ट्रपति पद के चुनाव में उन्होंने राजग उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का पहले ही दिन खुला समर्थन कर दिया था। उनकी दिशा उसी दिन से स्पष्ट हो गई थी। लालू ने उन्हें लाख समझाने की कोशिश की लेकिन नीतीश टस से मस नहीं हुए। यह कोई पहला मौका नहीं है जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन के सहयोगी दलों पर निशाना साधा है। जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने उन पर निशाना साधा तो नीतीश कुमार ने भी पार्टी कार्यकारिणी की बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस ने पहले गांधी के विचारों को छोड़ा, आगे चलकर नेहरू को त्याग दिया। कांग्रेस बिहार सरकार में शामिल है। अब बात चली राजद की 27 अगस्त की पटना में ‘भाजपा हटाओ, देश बचाओ’ रैली की तो इसमें जनता दल (यू) के भाग लेने के सवाल पर परस्पर विरोधी खबरें आ रही हैं। यह बात पहले ही स्पष्ट की जा चुकी है कि जनता दल (यू) एनडीए में ज्यादा सहज था। इस महागठबंधन का टूटना तय है। देखना सिर्फ यह है कि यह टूट कब होती है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

eleven − five =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।